Skip to main content

Posts

Showing posts with the label किसान

क्या मुख्यतः कम्पनीराज के खिलाफ़ है किसान आंदोलन?

                           किसान आंदोलन का                   कॉरपोरेट विरोध     संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जैसे तीन किसान विरोधी कानूनों की वापसी के लिए संघर्ष लम्बा खिंचता जा रहा है, उसके स्वरूप में भी बदलाव आता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से मजदूर संगठन भी उसके समर्थन में दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने लगे हैं। साथ ही इसे कानून वापसी की माँग से अधिक व्यापक बनाये जाने की भी कोशिश हो रही है। किसान आंदोलन इसे कॉरपोरेट या कम्पनीराज विरोधी आंदोलन के रूप में विकसित करने की कोशिश कर रहा है!... ★ कॉर्पोरेटों के खिलाफ धरना जारी रहेगा: यह काले कानूनों के खिलाफ एकजुट लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लगातार चल रहा किसान आंदोलन भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर जाने वाले मुख्य राजमार्गों पर पिछले आठ महीनों से जमा हुआ है।।  26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं पर लाखों आंदोलकारियों के पहुंचने से पहले कई राज्यों में महीनों तक कई विरोध प्रदर्शन हुए। इस लिहाज से यह आंदोलन और भी ज्यादा समय से चल रहा है।  हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार अपने जोखिम पर आंदोलनकारियों द्वारा उठाए जा रहे बुनियादी मुद्दो

किसान आंदोलन: परीक्षा का समय

किसान बेवकूफ नहीं!                                       किसान आंदोलन:            परीक्षा का समय                संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किस  आंदोलन इन दिनों दोहरी परीक्षा से गुजर रहा है। एक तरफ बारिश और तूफान के कारण सीमाओं पर भारी नुकसान हुआ है, सिंघू व टिकरी बॉर्डर पर मुख्य मंच सहित किसानों के बड़ी संख्या में टेंट क्षतिग्रस्त हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली से सटे हरियाणा में किसानों के बहिष्कार आंदोलन से चिढ़े भाजपा नेता किसानों को हिसा के लिए उकसाकर उनसे भिड़ने की नीति पर चल रहे हैं।   हरियाणा के टोहाना में विधायक देवेंद्र बबली के कार्यक्रम का किसान संगठनों द्वारा विरोध किया गया। किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को हिंसक रंग देने के उद्देश्य से विधायक ने किसानों के साथ गाली गलौच की व अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया। इसके बाद किसानों ने विरोध जारी रखा तो पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करवाया गया। जिसमें हरियाणा के जुझारू किसान ज्ञान सिंह बोडी, सर्वजीत सिद्धु और बूटा सिंह फतेहपुरी को गहरे चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा इस बेरहम कार्रवाई की निंदा करता है। किस

कहीं आपमें कोई पालतू तो नहीं है?..

नौकर                          एक सामयिक बोध-कथा ● बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था... उसके पास एक बडी जालीदार टोकरी में बहुत सारे तीतर थे!.. लेकिन एक छोटी जालीदार टोकरी में सिर्फ एक ही तीतर था!.. एक ग्राहक ने पूछा-  "एक तीतर कितने का है?.." "40 रुपये का!.." ग्राहक ने छोटी टोकरी के तीतर की कीमत पूछी  तो वह बोला,  "मैं इसे बेचना ही नहीं चाहता!.."  "लेकिन आप इसे ही लेने की जिद करोगे,  तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी!.." ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा,  "इसकी कीमत इतनी ज़्यादा क्यों है?.." चिड़ीमार ने जवाब दिया- "दरअसल यह मेरा अपना पालतू तीतर है और  यह दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है!.. जब ये चीख पुकार कर दूसरे तीतरों को बुलाता है  और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे ही एक जगह जमा हो जाते हैं... तो मैं आसानी से सभी का शिकार कर लेता हूँ!   बाद में,  मैं इस तीतर को उसकी मनपसंद की 'खुराक" दे देता हूँ जिससे ये खुश हो जाता है!..   बस, इसीलिए इसकी कीमत भी ज्यादा है !.." उस समझदार आदमी ने तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर की स

मुक्केबाज स्वीटी ने क्यों किसानों को समर्पित किया चैंपियनशिप का पदक?

