लड़ोगे तो जीतोगे!
अंग्रेज़ी वैश्विक-आर्थिक-आक्रमण या वैश्वीकरण की भाषा है, जबकि हिंदी सिर्फ़ भारत के एक(बड़े)क्षेत्र की भाषा! दोनों की तुलना ठीक नहीं!...
....देश के बाहर ही नहीं, देश के अंदर भी हिंदी लिखने-बोलने-पढ़ने वालों की इज़्ज़त और पैसा यानी रोज़गार मिलता है। किंतु यह केवल भाषायी ग़ुलामी नहीं है। यह वास्तविक गुलामी का द्योतक है।
.....देश की भाषाओं के अस्तित्व का संघर्ष अनिवार्यतः इस गुलामी (मुख्यतः आर्थिक) से मुक्ति का संघर्ष है! लड़ोगे तो जीतोगे वरना ऐसे ही सड़ोगे!
हिंदी भाषियों के सामने यह चुनौती सबसे बड़ी है...क्योंकि उन्हीं को सबसे कम अंग्रेज़ी आती है! और यह अच्छी और सकारात्मक बात है। बड़े क्षेत्र के लोगों को रोज़गार नहीं मिल रहा! मिलने की संभावनाएं और क्षीण होती जा रही हैं। उन्हें रोज़गार के लिए लड़ना पड़ रहा है। यह लड़ाई एक भाषायी और सांस्कृतिक लड़ाई भी है। दरअसल, यह गुलामी के खिलाफ़ लड़ाई है।
लड़ोगे तो जीतोगे, नहीं तो ऐसे ही सड़ोगे! ★★★
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