Skip to main content

                  'उच्च-शिक्षा बचाओ' दिवस                                         पूरे देश में विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों में
                              धरना-प्रदर्शन







विगत ३० नवम्बर को अखिल भारतीय विश्वविद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक महासंघ ( AIFUCTO )के आह्वान पर देश भर के शिक्षकों ने काली पट्टी बांधकर उच्च-शिक्षा सम्बन्धी केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ 'उच्च-शिक्षा बचाओ' दिवस मनाया. इस दिन विभिन्न शिक्षक संगठनों ने धरना दिया तथा सातवाँ वेतनमान विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों के शिक्षकों के लिए लागू करने में हीला-हवाली के प्रति विरोध जताया. शिक्षकों का कहना है कि जबकि प्राथमिक, उच्च-प्राथमिक, माध्यमिक विद्यालयों के लिए सातवें वेतनमान के साथ कुछ अन्य सुविधाओं की भी घोषणा की गयी है, किन्तु उच्च शिक्षा के प्रति सरकार भेदभाव कर रही है.
                  सातवाँ वेतनमान विश्वविद्यालय-महाविद्यालयों के शिक्षकों को देने की जो स्थिति बनाई गयी है, उससे लगता है कि सरकार उन्हें यह वेतनमान देना ही नहीं चाहती. शिक्षकों के अनुसार पहले केंद्र-सरकार जो अस्सी फीसदी हिस्सा राज्य सरकारों को देती थी, उसे घटाकर पचास फीसदी कर दिया गया है. राज्य सरकारें पहले ही बाकी का भी खर्च कर सकने में असमर्थता जताती रहीं हैं, अब तो वे शायाद इसे बिलकुल ही न मानें .इसके अलावा प्रत्येक ग्रेड-पे पर इंट्री-लेवल को कम करने के साथ-साथ यूजी-पीजी प्राचार्यों में भी विसंगत्ति और विभेद पैदा किया गया है. शिक्षकों की प्रोन्नति के प्रावधानों में भी तमाम अड़चनें पैदा की गई हैं. शिक्षक-संगठन इसे उच्च-शिक्षा को धीरे-धीरे कॉरपोरेट हाथों में सौंप देने की कोशिश के रूप में भी देखते हैं.🔺

Comments

Popular posts from this blog

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

नाथ-सम्प्रदाय और गुरु गोरखनाथ का साहित्य

स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र परीक्षा की तैयारी नाथ सम्प्रदाय   गोरखनाथ         हिंदी साहित्य में नाथ सम्प्रदाय और             गोरखनाथ  का योगदान                                                     चित्र साभार: exoticindiaart.com 'ग्यान सरीखा गुरु न मिल्या...' (ज्ञान के समान कोई और गुरु नहीं मिलता...)                                  -- गोरखनाथ नाथ साहित्य को प्रायः आदिकालीन  हिन्दी साहित्य  की पूर्व-पीठिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।  रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल को 'आदिकाल' की अपेक्षा 'वीरगाथा काल' कहना कदाचित इसीलिए उचित समझा क्योंकि वे सिद्धों-नाथों की रचनाओं को 'साम्प्रदायिक' रचनाएं समझत...

अवधी-कविता: पाती लिखा...

                                स्वस्ती सिरी जोग उपमा...                                         पाती लिखा...                                            - आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' श्री पत्री लिखा इहाँ से जेठू रामलाल ननघुट्टू कै, अब्दुल बेहना गंगा पासी, चनिका कहार झिरकुट्टू कै। सब जन कै पहुँचै राम राम, तोहरी माई कै असिरबाद, छोटकउना 'दादा' कहइ लाग, बड़कवा करै दिन भै इयाद। सब इहाँ कुसल मंगल बाटै, हम तोहरिन कुसल मनाई थै, तुलसी मइया के चउरा पै, सँझवाती रोज जराई थै। आगे कै मालूम होइ हाल, सब जने गाँव घर खुसी अहैं, घेर्राऊ छुट्टी आइ अहैं, तोहरिन खातिर सब दुखी अहैं। गइया धनाइ गै जगतू कै, बड़कई भैंसि तलियानि अहै। बछिया मरि गै खुरपका रहा, ओसर भुवरई बियानि अहै। कइसे पठई नाही तौ, नैनू से...