      काला कानून, कितना काला!                     किसान आंदोलन की                        परीक्षा  एवं सफलताएं                                      Boxer  Saweety Boora                                             Ph oto Courtesy: merisaheli.com  किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं सहित देश के कोने-कोने में तीन कृषि सम्बन्धी कानूनों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन और धरने जारी हैं, उसी तरह शासकों के साथ-साथ प्रकृति द्वारा भी उसकी परीक्षाएँ जारी हैं। मुसीबतों और अड़चनों के बावजूद धैर्य और दृढ़ता से किसान इनका सामना कर रहे हैं! संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के क्रम में शाहजहांपुर बॉर्डर को भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा। इस तूफान के कारण बड़े पैमाने पर किसानों के टेंट, मंच, लंगर एवं अन्य सामान का नुकसान हुआ। किसानों के टेंट पूरी तरह उखड़ गए। जब किसानों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की तो उन्हें गंभीर चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा ने समाज कल्याण के संगठनों और आम जन से निवेदन किया है कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर हर संभव मदद पहुंचाई जाए ताकि वहां पर धरना दे रहे किसानों को कोई भी दिक्

कितना समर्थन मिला कालादिवस को?..

काला कानून, कितना काला!                             किसान आंदोलन में                             उत्साह                                 काला-दिवस' सुदूर दक्षिण तक 'काला-दिवस' को मिले देश भर के भारी समर्थन से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाए जा रहे किसान आंदोलन में अत्यधिक उत्साह का संचार हुआ है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इस विरोध प्रदर्शन को जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक और पूर्वोत्तर से लेकर महाराष्ट्र तक व्यापक समर्थन मिलने और आंदोलन को गाँवों-कस्बों तक पहुँचने की खबरें आईं। किसानों ने काले झंडे दिखाते, पुतले फूँकते अपने फोटो और वीडियो वायरल किए। इससे यह संदेश गया है कि किसानों के आंदोलन को तोड़ने की सरकार की सभी साजिशें नाकाम सिद्ध हो रही है। विविध कार्यक्रमों से यह स्पष्ट हुआ कि अपनी मांगों को पूरा करने में किसानों का पक्ष मजबूत हो रहा है। किसान मांगों को पूरा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। सयुंक्त किसान मोर्चो सभी देशवासियों को कल के सफल कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करता है। यह आंदोलन अब भारत भर में व्यापक स्थानों पर फैल रहा है। चाहे वह उत्तर पूर्व भारत में हो, या

क्या है किसान आंदोलन को मजबूत करने की नई योजना?..

              क्या और व्यापक, और मजबूत होगा                                         किसान आंदोलन  संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जारी किसान आंदोलन अब आम लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनने कोशिश कर रहा है। दिख रहा है कि अगर सरकार ऐसे ही आंदोलन की उपेक्षा करती रही तो किसान आंदोलन को जारी रखने के लिए न केवल उसे आम देशवासियों से जोड़ा जाएगा, बल्कि संघर्ष को भी और शक्तिशाली बनाया जाएगा। हरियाणा के किसानों पर हुए लाठीचार्ज के बाद इसकी जरूरत और ज़्यादा बढ़ गई है। किसान आंदोलन इसके लिए खुद को न केवल और व्यापक बनाने की कोशिश कर रहा है बल्कि इसे समाज के वंचित वर्गों तक भी इसे ले जाने के लिए भी प्रयासरत है। शायद बुद्ध पूर्णिमा को मनाने का आह्वान भी इसकी एक क़वायद है!... देखें, संयुक्त किसान मोर्चा की नई प्रेस विज्ञप्ति: हरियाणा के हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस ने हिंसक कार्रवाई की थी। इसमें अनेक किसानों को गहरी चोटें भी आई थी व कई किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसी दिन किसानों के भारी विरोध के बाद पुलिस ने किसानों पर कोई केस न दर्ज करने का फैसला लिया था

कौन दबाव में है- किसान या सरकार?..

