'राष्ट्रभाषा', सार्वजनिक शिक्षा और 'राष्ट्रवादी'
फ़ोटो-साभार फेसबुक
ऐसा लगता है जैसे शासकवर्ग सार्वजनिक शिक्षा को मटियामेट कर निजी शिक्षण संस्थानों को खुली छूट देना चाहता है। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा के मातृभाषा में चल रहे विद्यालयों को या तो बन्द किया जा रहा है या उन्हें Englsh Medium में रूपांतरित करने की कवायद चल रही है। मातृभाषा में कम से कम प्राथमिक शिक्षा देने की संवैधानिक प्रतिबध्दता को इस तरह अंगूठा दिखाया जा रहा है।
आखिर क्यों किया जा रहा है यह सब?...उत्तर बड़ा आसान और सीधा सा है। लगता है सरकार की प्राथमिकता में देश की सार्वजनिक शिक्षा न होकर कम्पनियों के लिए जरूरी शिक्षा रह गई है।...
आखिर क्यों अपने देशवासियों को उनकी भाषा में शिक्षा नहीं दी जा सकती, उनके लिए देश में रोज़ी-रोटी की व्यवस्था नहीं हो सकती? इससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि प्रत्यक्षतः विदेशी कंपनियों को देश में मुनाफ़ा के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के साथ मानव-श्रम ('मानव-संसाधन' !) को लूटने के लिए बुलाया जा रहा है! दूसरी तरफ प्रत्यक्षतः दिख रहा है कि देशी की लुटेरी कम्पनियाँ बिना किसी अवरोध के देशवासियों की गाढ़ी-कमाई का पैसा चोरी-डकैती कर विदेश भाग जा रही हैं!...
अच्छी तरह देखने-समझने की जरूरत है कि शासकों का यह 'राष्ट्रवाद'...यह 'देशभक्ति' असल में क्या है?!तिरंगे-झंडे का भी ऐसे नकली देशभक्त अपने परराष्ट्र-कम्पनी-प्रेम को छुपाने के लिए उपयोग करते हैं! 'भारत माता की जय' बोलने से आख़िर किस माता के जय होने की कामना की जा रही है जब इस देश और उसके देशवासियों के प्रति यह नज़रिया अपनाया जा रहा है?...
'राष्ट्रभाषा' के प्रति यह कैसा प्रेम है देशभक्तों का जब हिंदी-माध्यम के विद्यालयों को बंद कर उन्हें अंग्रेज़ी-माध्यम में बदल दिया जा रहा है?.... ◆◆◆
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