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आपका क्या विचार है?

 विचार-विमर्श:

फ्रांसीसी क्रांति, 1857 की क्रांति, रूसी क्रांति, चीनी क्रांति से भी बड़ी क्रांति कोई थी क्या? सोचिए और जवाब दीजिए इस विचार-विमर्श में~~


                विश्व की सबसे बड़ी क्रांति!..

                                        -- दिनेश सिंघ एलएल.एम.

                                       नई दिल्ली, मो.9977300997

विश्व का इतिहास यूं तो तमाम क्रांतियों और कुर्बानियों से भरा पड़ा है। लेकिन दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंघ साहेब जी की खालसा क्रांति विश्व की सबसे बड़ी क्रांति है और दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंघ साहेब जी की कुर्बानी विश्व की सबसे बड़ी कुर्बानी है।

गुरु साहिबान की क्रांति मानवता, समानता और भाईचारे पर आधारित है।

 ब्राह्मण बैरी की अमानवीय व्यवस्था में जिन लोगों को जानवर से भी बदतर समझा जाता था गुरु साहिबान ने उनको अपना बेटा बनाया और उनको अपने गले से लगाया। 

जिन लोगों को अच्छे कपड़े पहनने पर रोक थी, गुरु साहिबान ने उन्हें अच्छे कपड़े पहनने का अधिकार दिया।

 जिन लोगों को सिर पर पगड़ी बांधने पर रोक थी गुरु साहिबान ने उन्हें सिर पर दोमाला(दो पगड़ी)सजवाया ।

जिन लोगों को घोड़ों पर चढ़ने की मनाही थी उन्हें गुरु साहिबान ने घोड़ों पर चढ़ने का अधिकार दिया।

जिन लोगों को हथियार रखने पर मनाही थी गुरु साहिबान ने उन्हें हथियार रखने का अधिकार दिया। फौज में सैनिक केवल ड्यूटी के समय अधिकार धारण कर सकता है लेकिन गुरु साहिबान ने अपने सिखों को 24 घंटे हथियार रखने का अधिकार दिया। 

जिन लोगों के साथ गैर बराबरी का व्यवहार होता था गुरु साहिबान ने उन्हें बराबरी का दर्जा दिया। 

जिन लोगों के नाम भद्दे और अपमानजनक होते थे उनके नाम गुरु साहिबान ने उनके अच्छे नाम रखे और नाम के साथ सिंघ लगाया और महिलाओं के नाम के साथ कौर लगाया।

जिन लोगों को ब्राह्मण बैरी पानी पीने से रोकता था उन लोगों को गुरु साहिबान ने अमृत छकाया।

ब्राह्मण बैरी ने जिन लोगों को हथियार विहीन बनाया गुरु साहिबान ने उन्हें हथियारों से सुसज्जित कर योद्धा बनाया। 

जिन लोगों को ब्राह्मण बैरी दाढ़ी और मूंछ नहीं रखने देता था गुरु साहिबान ने उन्हें दाढ़ी मूछ और पूर्ण केस रखने का अधिकार दिया।

जो लोग ब्राह्मण बैरी के गुलाम थे गुरु साहिबान ने उन अछूतों और शूद्रों को ब्राह्मण बैरी की गुलामी से आजाद कराया।

गुरु साहिबान ने कहा था~

जिनकी जात पांति कुल माही।

सरदारी न भई कदाहीं।।

तिनिको ही सरदार बनाऊं।

तबै गोबिंद सिंघ नाम कहांऊ।।

दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंघ साहेब जी ने यह बात बहुत ही दृढ़ निश्चय से कही और करके दिखाई…..

ब्राह्मण बैरी की अमानवीय व्यवस्था में जिन लोगों को कीड़े मकोड़ों की तरह तुच्छ समझा जाता था उनके लिए गुरु साहिबान ने दृढ़ निश्चयवान होकर कहा था~

चिड़िया नाल मैं बाज लड़ावां,

गीदड़ा नू मैं शेर बनावां।

सवा लाख से एक लड़ावां,

तबै गोबिंद सिंघ नाम धरावां।।

गुरु साहिबान ने हकीकत में ऐसा करके दिखाया।

दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी ने 13 अप्रैल 1699 को खालसा की साजना की….

गुरु साहिबान ने अमृत छकाने की परंपरा की शुरुआत की  

गुरु साहिबान ने अपने सभी सिखों को एक ही खंडे बाटे से अमृत छकाकर सिंघ सजाकर हथियार बंद योद्धा बनाया। 

इन योद्धाओं की फौज का नाम खालसा दिया।

खालसा मतलब पवित्र ! 

गुरु साहिबान ने सिखों के नाम के साथ पुरुष है तो सिंघ और महिला है तो कौर टाइटल दिया।

गुरु साहिबान ने अमृत उन्हीं को छकाया जो गुरु साहिबान के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे गुरु साहिबान को अपना शीश देने के लिए तैयार थे।

गुरु साहिबान ने सबसे पहले पांच सिखों को अमृत छकाया जिन्हें पंच प्यारों के नाम से जानते हैं।

जब पंच प्यारों ने गुरु साहिबान के हाथों से अमृत छक लिया तब गुरु साहिबान ने उन पंच प्यारों से विनती की आप अब मुझे भी अमृत छकाओ…

तब पंच प्यारों ने दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंघ साहेब जी को अमृत छकाया,

और आज भी पंच प्यारों के द्वारा अमृत उन्हीं को छकाया जाता है जो गुरु साहिबान के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं और गुरु साहिबान को अपना शीश देने के लिए तैयार होते हैं।