                 संयुक्त किसान मोर्चा ने लिखा                             प्रधानमंत्री को पत्र लगता तो है कि हालात दबाव बना रहे हैं।... किसान आंदोलन पर एक दबाव है कोरोना का तो दूसरा दबाव  है मौसम का ! सरकार की बेरुखी और हठधर्मिता का दबाव किसानों पर नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन सरकार पर भी कम दबाव नहीं है। कोरोना की दुर्व्यवस्थाओं के चलते बिगड़े हालातों और किसान आंदोलन के प्रति जनता के सकारात्मक रुख से सरकार की छवि और धूमिल हो रही है। इन स्थितियों में जहाँ सरकार ने डीएपी के बढ़ाए दाम में किसानों को राहत दी है, वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। दूसरी तरफ 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी विरोध का भी आह्वान कर रखा है। क्या है  इसका मतलब?.. पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति का सार: ★ संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा ; किसानों से बातचीत कर मांगे माने सरकार। ★ पर्यावरणविद सूंदर लाल बहुगुणा और किसान नेता बाबा गौड़ा पाटिल के निधन पर शोक।   संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिखते हुए किसानों से बातचीत करने क

संयुक्त किसान मोर्चा: नये संघर्षों का ऐलान

                किसान आंदोलन का नया ऐलान 14 मई को हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में जहाँ भारतीय किसान यूनियन के महान नेता महेंद्र सिंह टिकैत को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई, वहीं अमर शहीद सुखदेव के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए उनके सपनों को मंजिल तक पहुँचाने का संकल्प लिया गया। इसके साथ शहीद भगतसिंह के भतीजे और किसान आंदोलन के समर्थक सामाजिक कार्यकर्ता अभय संधू   की मृत्यु पर दुःख प्रकट करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।  इस बैठक की अध्यक्षता किसान नेता श्री राकेश टिकैत ने की। बैठक में निम्नलिखित निर्णय सर्वसम्मति से लिए गए:   1. 26 मई को हम दिल्ली की सीमाओं पर अपने विरोध के 6 महीने पूरे कर रहे हैं।  यह केंद्र में आरएसएस-भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने का भी प्रतीक है।  इस दिन को देशवासियों द्वारा "काला दिवस" के रूप में मनाया जाएगा। पूरे भारत में गांव और मोहल्ला स्तर पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होंगे जहां दोपहर 12 बजे तक किसान मोदी सरकार के पुतले जलाएंगे।  किसान उस दिन अपने घरों और वाहनों पर काले झंडे भी फहराएंगे।  इस मौके पर एसकेएम ने सभी जन

क्यों चलता रहेगा किसान आंदोलन?..

           किसानों की तकलीफों से निकला है                        किसान आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने सिंघु बॉर्डर पर एक सभा में कहा कि किसानों के दर्द से निकला है यह किसान आंदोलन और जब तक किसानों की किसानों की माँगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक चलेगा! सिंघु बॉर्डर पर किसानों को संबोधित करते हुए नेताओ ने कहा कि इस आंदोलन में किसानों को किसान न कहकर उन्हें अन्य पहचान से जोड़ा गया व उनकी शिक्षा पर भी सवाल किया गया। किसान नेताओं ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि यहां आंदोलन कर रहे किसान को किसान की ही पहचान से जाना जाए और किसानों को यह कानून पूरी तरह समझ आ गए है, इसीलिए यह आंदोलन इतना मजबूत है। मोर्चा ने बताया कि 10 मई को सिंघु व टिकरी बॉर्डर पर किसानों के बड़े काफिले आये। कई जगह पर किसानों का स्वागत किया गया। ट्रेक्टर, कारों व अन्य वाहनों में आये इन किसानों ने मोर्चे को बड़ा करते हुए पहले की तरह टेंट और ट्रॉली में रहने का इंतज़ाम कर लिया है। किसानों का धरना लंबा होता जा रहा है। दिल्ली मोर्चो पर लंबी कतारों में किसानों के टेंट, ट्रॉली व अन्य वाहन पिछले 5 महीने से खड़े है। किसानों के क

