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आपके पास विकल्प ही क्या है?..

                          अगर चुनाव 

            बेमतलब सिद्ध हो जाएं तो?

सवाल पहले भी उठते रहते थे!...

सवाल आज भी उठ रहे हैं!...

क्या अंतर है?...या चुनाव पर पहले से उठते सवाल आज सही सिद्ध हो रहै हैं?

शासकवर्ग ही अगर चुनाव को महज़  सर्टिफिकेट बनाने में अपनी भलाई समझे तो?...

ईवीएम चुनाव पर पढ़िए यह विचार~

चुनाव ईवीएम से ही क्यों? बैलट पेपर से क्यों नहीं? अभी सम्पन्न विधानसभा चुनाव में अनेक अभ्यर्थियों, नुमाइंदों, मतदाताओं ने ईवीएम में धांधली गड़बड़ी की शिकायत की है, वक्तव्य दिए हैं। शिकायत एवं वक्तव्य के अनुसार जनहित में वैधानिक कारवाई किया जाना नितांत आवश्यक है।।अतः चुनाव आयोग एवं जनता के हितार्थ नियुक्त उच्च संस्थाओं ने सभी शिकायतों को संज्ञान में लेकर बारीकी से जांच कर,निराकरण करना चाहिए। कई अभ्यर्थियों ने बैटरी की चार्जिंग का तकनीकी मुद्दा उठाया हैं जो एकदम सही प्रतीत होता है। स्पष्ट है चुनाव के बाद या मतगणना की लंबी अवधि तक बैटरी का 99% चार्जिंग  यथावत रहना असंभव~ नामुमकिन है।

 हमारी जानकारी के अनुसार विश्व के प्रायः सभी विकसित देशों में ईवीम से चुनाव प्रतिबंधित है,बैलेट पेपर से चुनाव हो रहे हैं। क्यों?...

यह कहना गलत है कि,बैलेट पेपर से चुनाव में समय व धन की बर्बादी होती है। क्योंकि चुनाव के बाद ईवीएम कई दिनों तक स्ट्रांग रूम में पड़ी रहती है, सुरक्षा का पहरा देना पड़ता है। फिर चुनाव के तुरंत बाद मतदान स्थल पर ही परिणाम क्यों नही घोषित किया जाता? अभ्यर्थियों के बटन दबा कर उनका तुरंत परिणाम दिया जा सकता है,जो आसान है। ना समय न धन की बर्बादीऔर ना ही किसी प्रकार का संदेह!

 आज के वैज्ञानिक युग मे चंद्रयान को जमीन से कंट्रोल किया जा सकता है, छोड़े गए उपग्रहों को नियंत्रित किया जा सकता है, हमारे पैसे घर बैठे ट्रांसफर हो सकते है, आपका मोबाईल हैक हो सकता है, तो ईवीएम हैक क्यों नहीं हो सकती?... वैज्ञानिकों ने ईवीएम को हैक कर दिखाया है!

लोकतंत्र को बचाने, न्याय प्राप्त करने के लिए भले ही परिणाम आने के लिए देरी हो,पर भारत की सारी जनता बैलट पेपर से चुनाव चाहती है, पर एक सत्ताधारी बड़ी पार्टी ऐसा नहीं चाहती,कयों?... खोज का विषय है! उन्हें किस बात का डर है?...

पांच साल की बर्बादी की अपेक्षा पांच दिन की देरी सही! जब जनता ईवीएम के स्थान पर बैलट पेपर से चुनाव चाहती है तो जनता की बात माननी पड़ेगी। क्योंकि यहाँ जनता का शासन है, राजशाही नहीं!

    ध्यान देने योग्य बात यह है कि,केंद्र की जनविरोधी नीतियों के चलते सारे युवा, बेरोजगार, व्यापारी, काश्तकार, महिलाएं, कमजोर मध्यम वर्ग महंगाई, भ्रष्टाचार, उत्पीड़न से त्रस्त है, लोगों का जीना मुश्किल हो गया है, फिर यह बम्पर, एकतरफा  जीत कैसी?...

    मात्र बयानबाजी से कुछ नहीं होगा! इस ज्वलंत मसले पर गंभीरता से सभी लोकतंत्र प्रेमी चाहे वें मतदाता हो, नुमाइंदे हों,  आम आदमी हो, एकजुटता से निर्भीक होकर विचार ही नहीं जनांदोलन करना पड़ेगा! प्रभावी वैधानिक लड़ाई लड़नी पड़ेगी। वरना जनता ठगती रहेगी और भ्रष्टाचारी मौज करते रहेंगे, लोकतंत्र नाममात्र का रह जाएगा। आनेवाली पीढियां हमें कोसेंगी!

महत्वपूर्ण~

यदि वरिष्ठ नुमाइंदे, संगठन, चाहे वें किसी भी दल एवं विचारधारा के हों, एकजुट होकर इस अतिशय महत्वपूर्ण ज्वलंत मुद्दे पर लड़ाई नहीं लड़ते, लोगों को न्याय नहीं दिलाते  तो हमें यह कहने में बिलकुल संकोच नहीं होगा कि चोर-चोर मौसेरे भाई हैं! सारे मिलकर जनता को बेवकूफ बना रहे हैं! ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि अधिकतर नुमाइंदों के चेहरे कीचड़ से सने है, कोई भी दूध के धुला नहीं है। सभी ईडी, सीबीआई आदि से खुद को बचाना चाहते हैं। फिर बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधेगा?...     ~ एस.आर.शेंडे, सौसर

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