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अवधी-कविता: पाती लिखा...


                               स्वस्ती सिरी जोग उपमा...
                                       पाती लिखा...

                                           - आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
श्री पत्री लिखा इहाँ से जेठू
रामलाल ननघुट्टू कै,
अब्दुल बेहना गंगा पासी,
चनिका कहार झिरकुट्टू कै।

सब जन कै पहुँचै राम राम,

तोहरी माई कै असिरबाद,
छोटकउना 'दादा' कहइ लाग,
बड़कवा करै दिन भै इयाद।

सब इहाँ कुसल मंगल बाटै,

हम तोहरिन कुसल मनाई थै,
तुलसी मइया के चउरा पै,
सँझवाती रोज जराई थै।

आगे कै मालूम होइ हाल,

सब जने गाँव घर खुसी अहैं,
घेर्राऊ छुट्टी आइ अहैं,
तोहरिन खातिर सब दुखी अहैं।

गइया धनाइ गै जगतू कै,

बड़कई भैंसि तलियानि अहै।
बछिया मरि गै खुरपका रहा,
ओसर भुवरई बियानि अहै।

कइसे पठई नाही तौ, नैनू

से दुइ मेटी भरी अहै।
तू कहे रह्या तोहरिन खातिर,
राबिव एक गगरी धरी अहै।

घिव दूध खूब उतिरान अहै,

तोहरिन इयाद कै रोई थै।
गंजी से दुपहरिया काटी,
एक जूनी रोटी पोई थै।

दस दिन भवा अइया के,

रमबरना क कूकुर काटि लिहेस।
जब ओरहन देय गये ओसी,
ओकर महतारी डाँटि लिहेस।

लौंगहवा के मेड़े परसों,

छोटकवा गिरा काँकर गड़िगा।
मकरी कै जाला भरे मुला,
निकुरा मा जनम दाग परिगा।

मरि गएन रतन औ सुम्मारी,

मंगर का सरग सिधाइ गएन।
दुइनौ बुढ़वन कै तौ बनि गै,
दुइनौ अच्छी गति पाइ गएन।

जौने बुढ़वा कै जोइ मरइ,

ओका तौ जना नरक परिगा।
खटिया पै खोंखत परा रहेन,
घर वालेन का झंझट टरिगा।

पिछुवारे नरदा के तीरे,

बड़कवा पपीता फरै लाग
घूरे का कोंहड़ा फूलि रहा,
का कही करेजा बरै लाग।

चारिव कैती तोहरिन सूरत,

डोलइ जौनी मू जायी थै
आपन मन कइसौ मारि मारि,
लरिकन मा जिव बिसराई थै।

      (साभार: राम चंदर सुकुल 'भैवादी')
                             ★★★


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