चौधरी चरण सिंह जन्म-दिवस
उन्हें याद करने का मतलब!..
- अशोक प्रकाश
28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक मात्र कुछ महीने भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री के रूप में देश की संसदीय व्यवस्था की कमान संभालने वाले चौधरी चरण सिंह को 'किसानों का मसीहा' के रूप में याद किया जाता है। सर छोटूराम के बाद किसानों के प्रबल हितैषी के रूप में पहचान बनाने वाले वे सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेता माने जाते हैं। किसान समर्थक कानूनी सुधारकों में उन्हें विशेष स्थान प्राप्त है। पिछले साल जब से संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा चलाए गए जुझारू किसान संघर्षों के फलस्वरूप मोदी सरकार को कॉरपोरेट हितैषी तीन कृषि संबन्धी कानूनों को वापस लेना पड़ा है, चौधरी चरण सिंह को याद करना विशेष महत्त्व रखता है।
चौधरी चरण सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत में आज के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ जनपद के नूरपुर गाँव में 23 दिसम्बर, 1902 को हुआ था। किसानी संघर्षों में अग्रणी जाटों के वंश में पैदा हुए चौधरी चरण सिंह को किसानों की दशा-दुर्दशा की समझ विरासत में मिली थी। उनका जन्म जिस तरह 'काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में' हुआ था, उन्हें किसानों की बदहाल जिंदगी की हकीकत इसी कथा-कहानी से नहीं पता चली थी। इस परिवेश में रहते हुए भी उन्होंने पिता चौधरी मीर सिंह के मार्गदर्शन में अपनी शिक्षा-दीक्षा शुरू की। स्थानीय स्तर पर प्रारम्भिक शिक्षा के बाद उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय (सम्प्रति डॉ भीमराव अंबेडकर आगरा विश्वविद्यालय) से 1928 में कानून की डिग्री हासिल की। इसके बाद अपनी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से गाज़ियाबाद में वक़ालत करते हुए उन्होंने किसानों के दुखदर्द को और नजदीक से जाना-पहचाना। महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह (1930) से प्रभावित होकर जब उन्होंने गाज़ियाबाद-दिल्ली सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक बनाकर अंग्रेजी राज का नमक-कानून तोड़ा तो उन्हें छह माह की सजा हुई। इसके बाद तो उन्होंने स्वयं को पूरी तरह आज़ादी के आंदोलन में झोंक दिया।
आज़ादी मिलने के पश्चात उत्तरप्रदेश के मंत्री के रूप में उन्होंने 1जुलाई,1952 से राज्य में जमींदारी उन्मूलन कानून लागू करवाया। इससे गरीबों को न केवल जमीन मिली बल्कि सामन्तों-जमींदारों का वास्तविक किसानों पर शोषण-उत्पीड़न भी कम हुआ। उनके द्वारा ही किसान हितैषी कृषि उपज मंडी विधेयक उत्तरप्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत किया गया था। उनकी सम्मति पर लेखपाल पद के सृजन के बाद जमीन के वास्तविक मालिकाना हक की जाँच-पड़ताल शुरू हुई जिसकी फ़ायदा न केवल गरीब किसानों को हुआ बल्कि सामन्तों के उत्पीड़न पर भी अपेक्षाकृत बंदिश लगी। जमींदारों-सामन्तों के द्वारा अनधिकृत तौर पर जमीनों के कब्ज़ों पर अंकुश लगाने के लिए 1954 में उन्होंने उत्तरप्रदेश भूमि संरक्षण कानून पारित करवाया। केंद्र सरकार में गृहमंत्री बनने पर उन्होंने मण्डल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना कर पिछड़ों और अल्पसंख्यक समुदायों के हित में एक बड़ा कदम उठाया। इसी प्रकार 1979 में वित्तमंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण बैंक की स्थापना कर किसानों के लिए सस्ते कृषि-ऋण का दरवाज़ा खोला।
29 मई, 1987 को उनके निधन के पश्चात उनके समाधि स्थल को 'किसान घाट' का नाम दिया गया जहाँ जाकर किसान आज भी प्रेरणा पाते हैं। यद्यपि सन 2001 से ही उनके जन्मदिन 23 दिसम्बर को 'किसान दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा किंतु संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा दिल्ली की सीमाओं पर धरना देते हुए उनके जन्मदिन पर विशेष कार्यक्रम करने का आह्वान करने के बाद से देशभर में इस दिन विशेष उत्साह के साथ किसान दिवस मनाया जाता है। उनके कुछ प्रसिद्ध कथन आज भी याद करने योग्य हैं, जैसे- 'सच्चा भारत गाँवों में बसता है', 'जब तक किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होगी, तब तक देश प्रगति नहीं करेगा'।
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