Skip to main content

आगरा विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (auta) चुनाव:


            आगरा विश्वविद्यालय शिक्षक संघ चुनाव में
                      डॉ. मुकेश भारद्वाज-अध्यक्ष और
                         डॉ.निशांत चौहान-महामन्त्री


      गत 15 दिसम्बर को आगरा विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (AUTA) का चुनाव संपन्न हुआ। पहली बार शिक्षकों ने पहले से चली आ रही प्रतिनिधि-प्रणाली के स्थान पर प्रत्यक्ष आम -चुनाव द्वारा अपने प्रतिनिधियों का चुनाव किया। इसके लिए शिक्षकों ने काफी पहले से अभियान चलाया था। इसका सकारात्मक परिणाम आम शिक्षक मतदाताओं द्वारा चुनाव के रूप में सामने आया। इसमें शिक्षकों ने पूरी शिद्दत के साथ भागीदारी कर लोकतांत्रिक परम्परा का जीवन्त नमूना पेश किया।






       इस चुनाव में कुल 1008 मतदाताओं में से 961 लगभग 96% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर अपने पसंदीदा प्रत्याशियों को जिताने का भरपूर प्रयास किया।  चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए डॉ मुकेश भारद्वाज (269) ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी डॉ ओमवीर सिंह (202) को 65 मतों से पराजित किया। उपाध्यक्ष पद (पुरुष) के दो पदों के लिए 6 प्रत्याशियों में  डॉ दिग्प्रताप सिंह (456) और डॉ अवधेश कुमार जौहरी (348) ने अन्य प्रत्याशियों  को पछाड़ कर विजयश्री हासिल की। उपाध्यक्ष (महिला) के एक पद के लिए डॉ ममता सिंह (452) ने डॉ अनुराधा गुप्ता (282) को पराजित किया। महामन्त्री पद के लिए डॉ निशांत चौहान (323) ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी डॉ भूपेंद्र चिकारा (297) को 26 मतों से हराया। इस पद के चार प्रत्याशियों में निवर्तमान महामन्त्री डॉ ए.के. सिंह (228) भी थे। संयुक्त सचिव (पुरुष) पद पर डॉ मनोज शर्मा (321) अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी डॉ पीयूष चौहान (313) को कड़े संघर्ष में हरा कर विजयी हुए। संयुक्त सचिव (महिला) पद के लिए डॉ सुषमा यादव ( 442) ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी डॉ अलका सिंह (292) को पराजित किया। कोषाध्यक्ष पद पर डॉ एम. एस. चन्दवारिया और डॉ सुनील पाठक दोनों ने 328 मत प्राप्त किए। बाद में टाई के माध्यम से डॉ एम. एस. चंदवारिया को विजयी घोषित किया गया। फुपुक्टा-प्रतिनिधि पद के चार प्रत्याशियों में डॉ सुंदरवीर सिंह और डॉ मुकेश कुमार विजेता हुए। दस सदस्यीय कार्यकारिणी हेतु डॉ दिग्विजय पाल सिंह, डॉ संजय जैन, डॉ रणवीर सिंह, डॉ विश्वकान्त गुप्ता, डॉ प्रेम प्रभाकर, डॉ सविता सिंह, डॉ मिथिलेश कुमारी, डॉ कवि शंकर वार्ष्णेय, डॉ प्रशांत अग्रवाल और डॉ मनोज पाण्डेय चुने गए।⚉

Comments

Popular posts from this blog

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित ...

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

हुज़ूर, बक्सवाहा जंगल को बचाइए, यह ऑक्सीजन देता है!

                      बक्सवाहा जंगल की कहानी अगर आप देशी-विदेशी कम्पनियों की तरफदारी भी करते हैं और खुद को देशभक्त भी कहते हैं तो आपको एकबार छतरपुर (मध्यप्रदेश) के बक्सवाहा जंगल और आसपास रहने वाले गाँव वालों से जरूर मिलना चाहिए। और हाँ, हो सके तो वहाँ के पशु-पक्षियों को किसी पेड़ की छाँव में बैठकर निहारना चाहिए और खुद से सवाल करना चाहिए कि आप वहाँ दुबारा आना चाहते हैं कि नहीं? और खुद से यह भी सवाल करना चाहिए  कि क्या इस धरती की खूबसूरत धरोहर को नष्ट किए जाते देखते हुए भी खामोश रहने वाले आप सचमुच देशप्रेमी हैं? लेकिन अगर आप जंगलात के बिकने और किसी कम्पनी के कब्ज़ा करने पर मिलने वाले कमीशन की बाट जोह रहे हैं तो यह जंगल आपके लिए नहीं है! हो सकता है कोई साँप निकले और आपको डस जाए। या हो सकता कोई जानवर ही आपकी निगाहों को पढ़ ले और आपको उठाकर नदी में फेंक दे!..न न यहाँ के निवासी ऐसा बिल्कुल न करेंगे। वे तो आपके सामने हाथ जोड़कर मिन्नतें करते मिलेंगे कि हुज़ूर, उनकी ज़िंदगी बख़्श दें। वे भी इसी देश के रहने वाले हैं और उनका इस जंगल के अलावा और...