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अवधी-कविता: पाती लिखा...

                                स्वस्ती सिरी जोग उपमा...                                         पाती लिखा...                                            - आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' श्री पत्री लिखा इहाँ से जेठू रामलाल ननघुट्टू कै, अब्दुल बेहना गंगा पासी, चनिका कहार झिरकुट्टू कै। सब जन कै पहुँचै राम राम, तोहरी माई कै असिरबाद, छोटकउना 'दादा' कहइ लाग, बड़कवा करै दिन भै इयाद। सब इहाँ कुसल मंगल बाटै, हम तोहरिन कुसल मनाई थै, तुलसी मइया के चउरा पै, सँझवाती रोज जराई थै। आगे कै मालूम होइ हाल, सब जने गाँव घर खुसी अहैं, घेर्राऊ छुट्टी आइ अहैं, तोहरिन खातिर सब दुखी अहैं। गइया धनाइ गै जगतू कै, बड़कई भैंसि तलियानि अहै। बछिया मरि गै खुरपका रहा, ओसर भुवरई बियानि अहै। कइसे पठई नाही तौ, नैनू से...

दास्ताने-तालीम:

                             एक शिक्षक की डायरी                                                             प्रोफे. दीपक भास्कर,                                                      दिल्ली विश्वविद्यालय.           ....आज दुखी हूँ! कॉलेज में काम खत्म होने के बाद भी स्टाफ रूम में बैठा रहा, कदम उठ ही नहीं रहे थे। दो बच्चों ने आज ही एड्मिसन लिया और जब उन्होंने फीस लगभग 16000 सुना और होस्टल फीस लगभग 120000 सुनकर एड्मिसन कैंसिल करने को कहा।  गार्डियन ने लगभग पैर पकड़ते हुए कहा कि सर! मजदूर है राजस्थान से, हमने सोचा कि सरकारी कॉलेज है तो फीस कम होगी, होस्टल की सुविधा होगी सस्ते मे, इसलिए आ गए थे।...

पर्यावरण-संरक्षण: कथनी बनाम करनी:

                             पर्यावरण का संरक्षण या                         पर्यावरण-विनाश का वैश्वीकरण             यह सब पहले भी होता था!...            लोग झूठ बोलते थे, कहते कुछ और थे- करते कुछ और थे। नीति-नियम बनाए जाते थे-दूसरों के लिए। अपने लिए नियम अपनी सुविधा और फायदे के हिसाब से होते थे। 'अश्वत्थामा मरो....' सत्य के आगे 'नरो वा कुंजरो...' छुपा लिए जाने के पीछे की रणनीति निश्चित नई नहीं है। विकास के बहाने विनाश की गाथा शायद इसी तरह रची जाती है! अश्वत्थामा को मैने नहीं मारा, तुमने मारा है!...तुम्हें इसका हर्ज़ाना देना होगा, तिल-तिल कर मरना होगा। मैं वातानुकूलित महल में रहूँगा, क्योंकि मैंने ही अश्वत्थामा के मारे जाने का 'सत्य' तुम्हें बताया है। 'पर्यावरण' का विनाश हो रहा है, मेरे बताने के पहले तुम जानते थे क्या??...             पर्यावरण को लेकर...

शिक्षा का माध्यम

                   'राष्ट्रभाषा', सार्वजनिक शिक्षा और 'राष्ट्रवादी'                           फ़ोटो-साभार फेसबुक                ऐसा लगता है जैसे  शासकवर्ग सार्वजनिक शिक्षा को मटियामेट कर निजी शिक्षण संस्थानों को खुली छूट देना चाहता है। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा के मातृभाषा में चल रहे विद्यालयों को या तो बन्द किया जा रहा है या उन्हें Englsh Medium में रूपांतरित करने की कवायद चल रही है। मातृभाषा में कम से कम प्राथमिक शिक्षा देने की संवैधानिक प्रतिबध्दता को इस तरह अंगूठा दिखाया जा रहा है।              आखिर क्यों किया जा रहा है यह सब?...उत्तर बड़ा आसान और सीधा सा है। लगता है सरकार की प्राथमिकता में देश की सार्वजनिक शिक्षा न होकर कम्पनियों के लिए जरूरी शिक्षा रह गई है।...               आखिर क्यों अपने देशवासियों को उनकी भाषा में शिक्षा नहीं दी जा सकती, उनक...

हम देश, हमारा देश

                               ऐसा नहीं होना चाहिए!...                      कभी नहीं और कहीं नहीं होना चाहिए!...                                ?! ?! ?! ?! ?! ?! ?!   लगता है जैसे कोई ललकार रहा हो! हिम्मत है तो आ- हमारा लगता है जैसे कोई ललकार रहा हो!...हिम्मत है तो आ- हमारा सामना कर!...  महाभारत का यह उद्धत-आह्वान-'युद्धं देहि!...' उन सबको पसंद है जो शेरदिल हैं और तमाम प्राणियों के साथ इंसानों को भी जैसे खा जाने में विश्वास करते हैं! 'वीरभोग्या बसुंधरा' सिद्धांत के ये हिमायती 'राजा राज करने के लिए पैदा होता, प्रजा सेवा करने के लिए' -में भी विश्वास करते हैं और इसमें भी कि 'अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, अच्छे-बुरे सब ऊपर वाले के बनाए होते हैं... और इसमें भी कि अमीर, ऊंच, अच्छा होना उनका जन्मजात अधिकार है! तो मारे जाने वालों, तुम मारे जाने के लिए ही पैदा हुए थे!... ...

इतिहास बोलता है!...

                  ढिल्लिका से दिल्ली...                                       वाया गज़नी                                                           - संजीव सिंह …लोगों की पदचाप से इस विशाल परिसर की खामोशी टूट जाती है! बड़े-बड़े क्वार्टजाइट के प्रस्तर खंड सहम जाते हैं! अब उनमें कुछ भी नया देखने की ना तो चाह बची है और ना ही हिम्मत ... किसी अजनबी के आते ही प्राचीर के ऊपरी भाग में स्थित विशाल पत्थर एक दूसरे के साथ और दृढ़ता से मिल जाते हैं मानो इन नए आने वालों से घबरा रहे हो!...                  ...उन्हें नहीं पसंद कि कोई यहाँ आये! लेकिन लोग हैं कि आज भी इनको परेशान करते रहते हैं!... टूटी हुई शराब की बोतलें और उनके बिखरे हुए कांच के टुकड़े इसका प्रमाण हैं...

नरक की कहानियाँ:1

                                            दंपोली' से बचाओ!...                                                                    -अशोक प्रकाश                          उस दिन क्लास के सामने पहुंचते ही दो बच्चों को जूझते देख विनीता मैडम का दिमाग और खराब हो गया!...              दिमाग खराब करने के लिए विभाग ही क्या कम है!...जूते की क्लास-बालक-बालिका-नाप सहित फीती लगाकर बोरों में भरने के बाद एमडीएम का राशन लाने के लिए बुग्गी वाले से चिरौरी-विनती कर जैसे ही मैडम विनीता लौटीं, कक्षा चार के बच्चे धमचाचर मचाए थे। कोई कुछ कह रहा था, कोई कुछ। सब गड्डमड्ड। कक्षा दो की सकीना रोए जा रही थी। बबलू मैडम...