किसान आंदोलन और 1857 की क्रान्ति

                 और तेज होगा किसान आंदोलन   दिनांक 10 मई,  2021 को गाजीपुर बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा ने 1857 के शहीदों को याद करते हुए शहीद मंगल पाण्डेय के तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर किसान आंदोलन के नेताओं ने 1857 की क्रांति और आज के किसान आंदोलन पर अपने उद्गार व्यक्त किए! वक्ताओं ने बताया कि अंग्रेज  भारत के जमींदारों से मिलकर किसानों से अत्यधिक लगान वसूली कर रहे थे और उन्हें जमीन से बेदखल कर रहे थे। यही इस क्रांति की मूल जड़ में था।  खेती की बर्बादी और बढ़ती भूख बेरोजगारी में अंग्रेजों के शासन की बड़ी भूमिका थी। वे अपने माल को बेचने के लिए यहां के बुनकरों, लोहारों, बढ़ाई, चर्मकार- सब को बर्बाद कर रहे थे ताकि उनका माल यहां बिक सके। देश के तमाम किसान, कारीगर, व्यापारी अंग्रेजों के राज के खिलाफ उठ खड़े हुए और कई देशभक्त रजवाड़ों ने भी उनका साथ दिया।  आज के हालात से इसकी तुलना करते हुए वक्ताओं ने बताया कि जो तीन कानून सरकार लाई है और जो एमएसपी की गारंटी सरकार नहीं देना चाहती, इससे पूरी खेती बर्बाद हो जाएगी और बड़े कारपोरेट तथा विदेशी कंपनियों के हाथों में चली

किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश

                                     ध्वस्त होंगी              किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिशें संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने एक विशेष वक्तव्य में स्पष्ट कर दिया है कि वह किसान आंदोलन में आई शहीद महिला के लिए इंसाफ की लड़ाई के साथ खड़ा है। संयुक्त किसान मोर्चा प्रतिनिधियों ने साफ कहा है कि आंदोलन में किसी महिला के साथ कोई बदसलूकी कत्तई बर्दाश्त नहीं होगी।           मीडिया और सोशल मीडिया में पिछले महीने टिकरी बॉर्डर पर बंगाल से आई एक महिला साथी के साथ बदसलूकी की घटना की खबर के बारे में संयुक्त किसान मोर्चा यह साफ कर देना चाहता है की वह अपनी शहीद महिला साथी के लिए इंसाफ की लड़ाई के साथ खड़ा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने पहले ही इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही की है और हम इंसाफ की इस लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाएंगे।  यह साथी बंगाल से 12 अप्रैल को "किसान सोशल आर्मी" नामक एक संगठन के कुछ लोगों के साथ टिकरी बॉर्डर पहुंची थी। दिल्ली के रास्ते में और दिल्ली पहुंचने के बाद उसके साथ उन लोगों ने बदसलूकी की।  एक सप्ताह बाद उस महिला को बुखार हुआ, अस्पताल में दाखिल किया गया लेकिन 3

