Skip to main content

Higher Education:


                             यूजीसी की यशोगाथा
                                           प्रस्तुति- डॉ अरुण कुमार

अद्भुत है यूजीसी और इसके कर्ता-धर्ता । अभी ‘वेद’ से इसका पिंड छूटा ही था कि वज्रधारी धीर-गंभीर ‘इन्द्र’ ने आसन जमा लिया। आते ही स्वभावानुकूल एक केंद्रीय नेता के भाई की नियुक्ति कर सरकार में अपनी आस्था दिखाई और चिड़िया की आँख पर निशाना साधा। सचिव पद की नियुक्ति के लिए लंबी चौड़ी सूची तो बनाई पर अंतिम सूची में पुराने यार-दोस्त ही स्थान बना सके। पारदर्शिता के साथ काम करना इनका पुराना शगल है जो यहाँ भी जारी है। बी एच यू में अपने शोध-अनुभव के आधार पर सुघड़तम नियुक्ति करने वाले चेयरमैन ‘धीर-गंभीर-इन्द्र’ सचिव-नियुक्ति में भी कलाकारी कर गए हैं। सुनने में आया है कि कोई ओशो ‘जैन’ दौड़ में सबसे आगे हैं। नशीली रात के लिए मशहूर शहर इंदौर के वासी जैन इनके पुराने यार हैं जिनके प्रति इनका स्नेह-दुलार जग जाहीर है। पहले भी नियम के विपरीत ‘जैन’ को ये पदोन्नति दे चुके हैं और यहाँ उनको पदस्थापित करने के लिये कमर कस लिए हैं। अव्वल तो ‘जैन’ का सूची में आना ही आश्चर्यजनक है चयन तो दूर की बात होती। पर अध्यक्ष बनने के बाद ही लोगों ने यह कयास लगाना शुरू कर दिया था कि अब कौन लोग ,बहादुर शाह जफर मार्ग’ पर तफरी करेंगे। पिच्छले दिनों बीएचयू के दो ‘एक्सीलेंस’ प्रोफेसर भारतेन्दु और रघुवंशी यूजीसी के ‘मोस्ट-वांटेड’ प्रोफेसर नामित हुए।  संस्थान में सचिव पद अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अत: ‘धीर-गंभीर-इन्द्र’ को इस पद पर अपने किसी पुराने यार को बैठाना जरूरी था। सचिव पद के लिए बनी ‘छंटनी-समिति’ ने भी भविष्य में भी अपने आवागमन को सुगम बनाने केलिए ‘परमादेश’ के अनुरूप ही सूची बनाई। इससे ‘धीर-गंभीर-इन्द्र’ का कार्य आसान हो गया। विशेषज्ञ समिति में तो आजकल ‘थाली-के-बैगन’ ही रखे जाते हैं। क्योंकि इनसे आस्थावान लोग इस ‘स्वर्णगर्भा’ जफर मार्ग पर मिलेंगे नहीं। परधान सेवक ने भी अपना फरमान सुना ही दिया है कि विश्वविद्यालयों से निकालने वाले प्रोफेशनल्स ‘पकौड़ा’ तलें और अपनी प्राचीन  थाती (‘स्किल’) को वैश्विक स्तर पर स्थापित करें ।  यदि ऐसा न होता तो ‘धीर-गंभीर-इन्द्र’ जैसे ‘पकौड़ा-विशेषज्ञ’ को उस कुर्सी पर क्यों बैठाते जिस पर कभी डी एस कोठारी बैठ चुके हैं। न विश्वास हो तो ‘धीर-गंभीर-इन्द्र’ के सीवी(CV) को खंगाल डालिए।  न तो ‘शोध’ दिखेगा न ही ‘शोध-पत्र’! हर तरफ ‘पकौड़े’ की गंध मिलेगी। पर इस पकौड़े का असल स्वाद तो तब मिलेगा जब ओशो-जैन सचिव पद पर ‘धीर-गंभीर-इन्द्र’ के सहयोग से एक-दो दिन में आसन ग्रहण करेंगे। ‘यथा नामो तथो गुण:। ये ‘विशाखा गाइडलाइन’ पर भी काम कर चुके हैं जिसकी अनुगूँज इंदौर के चौक-चौराहे पर सुनाई देती है। तो आइये हम सब मिलकर इस परम पवित्र जोड़ी (‘धीर-गंभीर-इन्द्र’ और ‘ओशो-जैन’) का स्वागत करे और गाये ‘हरे कृष्णा हरे ’!
                     ■■■■

Comments

Popular posts from this blog

मुर्गों ने जब बाँग देना छोड़ दिया..

                मत बनिए मुर्गा-मुर्गी! एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया।.. एक दिन वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का बहाना सोचा और मुर्गे से कहा, "तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा।"  मुर्गे ने कहा, "ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !" सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है।  मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि कल से तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे, नहीं तो मैं वध कर दूँगा।  अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया।  मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए। अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया।  मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था। मालिक ने कहा कि कल...

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित ...