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हारे हुए लोग

एक कविता~अकविता :                          

                     

ये हारे हुए लोग

कभी अपनी हार नहीं मानते..

 

'निश्चित विजय' के लिए

ये फिर-फिर

अपनी कमर कसते हैं

दुनिया के ये अजूबे लोग

घटनाओं पर नहीं

सिद्धांत पर भरोसा करते हैं

किसी व्यक्ति की जगह

सभ्यता के विकास के लिए

जीते-मरते हैं...


रक्तबीज हैं ये

आधा पेट खा और

कुछ भी पहनकर

देश और दुनिया नापते हैं

चिंगारी की तरह यहाँ-वहाँ

बिखरे इन अग्निदूतों से

दुनिया के सारे शासक

काँपते हैं!


अज़ीब हैं ये लोग

कभी अपनी हार 

नहीं मानते हैं

पूरी दुनिया के

जंगल पहाड़ खेत मैदान

इन्हें पहचानते हैं

प्राकृतिक रूप से खिलते फूल

तितलियां भौंरे कीट

हवाओं में तैरते दूर देश के 

गीत संगीत

इनके साथ 

अमर-राग के सुर तानते हैं!

अज़ीब हैं ये लोग!

- अशोक प्रकाश


                   ★★★★★★

Comments

  1. बहुत सुंदर कविता

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    1. शुक्रिया हौसला बढ़ाने के लिए!

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  2. Very nice poem Very immpressive

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