किसान आंदोलन के बदलते तेवर

                                       किसान आंदोलन की                     बढ़ती मुसीबतें                  पश्चिमी उत्तरप्रदेश और विशेषकर जाट-बेल्ट में लोकप्रिय राष्ट्रीय लोक दल- आर.एल.डी. का आधार परंपरागत रूप से किसान रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक नेता महेंद्र सिंह टिकैत इस क्षेत्र की ऐसी शख्सियत रहे हैं जिनके महत्त्व को नकारना न तो राजनीतिक दलों और न किसान आंदोलन के लिए ही संभव रहा है। इसका कारण यह भी है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसान आंदोलन इन्हें प्रतीक के तौर पर मानता रहा है। आज भले ही किसान आंदोलन ने घोषित तौर पर राजनीतिक दलों से दूरी बना रखी है किन्तु आर.एल.डी. जैसी पार्टियों का मिला समर्थन उसका मददगार भी सिद्ध हुआ है। ऐसे में आर.एल.डी. प्रमुख एवं पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री चौधरी अजीत सिंह का निधन किसान आंदोलन के लिए भी एक झटका माना जा रहा है, भले ही उनके उत्तराधिकारी चौधरी जयंत भी किसान आंदोलन को समर्थन देते रहे हैं। स्वाभाविक रूप में किसान आंदोलन ने चौधरी अजीत सिंह की मृत्यु पर हार्दिक श्रद्धांजलि दी है।           प्रस्तु

तो किसान तोड़ देंगे लॉकडाउन का जाल?

                    अब होगा लॉकडाउन का विरोध:                         दुकानदार खोलेंगे दुकानें!     यह तो तय लगता था कि जिस तरह किसान केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि एवं कृषि व्यापार सम्बन्धी तीन कानूनों और बिजली संशोधन बिल का विरोध कर रहे हैं, वे लॉकडाउन की सरकारी नीतियों को भी नहीं मानेंगे। किन्तु कोरोना की शुरू हुई 'दूसरी लहर' और संभावित 'तीसरी लहर' से डरकर शायद वे पीछे हट जाएंगे, ऐसी उम्मीद की जा रही थी। लेकिन यहाँ तो उल्टा होता दिख रहा है। कोरोना कहर की सारी जवाबदेही और जिम्मेदारी किसान आंदोलन केंद्र व राज्य सरकारों पर डाल रहा है और इसका विरोध करने का फैसला कर चुका है।...           पढ़ें 'संयुक्त किसान मोर्चा' की प्रेस विज्ञप्ति: ★ पंजाब के किसान संगठनों का फ़ैसला : 8 मई को पंजाब प्रदेशभर में करेंगे लॉकडाउन का खुलकर विरोध : दुकानदार खोलेंगे दुकानें! ★10 मई व 12 मई को खनौरी व शम्भू बॉर्डर के रास्ते दिल्ली की सीमाओं पर पहुचेंगे किसानों के जत्थे! ★ सरकार से बातचीत को लेकर किसान आशावादी : सरकार साफ नियत से बातचीत शुरू करें!   संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख अंग पं

चुनाव परिणामों से किसानों को क्या मिला?

किसान आंदोलन                                चुनाव परिणाम:                       किसान-आंदोलन की नैतिक जीत   सिंघु बॉर्डर पर चुनाव परिणाम पर खुशी मनाते किसान भले ही किसान आंदोलन हाल में हुए विधान सभा चुनावों में भाजपा की हार को अपनी नैतिक जीत मान रहा है; किन्तु सच यह है कि इन चुनावों से भाजपा को नुकसान की जगह फायदा हुआ है। उसका सबसे बड़ा फ़ायदा उसकी सीटों में बढ़ोत्तरी के अलावा ईवीएम-चुनाव के पक्ष में बना माहौल है। अब उत्तरप्रदेश के चुनाव ही असल में यह स्पष्ट करेंगे कि भाजपा का चुनावी जनाधार वाकई घटा है या नहीं! पढ़ें संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी पूरी प्रेस-विज्ञप्ति: संयुक्त किसान मोर्चा ने राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ जनादेश का स्वागत किया, जिसके आज परिणाम सामने आए। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में, यह स्पष्ट है कि जनता ने भाजपा की विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति को खारिज कर दिया है। ऐसे गंभीर संकट के समय में जब देश अपने स्वास्थ्य सेवा संबंधी बुनियादी ढाँचे के मामले में आपदा का सामना कर रहा है, अनेक योजनाओ के अभाव के कारण बहुत से निर्दोष नागरिक इस सरकार की घोर उपेक्षा के

