चुनाव:
आगरा विश्वविद्यालय शिक्षक-संघ का!
आगरा विश्वविद्यालय शिक्षक-संघ 15 दिसम्बर, 2017 को अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर रहा है। अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष (एक महिला एवं एक पुरुष), महामन्त्री, कोषाध्यक्ष, दो संयुक्त मंत्री (एक महिला एवं एक पुरुष), दो उत्तर-प्रदेश विश्वविद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक-संघ (फुपुक्टा) प्रतिनिधियों तथा दस कार्यकारिणी सदस्यों सहित कुल उन्नीस पदों के लिए होने वाले चुनाव में कुल अट्ठावन प्रत्याशी मैदान में हैं! इनमें अध्यक्ष के लिए सात, उपाध्यक्ष के लिए नौ (छह पुरुष और तीन महिला), महामन्त्री के लिए चार, संयुक्त-मंत्री के लिए कुल छह (तीन पुरुष और तीन महिला), कोषाध्यक्ष के लिए तीन, फुपुक्टा-प्रतिनिधि के चार तथा पच्चीस कार्यकारिणी सदस्य के प्रत्याशी ताल ठोंक रहे हैं। इस वर्ष यह चुनाव इसलिए ज़्यादा महत्त्वपूर्ण और आकर्षक हो गया है क्योंकि इस विश्वविद्यालय शिक्षक-संघ के इतिहास में पहली बार सभी शिक्षकों को मतदान का अधिकार मिला है। इसके पहले महाविद्यालयों के प्रतिनिधि ही चुनाव में हिस्सा ले पाते थे।
इस चुनाव की घोषणा होने के पूर्व ही कई प्रत्याशियों ने अपना चुनाव प्रचार प्रारम्भ कर दिया था। एक प्रत्याशी ने तो संसदीय चुनावों की तरह बहुत पहले से पोस्टर, बैनर, पर्चा आदि तैयार कर बंटवाना प्रारम्भ कर दिया। कुछ के लिए तो यह कम से कम विधायकी के चुनाव का यह पूर्वाभ्यास है। संयुक्त-मंत्री पद के एक प्रत्याशी तो यह कहते सुने गए कि अगर वे जीतते हैं तो एम.एल.ए. से पहले रुकने वाले नहीं! दर असल, लोकतंत्रीय चुनाव की मलाई नीचे तक के किसी भी प्रकार के चुनाव को वैसा ही बना देती है। भले ही इन चुनावों की प्रकृति और घोषित लक्ष्यों में अंतर हो, पर बिडम्बना यही है कि सब चुनावों से मलाई पाने की लालसा रखते हैं।
देखो, इस चुनाव से मलाई मारने का अधिकार किसे मिलता है!...कहने के तो सब गंगाजल के धुले हैं।🔺
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