Skip to main content

क्या आप साँप को दूध पिला रहे हैं?

                          साँप को दूध पिलाना

              मुहावरा ही सही है!

जी, हाँ! मुहावरे और कहावतें अज्ञानता की भी प्रतीक होती हैं। इसलिए उन्हें आप्त-वाक्य मानकर जो लोग बार-बार अपनी किसी बात को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें 'सांप को दूध पिलाना' मुहावरे पर ठीक से विचार करना चाहिए। क्योंकि क्या आप जानते हैं कि साँप दूध नहीं पीते और जबर्दस्ती उन्हें दूध पिलाने से उनकी मौत भी हो जाती है?

सांप वे रेंगने वाले जीव हैं जो दूध, शाक-सब्जी नहीं खाते, न ही वे कोई शाकाहारी देवी-देवता हैं। साँप मांसाहारी होते हैं और जमीन पर चलने वाले दूसरे जीवों जैसे चूहा, मेढक, छिपकली व अन्य कीड़े-मकोड़ें खाकर जीवन-यापन करते हैं। उन्हीं की खोज में कभी-कभी वे मनुष्यों, नेवलों आदि के संपर्क में आने के कारण आकर अपनी जान भी गँवा बैठते हैं।

हमारा देश धर्मप्राण देश माना जाता है। इस कारण जीवन के हर क्षेत्र में यहाँ धर्म की पैठ है। कभी-कभी तो धर्म के नाम पर लोग अधर्म भी कर जाते हैं। इन्हीं में से एक अधर्म हैं साँप को दूध पिलाना और दूसरा अधर्म है साँप को अपना दुश्मन मानकर उसकी जान के पीछे पड़ जाना। दरअसल, साँप को दूध स्वार्थवश पिलाया जाता है लेकिन इसे एक धार्मिक मान्यता का रूप दे दिया गया है। नाग पंचमी निश्चित ही साँपों की महत्ता मानने वाला त्योहार है, उनकी जीवन की रक्षा का संकल्प लेने वाला त्योहार है। किंतु, एक तो अर्थाभाव दूसरे धार्मिक अंधविश्वास के कारण संपेरे साँप के दाँत निकालकर उनका लोगों को दर्शन कराते फिरते हैं और विचित्र करतब दिखाने के चक्कर में साँपों को कई दिन भूखा रखकर उस दिन दूध पिलाने के नाम पर पैसे कमाते हैं। दाँत तोड़ने के कारण घाव होने के चलते जहाँ कुछ दिन बाद साँप मर जाते हैं, वहीं दूध मुँह में जाने का भी उन पर बुरा असर पड़ता है। इससे उनका चोटिल अंग जल्दी सड़ जाता है। यह भी उनकी मौत का कारण बनता है।

इसलिए आगे जब कभी साँप को दूध पिलाने वाला कोई दिखे तो अव्वल तो उससे साँप छुड़ाकर जंगल में स्वतंत्र घूमने और स्वस्थ होने के लिए छोड़ देने की कोशिश करें, दूसरे न माने तो बस नमस्कार भर कर लें नाग देवता को!...

                               ★★★★★★★

 

 

 

Comments

Popular posts from this blog

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

नाथ-सम्प्रदाय और गुरु गोरखनाथ का साहित्य

स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र परीक्षा की तैयारी नाथ सम्प्रदाय   गोरखनाथ         हिंदी साहित्य में नाथ सम्प्रदाय और             गोरखनाथ  का योगदान                                                     चित्र साभार: exoticindiaart.com 'ग्यान सरीखा गुरु न मिल्या...' (ज्ञान के समान कोई और गुरु नहीं मिलता...)                                  -- गोरखनाथ नाथ साहित्य को प्रायः आदिकालीन  हिन्दी साहित्य  की पूर्व-पीठिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।  रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल को 'आदिकाल' की अपेक्षा 'वीरगाथा काल' कहना कदाचित इसीलिए उचित समझा क्योंकि वे सिद्धों-नाथों की रचनाओं को 'साम्प्रदायिक' रचनाएं समझत...

अवधी-कविता: पाती लिखा...

                                स्वस्ती सिरी जोग उपमा...                                         पाती लिखा...                                            - आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' श्री पत्री लिखा इहाँ से जेठू रामलाल ननघुट्टू कै, अब्दुल बेहना गंगा पासी, चनिका कहार झिरकुट्टू कै। सब जन कै पहुँचै राम राम, तोहरी माई कै असिरबाद, छोटकउना 'दादा' कहइ लाग, बड़कवा करै दिन भै इयाद। सब इहाँ कुसल मंगल बाटै, हम तोहरिन कुसल मनाई थै, तुलसी मइया के चउरा पै, सँझवाती रोज जराई थै। आगे कै मालूम होइ हाल, सब जने गाँव घर खुसी अहैं, घेर्राऊ छुट्टी आइ अहैं, तोहरिन खातिर सब दुखी अहैं। गइया धनाइ गै जगतू कै, बड़कई भैंसि तलियानि अहै। बछिया मरि गै खुरपका रहा, ओसर भुवरई बियानि अहै। कइसे पठई नाही तौ, नैनू से...