Skip to main content

क्या आपको झूठ से प्यार हो गया है?

                    खाईं में गिरिएगा?..

आप सिनेमा देखते हैं, कहानियाँ पढ़ते हैं, क्यों?..क्या वे सत्य होती हैं, इसलिए? क्या आप यथार्थ को पसंद करते हैं?...सत्य को सचमुच पसन्द करते हैं? या आपको झूठ प्यारा लगता है? क्यों लगता है प्यारा यह झूठ? 

एक उदाहरण देखिए!..

‘देश नहीं बिकने दूंगा’ कहकर सत्ता में आने वाले मोदीजी के राज में ऐसा कोई सेक्टर नहीं बचा जिसे नीलाम नहीं किया जा रहा!.. क्या आप सार्वजनिक क्षेत्रों की नीलामी पसंद करते हैं? 

मोदी सरकार की हालत ये है कि अगर आप महज इसके झूठ गिनाने लगें ​तो आपको महसूस होगा कि आप एक अमर्यादित बहस का हिस्सा बन रहे हैं। ऐसा इसलिए है ​क्योंकि लोकतंत्र की संसदीय मर्यादा को सस्पेंड कर दिया गया है।

जैसे कि मोदी सरकार कह रही है कि वह किसानों के हित में कानून लाई है, लेकिन मूलत: ये कानून किसानों के खिलाफ पूंजीपतियों के फायदे का कानून है।

मोदी सरकार कह रही है कि वह कामगारों के हित में श्रम कानूनों में बदलाव करेगी लेकिन जो प्रस्ताव हैं वे मालिकों के हित में हैं। मजदूरों से उनकी सामाजिक सुरक्षा, प्रदर्शन और हड़ताल का अधिकार वगैरह छीना जा रहा है उन्हें फैक्ट्रियों से कभी भी निकाला जा सकता है।

सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार लगातार दोहराती रही कि भारत बहुत तेज गति से विकास कर रहा है। यह दोहराना उन्होंने तब बंद किया, जब अर्थव्यवस्था माइनस में चली गई।

मोदी सरकार कहती रही कि देश में नये अवसर पैदा हो रहे हैं। लेकिन हालत यह हुई कि सिर्फ पिछले कार्यकाल में अनुमानत: 4 से 5 करोड़ नौकरियां चली गईं और भारत में बेरोजगारी बढ़कर 45 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई। कोरोना के बाद की तबाही इसकी तीन-चार गुनी है।

मोदी सरकार बार-बार दोहरा रही है कि रेलवे का निजीकरण नहीं होगा, लेकिन एक-एक स्टेशन रोज नीलाम हो रहा है।

मोदी सरकार ने आरटीआई को ‘मजबूत’ करने का संशोधन पास किया और सूचना आयोग को हाथी का दांत बना दिया।

मोदी सरकार ने कहा कि हम भ्रष्टाचार दूर करेंगे और प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट को बदलकर कमजोर कर दिया।

प्रधानमंत्री मोदी का सबसे पहला और चर्चित वादा था कि ‘मैं देश नहीं बिकने दूंगा’ लेकिन आज कौन सा सेक्टर है जिसे नीलामी पर नहीं चढ़ाया जा रहा है?

       इन सब परिस्थितियों के बावजूद अगर 'आप' कह रहे हैं  'आएँगे तो मोदी ही!' तो क्या सचमुच देश से, देश की आर्थिक स्थिति से आपको कोई लेना-देना नहीं है?...या आपकी समझ में ये सब फालतू बातें हैं?...

           सच बताइए, क्या आपको झूठ से प्यार हो गया है! क्या इसीलिए कि सच का अमृत कड़वा होता है और झूठ का जहर मीठा?..

          सोचिएगा, एक पल के लिए ही सही!..काला चश्मा नज़र से उतारकर!