अमृत छकाने की प्रक्रिया नाश के सिद्धांत पर आधारित है।

अमृत छकने वाला सिख गुरु साहिबान को अपना शीश देने का संकल्प ले चुका होता है, तब गुरु साहिबान उस सिख को नया जीवन देते हैं ।

और 

जो सिख अमृत छक लेता है उसकी जाति, वर्ण, कुल, गौत्र के साथ साथ माता पिता और नाम की भी पहचान खत्म हो जाती है। 

पंच प्यारों के द्वारा अमृत छकने वाले सिख को नया नाम दिया जाता है। 

और 

उसे हुकुम दिया जाता है कि आज से तुम्हारी जाति, वर्ण, कुल, गोत्र सारी पहचान खत्म आज से तुम खालसा हो तुम्हारे पिता सतगुरु गोबिंद सिंघ साहेब जी हैं, माता साहिब कौर हैं। और खालसा तुम्हारा परिवार है और तुम आंनदपुर साहिब के निवासी हो।

गुरु साहिबान ने सिखों की जाति ,कुल, गोत्र ,वर्ण का विनाश कर दिया।

जाति के विनाश (एनहेलेशन ऑफ कास्ट) का इतना बड़ा महान सिद्धांत और प्रैक्टिकल दुनिया में कहीं भी नहीं मिलेगा…

गुरु साहिबान ने कहा ~

 इन दीन गरीब सिखनि को देंउ पातशाही।

 वे याद करें हमारी गुरियाई।।

वर्तमान में सिखों की प्रैक्टिस में गिरावट हो सकती है लेकिन गुरु साहिबान के सिद्धांत, विचारधारा परफेक्ट है, सिखी परफेक्ट है।

 जिसके द्वारा सिख अपनी प्रैक्टिस को सुधार सकते हैं।

गुरु साहिबान की महानतम कुर्बानी~

दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंघ साहेब जी ने परिवार सहित आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।

गुरु साहिबान अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों साहिबजादों को गंगू नामक ब्राह्मण जो कभी गुरु घर का रसोइया था उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया।

चमकौर की जंग शुरू हुई और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे अजीत सिंघ उम्र महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजादे जुझार सिंघ उम्र महज 14 वर्ष अपने अन्य साथियों सहित दुश्मन से लड़ते हुए शहीद हुए।

गुरु साहिबान की माता गुजर कौर जी और दोनों छोटे साहिबजादे गंगू ब्राह्मण के द्वारा गहने एवं अन्य सामान चोरी करने के उपरांत तीनों को मुखबरी कर मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान के हाथों गिरफ्तार करवा दिया गया और तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया और अत्याचार किए।

छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया।

साहिबजादा जोरावर सिंघ और साहिबजादा फतेह सिंघ  को तमाम जुल्म ओ जब्र उपरांत जिंदा दीवार में चुनने उपरांत जिबह (गला रेत) कर शहीद किया गया और माता गुजर कौर जी को शहीद किया गया।

इतनी बड़ी महान कुर्बानी दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंघ साहिब जी ने भारत के अछूतों और शूद्रों को आजाद कराने के लिए दी थी।

गुरु साहिबान में दुश्मन से कभी भी समझौता नहीं किया~

दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंघ साहिब जी ने मानवता के दुश्मनों के खिलाफ 18 जंगे लड़ी जिनमें से केवल चार जंगे मुगलों के खिलाफ थी।

बाकी जंगे पहाड़ी राजाओं के खिलाफ थी….

गुरु साहिबान के खिलाफ पहाड़ी राजाओं को और मुगलों को ब्राह्मण बैरी ने खड़ा किया था,

पहाड़ी राजा और ब्राह्मण गुरु साहिबान को यह कह रहे थे कि इन अछूतों और शूद्रों को लंगर मत छकाओ, इनको अपना सिख मत बनाओ और न ही इनको अमृत मत छकाओ।

  हम आपका हर तरीके से सहयोग करेंगे लेकिन गुरु साहिबान ने मानवता के दुश्मनों की एक नहीं सुनी और ना ही उनसे कोई समझौता किया।

लेकिन विडंबना यह है।

भारत के दलित अछूत शूद्र इस महान क्रांति से वाकिफ नहीं हैं।

भारत के दलित और अछूत, शूद्र डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के उस भाषण को (एन्हेलेशन ऑफ कास्ट) जिसे जाति पात तोड़क मंडल ने रिजेक्ट कर दिया था उसे क्रांति समझ रहे हैं। यह उनकी नादानी है।

जाति पांत का असली विनाश तो खालसा सजने पर ही हो सकता है।

अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम पूरे देश को इस महान क्रांति से और महान फिलासफी से और महान इतिहास से अवगत कराएंगे~

तभी भारत जाति विहीन समाज बनेगा।

तभी भारत वर्ण विहीन समाज बनेगा।

तभी हमारा भारत देश आजाद होगा।

तभी भारत में समानता स्थापित होगी।

तभी भारत में मानवता स्थापित होगी।

तभी भारत में भाईचारा स्थापित होगा।

तभी भारत से अन्याय,अत्याचार का खात्मा होगा।

तभी भारत में छुआछूत ऊंच-नीच का खात्मा होगा।

तभी भारत के अछूतों, शूद्रों और दलितों की आजादी का मार्ग प्रशस्त होगा।

इसके लिए

अमृत छको!

सिंघ सजो !!

वाहेगुरु जी का खालसा 

वाहे गुरु जी की फतेह!

                               ◆◆◆◆◆◆◆◆

                                        

   

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