श्रद्धांजलि: प्रो.दूधनाथ सिंह
वे एक अलग अध्यापक थे! उनकी कक्षा में कोई विद्यार्थी बोर नहीं महसूस करता था। अपनी स्पष्ट समझ और धारदार शैली से वे हम सबके प्रिय अध्यापकों में से थे!...हम सब इंतज़ार करते कि प्रेमचंद पढ़ते हुए हमें अपने गाँव-गिरांव की सैर करने के अलावा और बहुत कुछ मिलेगा! गोदान- किसी होरी की कथा-व्यथा नहीं है, यह सामंती व्यवस्था की प्रतिकार-कथा है! मेहता-मालती कोई श्रेष्ठ बुद्धिजीवी पात्र नहीं हैं, वे समाज के उस मध्यवर्ग के प्रतिनिधि हैं जिसे मार्क्स ने समाज का थूक कहा है!...उनके ये शब्द मुझे आज भी नहीं भूलते!
उनकी कक्षा हमेशा उत्तेजना पैदा करने वाली होती। निराला के प्रति विद्यार्थियों के पूज्य-भाव को तोड़कर उनकी कविताओं के संघर्ष से वे उन्हें रूबरू कराते! विश्वविद्यालय से बेहतर उनके घर पर हम जैसों की क्लास होती!...'निराला:आत्महन्ता आस्था', 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे', 'प्रेमकथा का अंत न कोई', 'नमो अंधकारम', 'आखिरी क़लाम' आदि कृतियों के रचनाकार प्रोफेसर दूधनाथ सिंह को आख़िरी सलाम!
नमस्ते सर!...
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