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तो महात्माजी से परिचित नहीं हैं आप?

स्वर्ग की कहानियाँ :

  एक:

                महात्माजी : परिचय

       मतलब, आप भी जान लीजिए!



महात्माजी कभी झूठ नहीं बोलते!....

यह अलग बात है कि आम लोग उनकी भाषा नहीं समझते और अर्थ का अनर्थ करते हैं।

महात्माजी के प्रवचनों को सुनने और समझने वाले प्रायः तीन प्रकार के लोग हैं। पहले नम्बर पर वे लोग हैं जो उनका मंतव्य समझ नहीं पाते और उनकी सत्यवादिता को मिथ्या-प्रलाप मान लेते हैं। ऐसे लोगों को आप उनका विरोधी या उनसे जलने वाला मान सकते हैं।

दूसरी तरह के वे लोग हैं जो उनके मुखारविन्द से निकले वचनों का सही-सही अर्थ जानते हैं और इसे भविष्यवाणी मानकर सावधान हो जाते हैं। ऐसे लोग महात्माजी को कबीरदास के समकक्ष मानते हैं और कहते हैं- 'कबीरदासजी की उल्टी बानी, बरसै कम्बल भीजै पानी।'

लेकिन सबसे समझदार तीसरी तरह के लोग हैं जो एक न एक दिन खुद भी महात्माजी जैसा बनने का सपना पालते हैं। उन्हें जन सामान्य भक्त कहता है लेकिन अपने करतबों से ऐसे लोगों ने दिखा दिया है कि वे भक्त नहीं बल्कि महात्माजी के सहभागी हैं। अक्सर ऐसे लोग फ़ायदे में ही रहते देखे जाते हैं।

लेकिन इस तीसरे वर्ग में एक उपवर्ग भी है जिसकी संख्या सबसे बड़ी है। यह निःस्वार्थ बल्कि निष्काम भाव से महात्माजी का जैकारा लगाता है और उनके हर वचन को आप्तवचन मानकर दिनरात उनकी चर्चा-प्रशंसा में लगा रहता है। पहले दोनों तरह के लोग इस तीसरे वर्ग-उपवर्ग लोगों में घालमेल कर जाते हैं और दोनों को एक समझने की गलती कर जाते हैं। लेकिन तीसरी तरह का अल्पसंख्यक वर्ग ऐसी कोई गलती नहीं करता। वह इस उपवर्ग को पक्का बेवकूफ़ समझता है लेकिन कभी ऐसा कहता नहीं, वह इस विशिष्ट भक्त-समुदाय को अपना कंधा मानता है और जानता है कि लक्ष्य हासिल करने लिए इस कन्धे का ही इस्तेमाल किया जाना है। लोग बड़ी संख्या वाले इस कंधा-समुदाय को अंधा-समुदाय मानते हैं किंतु इसके लिए लोकप्रिय शब्द अंधभक्त है।

यह कथा इन तीनों तरह के लोगों की कथा है लेकिन जैसे हर कथा-प्रवचन में बड़ी संख्या में भक्त महिला-समुदाय की होती हैं और कथावाचक उन्हें ही ध्यान में रखकर कथा कहता है, वैसे ही हमारे  महात्माजी की कथा का भी लक्ष्य-समूह तीसरे वर्ग का यह बहुसंख्यक उपवर्ग है। वैसे तो इसे कोई महत्त्व देता किन्तु  सब इसी को लक्ष्य कर अपनी योजनाएं बनाते हैं...कि कैसे इसे साधा जाए- इस्तेमाल किया जाए। इसीलिए इस वर्ग को आप अंधभक्त न मानकर जन-सामान्य मानिएगा तभी आपको कथा का परम लाभ मिलेगा।...

वैसे तो महात्माजी के कई रूप हैं और उनके इन विशिष्ट रूपों को न समझ पाने के कारण आमलोग उनके लिए बहुरुपिया जैसे अप्रिय शब्द का भी इस्तेमाल करते हैं, पर महात्माजी 'एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति' मानकर सबको माफ़ कर देते हैं। वे सबसे प्रिय वचन बोलने के लिए जाने जाते हैं।

महात्माजी के बारे में मशहूर है कि उन्होंने सारी दुनिया देख रखी है। कलकत्ता-बम्बई-दिल्ली सब महात्माजी ने छान मारा है। कुछ लोगों ने तो उन्हें गोहाटी के कामाख्या मंदिर में कालाजादू करते देखा है तो कुछ लोगों को मालूम है कि महात्माजी अमरीका-जापान-कनाडा पूरी दुनिया घूम आए हैं। कुछ बुरे लोग तो महात्माजी को मूर्तिचोर मानते हैं तो दूसरे बुरे लोग उन्हें सीआईए का एजेंट कहते हैं। ऐसे भले लोगों की भी कमी नहीं है जो उन्हें पक्का साधु या बड़े पहुँचे हुए महात्मा मानते हैं। खैर, हमारा सामना जिन महात्माजी से हुआ वे एक साधारण आदमी से दिखे!...
                                             
           महात्माजी कल चौराहे की उसी चाय की दुकान पर मिल गए जिसे वे अपने द्वारा स्थापित इलाके की पहली चाय की दुकान कहा करते हैं। यद्यपि चाय वाला इसे मजाक समझता है और कहता है कि इनके अलावा और कोई ऐसा नहीं कहता। दुकान के कई मालिक बदल गए पर महात्माजी अभी भी इस दुकान को अपने द्वारा स्थापित दुकान ही कहते हैं।
        चाय वाले ने जब मेरे साथ उन्हें भी चाय की प्याली पकड़ाई तो एक घूँट पीने के बाद उनकी छठीं इन्द्रिय जागृत हो गई। बोले- "सावधान कर रहा हूँ, बैंक में रखा अपना सारा पैसा निकाल लो! बैंक में रखा पैसा अब सुरक्षित नहीं रह गया है!.
."

                                                                -- क्रमशः ...   

                               ★★★★★★ 

Comments

  1. बहुत सारगर्भित , इतना पढ़ लेने के बाद लेखक के आगे के शब्दों को पढ़ने की उत्सुकता बनी हुई है।

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