कविता:
मैं चींटी हूँ...
- अशोक प्रकाश
घमंड आलस्य में
कभी नहीं बैठी हूँ
मैंने कभी नहीं चाहा
मेरा काम कोई दूसरा करे
मैं रानी बनी रहूँ
दुनिया पर रौब जमाऊँ!
तुम तो मनुष्य हो
धरती के सर्वश्रेष्ठ प्राणी
विकास से कम विनाश नहीं किया
तुमने...
कैसे मनुष्य हो?
कुछ मनुष्यों को धरती
रौंदने देते हो, चुप रहते हो
क्यों सहते हो?...
मैं तुम्हें क्या समझाऊँ!
★★★★★★★
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