प्रवासी मजदूर और किसान आंदोलन:

किसान आंदोलन             क्या प्रवासी मजदूरों के साथ आने से        और तेज होगा  किसान आंदोलन?           हालांकि पिछले साल की अभूतपूर्व और निर्मम प्रवासी मजदूर पलायन की घटना की पुनरावृत्ति शायद ही इस साल हो!...क्योंकि शासकवर्ग भी यह जानता है और प्रवासी मजदूर भी कि ऐसा होना किसी भी प्रकार की अनहोनी घटना को आमंत्रण दे सकता है। यद्यपि पूंजीवाद अपने मुनाफे के लिए किसी भी हद तक क्रूर हो सकता है, पिछली सदी के दो विश्वयुद्ध इसीलिए लड़े गए थे, किन्तु इनके संचालक यह भी समझते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि सिक्के का पहलू हमेशा उनकी तरफ ही बना रहे। दो विश्वयुद्धों का परिणाम भी उन्हें अच्छी तरह पता होगा। इन युध्दों के बाद एक समय ऐसा लगने लगा था कि जैसे दुनिया से पूंजीवाद का हमेशा के लिए खात्मा हो जाएगा। इन युध्दों के खिलाफ उठ खड़ी हुई जनता की वैश्विक गोलबंदी का ही परिणाम था लंबे समय से बनाए रखे गए उपनिवेश आज़ाद होने लगे। भले ही औपनिवेशिक शासकों ने स्थानीय शासकों से मिलकर मुनाफे को बनाए रखने के समझौते किए और इसी का परिणाम है कि वैश्विक पूँजीवाद या साम्राज्यवाद आज भी जिंदा है। दुनिया भर की जनता को इन समझौतों

क्या शुरू होने वाला है तीसरा स्वतंत्रता संग्राम?..

काले कानून किसान आंदोलन                          किसान-मजदूर संगठनों के लिए                                     आह्वान यद्यपि संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. दर्शन पल ने सीधे तौर पर किसी स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की घोषणा नहीं की है, किन्तु सरकार ने जिस तरह का रवैया अपनाया है और  किसान   संगठन जिस तरह अपने आंदोलन के नित नए तरीके अपना रहे हैं; उससे ऐसा ही लगता है कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत के दिन (10 मई, 1857) को एक महत्वपूर्ण दिन बनाया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से आह्वान किया गया है कि उस दिन देश के सभी किसान-मजदूर संगठनों के प्रतिनिधि सिंघु बॉर्डर पहुँचे। संयुक्त किसान मोर्चा के प्रवक्ता के अनुसार लाखों  किसान   तीन किसान विरोधी व कॉरपोरेट पक्षीय कानूनों का विरोध शुरू से स्थानीय स्तर पर कर रहे है और पिछले साल नवंबर के अंत से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए है।  संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में, वे सभी किसानों के लिए पारिश्रमिक एमएसपी की कानूनी गारंटी की भी मांग कर रहे हैं। 143 दिनों के विरोध के बावजूद, भीषण ठंड, बारिश और गर्मी के मौसमो में, किसानों की जा

चुनाव लोकतंत्र की पूजा है?..कोरोना क्या है??

