ऐसे बस गया
रसगुल्ला-नगर!
रोज़गार की तलाश में लोग क्या-क्या नहीं कर जाते हैं?... जब से #पकौड़ा_रोजगार का जुमला उछला है, लोग मान गए हैं कि उनके सामने #आत्मनिर्भर होने के अलावा आजीविका का और कोई सहारा नहीं! अब इस हाई-वे के किनारे बसे रसगुल्ला नगर को ही देखिए! इसका इससे बेहतर नाम कुछ और नहीं सूझता। कोई और मिठाई नहीं, बस रसगुल्ले ही रसगुल्ले!..इन सभी दुकानों में! हाई-वे के दोनों तरफ। हाई-वे पर आते जाते लोगों/ ग्राहकों को बरबस अपनी ओर खींच लेती ये रसगुल्लों की दुकानें आजीविका चलाने का एक और नज़रिया हैं! सब के सब अपनी तरफ़ से बेहतर से बेहतर रसगुल्ले बनाने की कोशिश करते हैं ताकि आने-जाने वाले ग्राहक पक्के हो जाएं।
इलाहाबाद के दक्षिण में चित्रकूट हाई-वे पर एक छोटे से कस्बे घूरपुर के पास बसे-बसते इस रसगुल्ला नगर की कहानी पुरानी नहीं है। पहले जब यहाँ हाई-वे नहीं एक साधारण सी सड़क हुआ करती थी। रेलवे क्रॉसिंग के पास एक छोटी सी गुमटी में एक सज्जन रसगुल्ले सजाते और आने जाने वालों को दोने में रखकर रसगुल्ले बेचते थे। क्रॉसिंग पर कोई गाड़ी आने को होती तो बस, ट्रक, टेम्पो आदि वाहन वहाँ रुक जाते और कुछ लोग जरूर रसगुल्लों का आनंद लेते और दुकान चलती रहती। हाई-वे बनने से अनेक कस्बों-शहरों की दुकानों-घरों के तोड़े जाने के सिलसिले का यह छोटी सी दुकान हिस्सा बन गई।...
कहते हैं हर विनाश में किसी न किसी प्रकार के विकास के बीज भी छिपे होते हैं। ऐसा ही यहाँ भी हुआ!...एक दुकान क्या टूटी हाई-वे किनारे-किनारे पचासों दुकानें खड़ी हो गईं। यद्यपि ये सब अस्थायी और टेंटनुमा दुकानें हैं और यहाँ दुकानदारों या कहें रसगुल्ला बनाने वालों की कमाई भी कोई ज़्यादा नहीं होती, पर 'कुछ नहीं से कुछ सही' -सिद्धांत पर आसपास के गांवों से आकर लोग दुकानें लगा-सजा रहे हैं!..
जब आप इलाहाबाद या कहें नामान्तरित प्रयागराज जाएं तो चित्रकूट मार्ग पर बसे इस रसगुल्ला नगर के रसगुल्लों का भी स्वाद लें!...अच्छे और अलग लगेंगे!
★★★★★★★
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