Skip to main content

युद्ध, जनसंहार और तमाशबाज मीडिया

                   खून के प्यासे तमाशबाज 

                               और तमाशबीन जन

पिछले डेढ़ साल से हमारे देश के टीवी चैनलों पर, खासकर हिन्दी समाचार चैनलों पर युद्ध की खबरें छाई हुई हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले से लेकर अब फिलीस्तीन पर इजरायली हमले तक टीवी के परदे पर युद्ध ही युद्ध है।

पर टीवी पर युद्ध की खबरों की यह भरमार न तो युद्धों के बारे में किसी गंभीर जानकारी-समझदारी की ओर ले जाती है और न ही युद्धों के प्रति नफरत की ओर। इसके ठीक विपरीत वे युद्ध को एक उत्तेजनापूर्ण मनोरंजन की तरह पेश करती हैं तथा दर्शकों में युद्ध की विभीषिका के प्रति एक तरह की संवेदनहीनता को जन्म देती हैं। टीवी के परदे पर दिखने वाली तबाही एक कुत्सित आनंद का स्रोत बन जाती है।

टीवी चैनलों के मालिकों और कर्ता-धर्ता का इस मामले में उद्देश्य साफ होता है। वे युद्ध को एक उत्तेजक मनोरंजन के तौर पर पेश कर दर्शकों को अपनी तरफ खींचना चाहते हैं जिससे उनका व्यवसाय बढ़े। लगे हाथों सरकार के पक्ष में प्रचार भी हो जाता है।

टीवी चैनलों के मालिकों का युद्ध के प्रति यह रुख बेहद घृणित है क्योंकि वे अपने मुनाफे के लिए युद्ध की विभीषिका को बेच रहे होते हैं। युद्ध के शिकार लोग उनके लिए कुछ नहीं होते। बस उन्हें अपना मुनाफा दीखता है।

यह सब तब चरम पर पहुंच जाता है जब टीवी चैनलों पर बेहद अगंभीर बल्कि चुटकुले वाले अंदाज में तीसरे विश्व युद्ध की बात होती है। तीसरे विश्व युद्ध की बात करते समय इसकी जरा भी चेतना नहीं होती कि यदि सचमुच कोई तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो समूची मानवता के अस्तित्व का संकट पैदा हो जायेगा। तीसरे विश्व युद्ध की संभावना की कोई भी चर्चा उसके खिलाफ चेतना पैदा करने के लिए ही होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो वह इस महाविपदा के प्रति संवेदनशून्यता की ओर ही ले जायेगा।

यहां पर यह सहज सवाल पैदा होता है कि टीवी चैनलों के मालिक और कर्ता-धर्ता तो अपने मुनाफे की खातिर युद्ध को इस रूप में दिखा रहे होते हैं, पर दर्शक इसे देख क्यों रहे होते हैं? वे युद्ध की विभीषिका से मनोरंजन क्यों कर रहे होते हैं?

भारतीय दर्शकों के मामले में इसका एक उत्तर यह है कि भारत के लोगों ने एक लम्बे समय से युद्ध की विभीषिका उस तरह नहीं झेली है जैसे यूरोप के लोगों ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान झेली थी। भारत में अंतिम बड़ा युद्ध 1857 के विद्रोह में ही हुआ था। उसकी यादें सुदूर अतीत की यादें बन चुकी हैं। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सैनिक लड़े पर दूसरे देशों में। स्वयं भारत की धरती पर युद्ध नहीं हुआ। 1962, 65 और 71 के युद्ध भी बहुत छोटे रहे जो सीमा पर लड़े गये और जिसमें कुछ हजार लोग ही मारे गये। ऐसे में युद्ध की तबाही भारत के लोगों के लिए यंत्रणादायी याद नहीं है।

यूरोप के लोगों की स्थिति इससे भिन्न है। दो विश्व युद्धों की तबाही को अपनी धरती पर झेलने के कारण आज भी वहां युद्ध के प्रति तीखी संवेदना है। इसीलिए वहां हर युद्ध के समय लाखों लोगों के प्रदर्शन होते हैं- युद्ध के विरोध में। इराक पर अमेरिका के संभावित हमले के विरोध में 15 फरवरी 2003 को रोम में बीस लाख तथा लंदन में दस लाख लोग इकट्ठा हुए थे। इस समय भी फिलीस्तीन पर इजरायली हमले के विरोध में यूरोप भर में लाखों लोगों के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं- जर्मनी और फ्रांस में तो सरकार द्वारा प्रतिबंध के बावजूद।

किसी भी अन्यायपूर्ण युद्ध के खिलाफ उठ खड़ा होना हर तरह के अन्याय-अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए जरूरी है। इसके बदले यदि अन्यायपूर्ण युद्ध का समर्थन किया जाता है अथवा युद्ध को एक उत्तेजक मनोरंजन की तरह देखा जाता है तो परले दरजे की अमानवीयता की ओर ले जाता है। दुनिया भर के सारे शासक चाहते हैं कि वे आम जनता को इस अमानवीयता की स्थिति में ढकेलें। वे किसी हद तक सफल भी हो रहे हैं। एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए इसका भी विरोध करना होगा।

                                   प्रस्तुति: सुधीर अग्रवाल

                          ★★★★★★★

                          

Comments

Popular posts from this blog

मुर्गों ने जब बाँग देना छोड़ दिया..

                मत बनिए मुर्गा-मुर्गी! एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया।.. एक दिन वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का बहाना सोचा और मुर्गे से कहा, "तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा।"  मुर्गे ने कहा, "ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !" सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है।  मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि कल से तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे, नहीं तो मैं वध कर दूँगा।  अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया।  मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए। अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया।  मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था। मालिक ने कहा कि कल...

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित ...