तो पूजाओं से किसी को कोई खतरा नहीं!
क्यों परेशान हो रहे हैं?.. उन्हें सब पता है! दुनिया एक रंगमंच है और वे उसके नट। हम सब इस नाटक के पात्र-महापात्र हैं। फिर काहे का डर?... महादेव की नगरी काशी हो या हर की पैड़ी हरिद्वार- सब उस नटराज की लीलाओं के रंगमंच हैं। कब क्या कहाँ होना चाहिए- सब निर्धारित करने का अधिकार उसी को है या फिर थोड़ा-बहुत उसके मठ-महंतों को। इसलिए क्यों परेशान हैं?.. बूटी छानिए और जब तक जमराज का बुलावा न आए, जमे रहिए।
कोरोना भी प्रभु की लीला है। उसी के निर्देश-आदेश पर उसके संत-महंत दिन-रात आपकी सेवा में लगे हैं। पूजा-अर्चना कर रहे हैं। उसी की इच्छा थी कि कहा जाय- 'जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं!' अमिताभ बच्चन का डायलॉग याद कीजिए! अब नवरात्रि के साथ 'नया साल आशा की नई किरण लेकर आया है!' साथ में आया है हरिद्वार, हरद्वार या हरीद्वार का महाकुम्भ का महा त्योहार!...जाइए, आप भी डुबकी लगा आइए। स्वर्गद्वार के पासपोर्ट की तरह आरटीपीसीआर की निगेटिव रिपोर्ट भी लेते जाइए! घबराइए नहीं, प्रभु की इच्छा होगी तो जैसे बाकी लाखों को मिली है, आपको भी मिल ही जाएगी। फिर श्रद्धा के आगे तो सब नत मस्तक होते हैं। काहे की चिंता?..
उफ्फ!..नहीं पता था कि आप लोकतंत्र की पूजा को सब पूजाओं का सार मानते हैं! जरूर मानिए। महायज्ञ तो है ही, आहुति दीजिए। तन मन धन से समर्पित रहिए। मौका आया है। सेवा कीजिए, मेवा मिलेगा!... न...न...ना! डरिए मत! आपको कुछ नहीं होगा। बस, 'दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी' वाला भी अमिताभ बच्चन का डायलॉग याद रखे रहिए। बाकी, 'रामजी करेंगे बेड़ा पार...!'
भाई, कहा तो!... पूजाओं से सारी भव बाधाएं दूर हो जाती हैं। महाकुंभ की पूजा हो या चुनाव की, 'हर इच्छा भगवान!' खुद को साधन बनाइए, साधन। साध्य की चिंता मत कीजिए। वह तो आपकी झोली में आकर गिरेगा ही। ..
ऊँ...सत.. सत! सब हो सेट...सेट!
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