    तो  पूजाओं से किसी को कोई खतरा नहीं! क्यों परेशान हो रहे हैं?.. उन्हें सब पता है! दुनिया एक रंगमंच है और वे उसके नट। हम सब इस नाटक के पात्र-महापात्र हैं। फिर काहे का डर?... महादेव की नगरी काशी हो या हर की पैड़ी हरिद्वार- सब उस नटराज की लीलाओं के रंगमंच हैं। कब क्या कहाँ होना चाहिए- सब निर्धारित करने का अधिकार उसी को है या फिर थोड़ा-बहुत उसके मठ-महंतों को। इसलिए क्यों परेशान हैं?.. बूटी छानिए और जब तक जमराज का बुलावा न आए, जमे रहिए। कोरोना भी प्रभु की लीला है। उसी के निर्देश-आदेश पर उसके संत-महंत दिन-रात आपकी सेवा में लगे हैं। पूजा-अर्चना कर रहे हैं। उसी की इच्छा थी कि कहा जाय- 'जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं!' अमिताभ बच्चन का डायलॉग याद कीजिए! अब नवरात्रि के साथ 'नया साल आशा की नई किरण लेकर आया है!' साथ में आया है हरिद्वार, हरद्वार या हरीद्वार का महाकुम्भ का महा त्योहार!...जाइए, आप भी डुबकी लगा आइए। स्वर्गद्वार के पासपोर्ट की तरह आरटीपीसीआर की निगेटिव रिपोर्ट भी लेते जाइए! घबराइए नहीं, प्रभु की इच्छा होगी तो जैसे बाकी लाखों को मिली है, आपको भी मिल ही जाएगी। फिर श्

व्यापक हो रहा है किसान आंदोलन

काले कानून                       रोज़-रोज़ और तेज... और व्यापक हो रहा है  किसान आंदोलन                     दिल्ली बॉर्डर से शुरू हुआ किसान आंदोलन रोज़-रोज़ और तेज, और व्यापक होता जा रहा है। एक तरफ़ जहाँ केंद्र सरकार किसान आंदोलन के प्रति ऐसा व्यवहार प्रकट कर रही है जैसे इस आंदोलन से उस पर कोई फर्क़ नहीं पड़ने वाला, वहीं दूसरी तरफ़ किसान आंदोलन के चार महीने पूरे होने पर 26 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति से यह पता चलता है कि किसान आंदोलन अब और व्यापक होते हुए कस्बों-गाँवों तक फैलने तथा और सुदृढ़ होने लगा है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता/प्रवक्ता डॉ. दर्शनपाल द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पूरी पढ़ने पर इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है: बढ़ता जा रहा किसान आंदोलन     "सयुंक्त किसान मोर्चा सभी किसानों-मजदूरों व आम जनता को आज के भारत बंद की सफलता की बधाई देता है। गुजरात के किसानों के साथ संघर्ष में पहुंचे किसान नेता युद्धवीर सिंह को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया जिसकी हम कड़ी निंदा व विरोध करते है। आज देश के अनेक भागों में भारत बंद का प्रभाव रहा। बिहार में 20 से ज्यादा जि

किसान आंदोलन: क्या, क्यों?

            https://youtu.be/34rJDc2NoFg             किसान आंदोलन: क्या, क्यों, क्यों नहीं! #दिल्ली #किसान #आंदोलन एक निर्णायक मोड़ पर है। केवल किसानों के लिए नहीं, पूरे #देश के लिए! #सत्ता प्रतिष्ठान जिसमें भू-माफिया, वैध-अवैध रूप से सैकड़ों एकड़ जमीन पर काबिज़ नए-पुराने जमींदार, देशी-विदेशी #बहुराष्ट्रीय कंपनियां, #राजनेता, #नौकरशाह, दलाल-ठेकेदार आदि अनेक #गिद्ध हैं- किसानों की #जमीन का #सौदा कर रहे हैं। #मुनाफा शब्द छोटा है, वे 'कर लो दुनिया मुट्ठी में' के नारे के साथ सब कुछ छीन लेने पर आमादा हैं!... किसान क्या करे?...#देश_की_रीढ़ होने के बावज़ूद वह इनके पूँजीबल-बाहुबल के आगे बेबस है। इसी का जवाब है- वर्तमान #किसान_आंदोलन! यह आंदोलन एक आम किसान, आम व्यक्ति का है!...यहाँ नाम से बड़ा विचार है। यह विचार #किसान_की _आत्मा की अभिव्यक्ति है!..कमजोर सही, दृढ़ है, संकल्पयुक्त है। इसने बड़े-बड़े राजाओं-महाराजाओं को उखाड़ फेंका है!                                ★★★★★★★