                               ★★★★★★★


Comments

  1. ये दुनिया ही झूठी है अधिकतर लोगो को झूट से ही प्यार है

    ReplyDelete
    Replies
    1. लगता ऐसा ही है राजेशजी, पर होता नहीं है। झूठ और झुट्ठे एक न एक दिन बेनक़ाब होते हैं।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

नागपुर जंक्शन-दो दुनिया के लोग

          नागपुर जंक्शन!..  आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर!..डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि! अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!.. यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य है। दोनों बहुत कुछ अलग।  इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है।  अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी उसे क्या मिल जाता है?..  आख़िर, प्रकृति तो एक दिन दोनों को एक ही जगह पहुँचा देती है!... आप क्या सोचते हैं? ..  

मुझसे जीत के दिखाओ!..

कविता:                     मैं भी चुनाव लड़ूँगा..                                  - अशोक प्रकाश      आज मैंने तय किया है दिमाग खोलकर आँख मूँदकर फैसला लिया है 5 लाख खर्चकर अगली बार मैं भी चुनाव लड़ूँगा, आप लोग 5 करोड़ वाले को वोट देकर मुझे हरा दीजिएगा! मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु-परन्तु भूल जाऊँगा आपका मौनमन्त्र स्वीकार 5 लाख की जगह 5 करोड़ के इंतजाम में जुट जाऊँगा आप बेईमान-वेईमान कहते रहिएगा बाद में वोट मुझे ही दीजिएगा वोट के बदले टॉफी लीजिएगा उसे मेरे द्वारा दी गई ट्रॉफी समझिएगा! क्या?..आप मूर्ख नहीं हैं? 5 करोड़ वाले के स्थान पर 50 करोड़ वाले को जिताएँगे? समझदार बन दिखाएँगे?... धन्यवाद... धन्यवाद! आपने मेरी औक़ात याद दिला दी 5 करोड़ की जगह 50 करोड़ की सुध दिला दी!... एवमस्तु, आप मुझे हरा ही तो सकते हैं 5 लाख को 50 करोड़ बनाने पर बंदिश तो नहीं लगा सकते हैं!... शपथ ऊपर वाले की लेता हूँ, आप सबको 5 साल में 5 लाख को 50 करोड़ बनाने का भरोसा देता हूँ!.. ताली बजाइए, हो सके तो आप भी मेरी तरह बनकर दिखाइए! ☺️☺️

आपके पास विकल्प ही क्या है?..

                          अगर चुनाव              बेमतलब सिद्ध हो जाएं तो? सवाल पहले भी उठते रहते थे!... सवाल आज भी उठ रहे हैं!... क्या अंतर है?...या चुनाव पर पहले से उठते सवाल आज सही सिद्ध हो रहै हैं? शासकवर्ग ही अगर चुनाव को महज़  सर्टिफिकेट बनाने में अपनी भलाई समझे तो?... ईवीएम चुनाव पर पढ़िए यह विचार~ चुनाव ईवीएम से ही क्यों? बैलट पेपर से क्यों नहीं? अभी सम्पन्न विधानसभा चुनाव में अनेक अभ्यर्थियों, नुमाइंदों, मतदाताओं ने ईवीएम में धांधली गड़बड़ी की शिकायत की है, वक्तव्य दिए हैं। शिकायत एवं वक्तव्य के अनुसार जनहित में वैधानिक कारवाई किया जाना नितांत आवश्यक है।।अतः चुनाव आयोग एवं जनता के हितार्थ नियुक्त उच्च संस्थाओं ने सभी शिकायतों को संज्ञान में लेकर बारीकी से जांच कर,निराकरण करना चाहिए। कई अभ्यर्थियों ने बैटरी की चार्जिंग का तकनीकी मुद्दा उठाया हैं जो एकदम सही प्रतीत होता है। स्पष्ट है चुनाव के बाद या मतगणना की लंबी अवधि तक बैटरी का 99% चार्जिंग  यथावत रहना असंभव~ नामुमकिन है।  हमारी जानकारी के अनुसार विश्व के प्रायः सभी विकसित देशों में ईवीम से चुनाव प्रतिबंधित है,बैलेट पेपर से चुनाव