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क्या मुख्यतः कम्पनीराज के खिलाफ़ है किसान आंदोलन?

                          किसान आंदोलन का 

                कॉरपोरेट विरोध 

 

संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जैसे तीन किसान विरोधी कानूनों की वापसी के लिए संघर्ष लम्बा खिंचता जा रहा है, उसके स्वरूप में भी बदलाव आता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से मजदूर संगठन भी उसके समर्थन में दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने लगे हैं। साथ ही इसे कानून वापसी की माँग से अधिक व्यापक बनाये जाने की भी कोशिश हो रही है। किसान आंदोलन इसे कॉरपोरेट या कम्पनीराज विरोधी आंदोलन के रूप में विकसित करने की कोशिश कर रहा है!...

★ कॉर्पोरेटों के खिलाफ धरना जारी रहेगा: यह काले कानूनों के खिलाफ एकजुट लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

लगातार चल रहा किसान आंदोलन भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर जाने वाले मुख्य राजमार्गों पर पिछले आठ महीनों से जमा हुआ है।।  26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं पर लाखों आंदोलकारियों के पहुंचने से पहले कई राज्यों में महीनों तक कई विरोध प्रदर्शन हुए। इस लिहाज से यह आंदोलन और भी ज्यादा समय से चल रहा है।  हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार अपने जोखिम पर आंदोलनकारियों द्वारा उठाए जा रहे बुनियादी मुद्दों और उनकी प्रमुख मांगों की अनदेखी करना जारी रखे हुए है। यद्यपि विभिन्न राज्यों में ग्रामीण भारत का मिजाज चुनाव परिणाम सामने आने से स्पष्ट है कि जनता किसान आंदोलन की अनदेखी को बुरा मान रही है और वह चाहती है कि शीघ्रातिशीघ्र किसान आंदोलन का समुचित हल निकाला जाए। इधर किसान आंदोलन  अपनी गति से आगे बढ़ रहा। आंदोलन स्थलों पर अब भी ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता जा रहा और यह अभी "चढ़ती कलां" का समय माना जा रहा है।आन्दोलनकारी अपने शांतिपूर्ण संघर्ष में और अधिक से अधिक दृढ़ होते जा रहे हैं।  उन्होंने कड़ाके की ठंड और सर्दी, तेज आंधी-तूफान, चिलचिलाती गर्मी और अब बारिश का डटकर सामना किया है।  धान की बुवाई का मौसम शुरू होने के बावजूद अधिक से अधिक किसान सीमा पर आ रहे हैं। बारिश के पानी से उनके टेंटों में बाढ़ आ गई, इसके बावजूद वे अपने मंच के कार्यक्रमों को जारी रखे हैं। यहाँ तक कि बारिश के दौरान भी ये लगातार चलता रहा है। किसानों को जैसे बारिश में भींगने से भी कोई परहेज नहीं है।

26 जून को "कृषि बचाओ लोकतंत्र बचाओ" दिवस घोषित किया गया था, इसका मतलब है कि किसान आंदोलन इन कानूनों को केवल किसानी पर नहीं लोकतंत्र पर भी हमला मानता है। इसीलिए संघर्ष को और तेज करने की तैयारी चल रही है। किसान आंदोलन भारत के सभी प्रगतिशील संस्थानों और नागरिकों से अपील करता रहा है कि यह लड़ाई कॉरपोरेट के खिलाफ़ लड़ाई भी है जिसमें ट्रेड यूनियन, व्यापारी संघ, महिला संगठन, छात्र और युवा संगठन, कर्मचारी संघ और अन्य शामिल हैं। 

जब से केंद्र में भाजपा सरकार के किसान विरोधी, कारपोरेट समर्थक कानूनों के खिलाफ विरोध शुरू हुआ, तब से किसान उनके मॉल, पेट्रोल स्टेशनों और अन्य स्थानों पर लगातार धरना देकर विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और अलग-अलग राज्यों के टोल प्लाज़ाओं को फ्री करने का काम भी चल रहा है। इससे बड़ी संख्या में किसानों के साथ आम जनता को राहत मिली है कि उन्हें टोल टैक्स के भारी भरकम बोझ से मुक्ति मिल रही है। पंजाब के साथ-साथ राजस्थान जैसे अन्य राज्यों में कॉरपोरेट आउटलेट्स और सुविधाओं पर इस तरह का महीनों से विरोध जारी है।  इस अभियान के तहत, अदानी ड्राई पोर्ट एंट्री पॉइंट्स को भी महीनों से अवरुद्ध कर दिया गया है।  यह निर्णय लिया गया है कि कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ ये विरोध प्रदर्शन, जिनके इशारे पर मोदी सरकार नागरिकों के खिलाफ जाने को तैयार है, शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहेगा।  

             --  संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी प्रेस नोट के आधार पर

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