शिक्षा: समान शिक्षा!
-सुयश सुप्रभ
राष्ट्रपति की सैलरी डेढ़ लाख रुपये से बढ़ाकर पाँच लाख रुपये कर दी जाती है और एससी व एसटी विद्यार्थियों की स्कॉलरशिप बंद कर दी जाती है। क्या जादूगरी है! हमें देश की समस्याओं का ऐसा समाधान नहीं चाहिए। ऐसा इलाज पाकर ही मुँह से निकलता है - "मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की"।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के सभी कैंपसों में साथियों ने जो हड़ताल की है वह असल में लोकतंत्र को बचाने की बड़ी लड़ाई का हिस्सा है। यह क्या बात हुई कि अचानक एक सर्कुलर आए और तमाम मुश्किलों का सामना करके यूनिवर्सिटी पहुँचने वाले एससी और एसटी विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप मिलना बंद हो जाए। यूजीसी के बजट में 55% कटौती करने वाली सरकार हर पाँच साल पर सांसदों की सैलरी को महँगाई के हिसाब से बढ़ाने का कानून बना चुकी है। सरकार का मकसद साफ़ है। जनता को इतना अशिक्षित रखो कि वह सवाल करना भूल जाए। उच्च शिक्षा पर हमला असल में केवल निजीकरण की साज़िश नहीं है। यह उन शोषितों की आवाज़ दबाने की भी साज़िश है जो कलम को अपनी ताकत बनाने के लिए विश्वविद्यालयों में अपनी जगह बना चुके हैं या बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
जो साथी सड़कों पर निकल रहे हैं, वे संविधान के मूल्यों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। लड़ेंगे, जीतेंगे।
राष्ट्रपति हो या चपरासी की संतान
सबको शिक्षा एक समान!
(सुयश सुप्रभ की फेसबुक वाल से)
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