स्वामी सहजानंद सरस्वती और
किसान आंदोलन
किंतु, आज इन सबसे अलग एक ऐसे शख़्स की बात की जा रही है जिसका जन्मदिन महाशिवरात्रि को पड़ता है। जी, महाशिवरात्रि के दिन (22 फरवरी सन् 1899 ई.) में हुआ था। वे हुए तो थे एक धर्मविश्वासी परिवार में पैदा, स्वभावतः जीवन के आरम्भिक चरण में उसी ओर झुके रहे किन्तु बाद में पाखण्डवाद के घोर विरोधी सिद्ध हुए। ये थे सहजानंद सरस्वती जिनका नाम उनके खानदान के कारण नहीं, देश के संभवतः पहले 'संगठित किसान आंदोलन के जनक और संचालक' रूप में जाना जाता है। 26 जून, 1950 को उनका निधन हुआ। आज उनके स्मरण-दिवस पर प्रस्तुत है उनके वे कुछ विशिष्ट विचार जिन्हें अपनाना देश के राजनेताओं को आज भी नागवार गुजरता है।
जो अन्न – वस्त्र उपजाएगा, अब सो कानून बनाएगा।
भारतवर्ष उसी का है, अब शासन वही चलाएगा।
1. जमीन तो किसान ही जोतते-बोते हैं। जमींदार और उसके बाल-बच्चे कहीं हल चलाते नहीं देखे गए. मगर जमीन का मालिक माना कौन जाता है? किसान या जमींदार?
2. किसान सभा उन शोषित और सताये हुए लोगों की है जिनका भाग्य खेती पर निर्भर करता है, यानी जो खेती पर ही जिंदा रहते हैं।
3. स्वराज और आजादी का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि विदेशी शासन हटाया जाए और अपना राज कायम किया जाए। शासितों व शोषितों के लिए जो शासन बेगाना है, वही हटाना चाहिए।
4. भूमि-जलमार्गों, ऊर्जा-संपदा के सारे स्रोतों का राष्ट्रीयकरण और जिनके पास विशाल भूसंपत्ति है, उसका अधिग्रहण कर लिया जाए और उसे उन लोगों के बीच उचित ढंग से बांटा जाए जो भूमिहीन हैं अथवा छोटे प्लाटों के मालिक हैं।
5. भूख-मौत के बन्दी जागो, जागो भूमण्डल के दीन।
न्याय चला अंधेर मिटाने, और बनाने विश्व नवीन।
6. आज जहां तिरंगा झंडा राष्ट्रवाद का प्रतीक है, वही लाल झंडा शोषितों और पीड़ितों की अंतर्राष्ट्रीय एकता और आकांक्षा का प्रतीक है. इस अंतर्राष्ट्रीयता के युग में जहां किसान और मजदूर के संघर्ष अंतरराष्ट्रीय चरित्र अख्तियार कर चुके हैं, वहां वे अपना ध्येय अंतरराष्ट्रीय एकता के बिना हासिल नहीं कर सकते हैं. अतः इस तरह के प्रतीक (लाल झंडा) अनिवार्य हैं।
7. हम तो यहां शोषण के तीनों बन्धनों से जनता की पूरी स्वाधीनता स्थापित करना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि जनता के आकाओं के हाथ से उन समस्त ताकतों का सूत्र ही छीन लें, जिसके जरिये वे किसानों, मजदूरों और धन के अन्य उत्पादकों का आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण करते हैं।
8. किसान भाइयो, मांगने से कुछ नहीं मिलेगा. अपनी ताकत से ही अपना हक आप पा सकते हैं. आपकी ताकत क्या है? एका है आपकी ताकत।
9. हमने भारत माता की जय, जय हिंद आदि नारे बहुत लगाये. अब समय पलटा है. नारे भी बदल जाएं. 'जय किसान', 'जय मजूर' अब हमारे यही नारे होंगे।
"जो अन्न वस्त्र उपजायेगा, अब सो कानून बनायेगा। भारतवर्ष उसी का है, अब शासन वही चलायेगा" – यही हमारा मूलमंत्र हो।
10. किसान समझ लें कि वर्ग युद्ध में पड़ने पर जमींदार, सरकार और उनके मददगार-सलाहकार हमें ग्रस लेने, मिटा देने, पस्त कर डालने की सारी कोशिशें पत्थर का दिल बनाकर करेंगे।
11. गांव में जो सबसे दबे दुखिया हैं, मजदूरी करते हैं, उन्हें अपनाना होगा, उठाना होगा, तैयार करना होगा. आज उन्हीं का युग है. वही साथी बनेंगे, तभी विजय होगी. याद रहे, मजदूर-किसान राज का सपना इसके बिना पूरा नहीं हो सकता।
12. अर्ध सर्वहारा या खेत-मजदूर ही जिनके पास या तो कुछ भी जमीन नहीं है या बहुत थोड़ी है और टुटपुंजिया खेतिहर जो अपनी जमीन से किसी तरह काम चलाते हैं, गुजर-बसर करते हैं, यही दो दल हैं जिन्हें हम किसान मानते हैं, जिनकी सेवा के लिए हम लालायित हैं, और अंततोगत्वा वे ही लोग किसान सभा बनाएंगे, उन्हें ही ऐसा करना होगा।
13. हमें तो क्रांति की सफलता के लिए सरकार की नीव और बुनियाद को ही उलट देना होगा।
14. मैं कमाने वाली जनता के हाथों में ही सारा शासन सूत्र औरों से छीन कर देने का पक्षपाती हूँ।
15. धर्मों का झगड़ा विश्वास का नहीं, उनके अंधविश्वास का है।
16. जनता की लड़ाइयों में वही जीतेते हैं जिन्हें न केवल अपने में पूरा विश्वास होता है, वरन अपने लक्ष्य और जनता में भी. बिना इन तीन विश्वासों के विजय असंभव है और अगर यह विश्वास हो, तो उसे कोई रोक भी नहीं सकता।
17. जमीन के बंदोबस्ती की वर्तमान प्रणाली में आमूल परिवर्तन किए बिना खेती के संबंध के पुनर्निर्माण की कोई भी ऐसी पद्धति काम में लाई नहीं जा सकती जो परस्पर संबद्ध हो, जिसमें किसानों को उचित लगान देनी पड़े, जमीन का स्थाई बंदोबस्त हो तथा स्थान-स्थान पर सिंचाई के साधनों की उचित व्यवस्था हो जिसके फलस्वरूप पैदावार बढ़े और खेती का विस्तार हो।
18. किसान सभा के सभी कार्यकर्ताओं का पवित्र कर्तव्य है कि अर्वाचीन धर्म की इस प्रवचना का भंडाफोड़ करें और ख्याल रखें कि जनता के दिल और दिमाग से इसका जादू एक दम मिट जाए।
19. शांतिपूर्ण लड़ाई, सत्याग्रह या संघर्ष करें तो हम पर अनुशासन की तलवार पड़ेगी, यह अजीब बात है. तब जानबूझकर हम गला घुटने दें? आत्महत्या करें?
सोचिए और कुछ कीजिए! गाँव-गाँव किसानों, मजदूरों, बेरोजगारों को चेतनाबद्ध कीजिए। आज के नए कम्पनीराज को बेनक़ाब कीजिए। शोषण पर आधारित व्यवस्था के स्थान पर सच्चा लोकतंत्र स्थापित कीजिए।
(यह आलेख मूलतः अखिल भारतीय किसान महासभा, बिहार का सम्पादित रूप है.)
Jai Kisan Jai Jawan
ReplyDeleteRajkumar Bharat
09255246238