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चलो बनाएँ बागेश्वर धाम!

                     सर मत पीटिये!..

         क्यों नहीं फले-फूलेगा,

                                  ये बागेश्वर धाम

       मारे-मारे जब फिरते हैं

                                 नौजवान बे-काम!..

बागेश्वर धाम के नाम से मशहूर हो रहे युवा 'बाबा' धीरेन्द्र शास्त्री की बड़ी चर्चा है इन दिनों! बाबा चमत्कार पे चमत्कार किए जा रहे हैं और जनता सौ से हजार, हजार से लाख और लाख से करोड़ की संख्या में उनकी दीवानी हो रही है। कभी सोचा, ऐसा क्यों?... और क्यों नहीं? 

क्या यह पहली बार है? क्या धीरेन्द्र शास्त्री अकेले हैं इस कारोबार में? राजनीतिक बाबा क्या ज़्यादा अच्छे हैं कि आप वे जो कहते हैं, उसे मान लिया करते हैं? और जो लोग इन धार्मिक-राजनीतिक बाबाओं को नहीं मानते वे क्या कर रहे हैं? 'मठ' तो हर जगह हैं! गेरुआ, अचलाधारी, श्वेताम्बरी, पीताम्बरी, काषायाम्बरी, हरिया बाबा, काली कोटी, काली कमली, सूटेट-बूटेट, टाईधारी...सब तरह के बाबा अपने-अपने मठ-आश्रम-कुटिया-महल सजाए आपका इंतज़ार कर रहे हैं! जाइए, वचनामृत का पान कीजिए, झाड़फूंक कराइए, दर्द-दुःख-दारिद्र्य से मुक्ति पाइए!

क्या आपको पता या याद है कि ये चमत्कार आदिवासी, अशिक्षित, अर्द्ध-शिक्षित इलाकों में ही ज़्यादा क्यों होता है? क्या वहाँ यह जीने का एक तरीका या मनोरंजन का एक साधन है? और यह नौकरिया-ज्ञान भी वास्तव में जीवन की कितनी और कैसी शिक्षा/सीख दे पाने में समर्थ है?.. चाहे राजों-महाराजों के जमाने में रहा हो, अंग्रेजों के जमाने में रहा हो या आज, नौकर-सेवक-सर्वेंट तो आज्ञा का गुलाम ही रहा है, रहेगा! हाँ, अगर यह सेवा धोखा हो तब बात और है! तब आप सेवक से अधिकारी या नेता बन जाते हैं! फिर आप 'बाबा' क्यों नहीं बन सकते?..हर्रै लगै न फिटकरी, रंग चोखा-चोखा!

जब पूरे कुएँ में भाँग पड़ी हो  रोजी-रोटी के लाले पड़े हों तब ये या ऐसे बाबा लोग नहीं बनें तो क्या करें...अगर ये ऐसा कुछ करिश्माई व्यापार नहीं करें तो क्या करें? दूसरों का हो न हो, अपने दुःख-दारिद्र्य का नाश तो हो! आख़िर ये 'आत्मनिर्भर' और कैसे बनेंगे?..

 हर साल-दो साल में यहाँ या वहाँ ऐसे चमत्कारी बाबा अवतरित होते रहते हैं। तब तक उनका धंधा फलता-फूलता रहता है जब तक वे प्रमाणित और वैधानिक राजनीतिक या ब्यूरोक्रेटिक बाबाओं से तालमेल बिठाने में सफल रहते हैं, भक्तों के चढ़ावे का अच्छा-खासा हिस्सा उनके हवाले करते रहते हैं या फिर उनका वोट-बैंक बढ़ाने के काम आते रहते हैं। नहीं तो आशारामराहीम बन जाते हैं और चमत्कार से अर्जित अपनी संपत्ति अपने से बड़े चमत्कारी सांस्थानिक बाबाओं को सौंप अपने जीवन की दुआ करते हैं।

कभी सोचा आपने कि जहाँ अंधविश्वासी ही ज्ञानी, परम-ज्ञानी माना जाता हो, लम्पट और धूर्त ही समझदार विद्वान और विषय-मर्मज्ञ माना जाता हो, वहाँ और क्या होगा?  और जहाँ इन चमत्कारियों का निर्माता/संरक्षक अदानियों और राजनेताओं का गिरोह हो वहाँ और क्या होगा! क्यों नहीं जो खुद ऐसे ही चमत्कारों पर सवार होकर राज कर रहा हो वह ऐसे शास्त्रियों को उछालेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि इनको उछालने वाले वही हैं जो ऐसा कर पाने में असफल हैं या इनके बूते ही थोड़ा खुद भी उछल जाने की फ़िराक में हैं! जब से बाबा का विरोध शुरू हुआ बाबा लाखपति से करोड़पति होने लगे।

तो दो बातें गाँठ बांध लीजिए:

(1) जब तक नौजवान, शिक्षित या अशिक्षित बेकाम-बेकार घूमेंगे तो धीरेन्द्र शास्त्री बनना शर्म की नहीं, श्रेष्ठता और ज्ञान की, बुद्धिमानी की निशानी मानी जाएगी!

(2) जब तक बाबाओं, योगियों, भोगियों - राजनीतिक या अराजनीतिक की पूजा होती रहेगी आप ऐसे चमत्कार को नमस्कार करते रहेंगे।

बाकी, आपको क्या करना है- यह आप जानें! बाबा बनने का ऑफर स्वीकार कर चमत्कार को नमस्कार करेंगे या चमत्कार पर वार करेंगे?...

                                ★★★★★★★

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