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पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन:


     
पुरानी पेंशन बहाली तय करेगी कि केंद्र सरकार प्रजातांत्रिक है
                                          या
                    बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कब्जे में!...

                                        प्रस्तुति: विजय कुमार बन्धु
   

         90 के दशक में उदारीकरण का दौर भारत मे आरंभ हुआ। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में पैर पसारने के लिए लालायित होने लगी। वे देश में अपने हित साधने के लिए लिए केंद्र सरकार के ऊपर दबाव बनाने लगे और कामयाब भी हुए। उदारीकरण के दौर का पहला बड़ा शिकार केंद्र और राज्य के लगभग 50 लाख शासकीय कर्मचारी हुए। 
          बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने दबाव समुह के माध्यमो से केंद्र सरकार के कान भर दिए की शासकीय कर्मचारियों को दी जानेवाली पेंशन/पारिवारिक पेंशन से सरकार पर बोझ बढ़ा रहा है। इसे हमें सौंप दिया जाए साथ ही इससे होने वाले लाभ केन्द्र सरकार को अतिरंजित वर्णन कर बता भी दिये। इसके स्थान पर न्यू पेंशन स्कीम की अवधारणा को रखा एवम बढ़ा-चढ़ाकर बता दिया कि भावी कर्मचारियों इससे क्या-क्या लाभ होंगे।        
          उदारीकरण के जनक प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव की सरकार से लेकर कांग्रेस की तमाम सरकारे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस प्रलोभनो में आने से बचते रही। सत्ता का वैराग्य खत्म होने के बाद सत्तासीन हुई अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन को बंद करने के बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्वार्थ को समझ नहीं पाई और 2004 में अध्यादेश के माध्यम से पेंशन/पारिवारिक पेंशन बंद करने का निर्णय लेकर न्यू पेंशन स्कीम को हरी झंडी दे दी।चूंकि न्यू पेंशन स्कीम का प्रभाव उस समय के नौकरशाह और कर्मचारियो पर नहीं पड़ना था। इसलिए कर्मचारी संगठनों में सारी समझ होने के बावजूद मौन धारण कर लिया था। उनकी मानसिकता रही हो की इससे हमे क्या फर्क पडता है? हमारी पेंशन को तो कोई खतरा नही है। वे भूल गये शायद की उनकी ही भावी पीढ़ी इस मकड़जाल मे उलझने से बच नही पायेगी। कर्मचारी संगठनों के मौन का दंड लगभग देश के 50 लाख कर्मचारी भुगत रहे हैं। उनका सेवानिवृत्ति के उपरांत का भविष्य अंधकारमय हो गया है। वह इस लायक भी नहीं रहे हैं कि सेवानिवृत्ति के उपरांत स्वयं के भी उदर-पोषण का भार संभाल पाने में सक्षम हो। फिर परिवार के उदर-पोषण और उनके सुख सुविधाओं का ख्याल रखने की बात तो बहुत दूर की है। 
           सेवानिवृत्ति के उपरांत न्यू पेंशन स्कीम के रूप में मिलने वाली राशि सरकार से मिलने वाली वृद्धावस्था पेंशन से थोड़ी बहूत ही ज्यादा होगी। लाखो रूपये NSDL खाते मे कर्मचारी के जमा रहने के बावजूद बहुत कम राशि प्रतिमाह न्यू पेंशन स्कीम के तहत मिलेगी। जिसमें जीवन यापन करना सेवानिवृत्त कर्मचारी के लिए बहुत ही दुष्कर हो जाएगा।कर्मचारी की मृत्यु होने पर यह कर्मचारी की जमा राशि भी NSDL के कब्जे मे चली जायेगी। 
          बहुराष्ट्रीय कंपनियों के और केंद्र सरकार के दुष्चक्र को तोड़ने का बीड़ा NMOPS नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम राष्ट्रीय अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री विजय कुमार बंधु ने उठाया है। उनके नेतृत्व में पुरानी पेंशन बहाली का राष्ट्रीय अभियान देश में आग की तरह तेजी से फैल रहा है। देश के कोने-कोने से कर्मचारियों का भारी समर्थन उन्हें मिल रहा है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर पुरानी पेंशन बहाली का दबाव बनते जा रहा है। क्योंकि राजनीतिक दल कहीं ना कहीं अंततः सत्तासुख का सपना देखते रहते हैं और यह सपना तब ही पूरा हो सकता है जब कर्मचारियों के बहुत बड़े समूह और उनके पारिवारिक सदस्यों का समर्थन मिले। 
         श्री विजय कुमार बंधु के नेतृत्व में 30 जून को दिल्ली में विभिन्न प्रांतों के प्रांत अध्यक्षों और पदाधिकारियों की उपस्थिति में कार्ययोजना बनी। इस कार्ययोजना के पहले श्री विजय कुमार बंधु ने NMOPS का दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल राष्ट्रीय  सम्मेलन कर अपनी ताकत से जता दिया था कि पुरानी पेंशन बहाली की मांग को नजरअंदाज करना सत्ताधारी दल के लिए अशुभकारी होगा। 30 जून को बनाई कार्य योजना के अनुसार 28 अक्टूबर को देश के प्रत्येक सांसद के आवास के सामने एक दिवसीय धरना, आंदोलन और उपवास पेंशन विहीन कर्मचारियो को करना है और 26 नवंबर को संसद का घेराव कर कार्यपालिका और व्यवस्थापिका को संकेत कर देना है कि इस देश का कर्मचारी आपसे सेवानिवृत्ति के उपरांत की जीवन यापन की सुरक्षा चाहता है। कानून बनाना आपके हाथ में हैं इसलिए पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली का कानून बनाइए।
          इसी संदर्भ में मध्यप्रदेश के NMOPS के प्रदेश अध्यक्ष श्री परमानंद डेहरिया के आह्वान पर 15 जुलाई को प्रदेश के प्रत्येक जिला मुख्यालयों पर बैठकों का आयोजन किया गया था। जिसे प्रदेश के तमाम विभागों के पेंशन विहीन कर्मचारियों का समर्थन मिला। NMOPS राष्ट्रीय अभियान को मिल रहे भारी समर्थन की वजह से देश व प्रदेशो की सरकार पुरानी पेंशन बहाली के दबाव को महसूस कर रही है। सत्ताधारी दलो को इस बात की आशंका सता रही है कि यदि पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाल नहीं की गई तो सरकार का आईना कहलाने वाले कर्मचारी नाराज ना हो जाए और उन्हें सत्ता से बेदखल न कर दे। राजस्थान सरकार ने पुरानी पेंशन लागू करने की दिशा मे सराहनीय रूप से आगे बढी है। कर्मचारी जगत उम्मीद कर रहा है कि केंद्र सरकार और देश के अनेक प्रदेशो की सरकार भी इस दिशा में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के पहले निर्णय लें लेगी।
         श्री विजय कुमार बंधु ने देश के प्रधानमंत्री जी, राष्ट्रपति जी, केन्द्र सरकार के मंत्रियो सहित  प्रशासनिक अधिकारियों के साथ कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों और नौकरशाहो को अवगत करा दिया है कि कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन बहाली क्यों आवश्यक है। अब केंद्र और राज्य सरकारों को तय करना है कि वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथ का खिलौना  बने  रहना चाहती है या लंबा जीवन शासन की सेवा में तन मन से गुजार देने वाले कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय लेकर लोकतांत्रिक सरकार होने का परिचय देंना चाहती है।
                            - एक पेंशनविहीन केन्द्रिय कर्मचारी

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