Skip to main content

नरक की कहानियाँ:1

            
                               दंपोली' से बचाओ!...
                 
                                                 -अशोक प्रकाश
                        

उस दिन क्लास के सामने पहुंचते ही दो बच्चों को जूझते देख विनीता मैडम का दिमाग और खराब हो गया!...
             दिमाग खराब करने के लिए विभाग ही क्या कम है!...जूते की क्लास-बालक-बालिका-नाप सहित फीती लगाकर बोरों में भरने के बाद एमडीएम का राशन लाने के लिए बुग्गी वाले से चिरौरी-विनती कर जैसे ही मैडम विनीता लौटीं, कक्षा चार के बच्चे धमचाचर मचाए थे। कोई कुछ कह रहा था, कोई कुछ। सब गड्डमड्ड। कक्षा दो की सकीना रोए जा रही थी। बबलू मैडम की कुर्ती पकड़कर कुछ बताने या शिकायत करने की जिद कर रहा था।  कक्षा तीन पूरा बाहर नल के पास एक-एक कर एक-दूसरे के कपड़े भिगो रहा था। दूसरे कमरे में देखा तो शिक्षामित्र बीना मैडम शायद अपने घर रोटी बनाने जा चुकी थीं।
          तभी एमडीएम बनाने वाली शांती आकर खड़ी हो गई- 'मैडम, आज मैं एक हजार लिए बिना नहीं जाने वाली!...इतना तनख्वाह पाती हो एडवांस कैसे नहीं दे सकती।'... शांती को समझाया नहीं जा सकता कि रसोईयों के कई महीने से अनुदान न आने की जिम्मेदारी हेडमास्टर की नहीं है। पर क्या कहें...उसका आदमी बीमार है, वह उसे अस्पताल दिखाने ले जाना चाहती है। पिछली रोटी वाली ने ऐसे कहकर एक-एक कर तीन हज़ार लिया और खाना बनाना छोड़ दिया। उससे पैसा लौटा पाना नामुमकिन सा है।
           एमडीएम की रोटी बनाने के लिए बड़ी मुश्किल से शांती तैयार हुई है।...अब इससे कैसे निपटें? लगभग पूरा गांव दिहाड़ी मज़दूरों से भरा है। रोज़ किसी न किसी को उधार चाहिए- ' तुम्हारे स्कूल में पढ़ाने से का फ़ायदा?...न पंखा, न बिजली, बैठने को टाटपट्टी!...एक दिन हज़ार-पांच सौ उधार भी मांगा तो- ना!...मेरे पे जब पैसा हो जाएगा तो बबलू को प्राइबेट में ही भेजूंगी!...तुम जाओ मास्टरनी!...' विनीता मैडम उसे नहीं समझा सकतीं कि बबलू के न जाने से उन पर क्या मुसीबत आ सकती है!
           एकाएक कक्षा चार में चीख-पुकार तेज हो गई।...किस-किस को संभालें!...
           दो शिक्षामित्रों में से एक चालीस किलोमीटर दूर का है। कहता है- 'दस हज़ार में तो मैं मैडम ऐसो ई नौकरी करूँगो!..रोज़ नहीं आ पाऊंगा! आप नाहक परेशान ना करौ!' दूसरी शिक्षामित्र गांव की बहू हैं। घूंघट काढ़े अपनी मर्ज़ी के समय से आती हैं। एकाध घंटा स्कूल में बिताने के बाद कहती हैं- 'मैडम, नैक रोटी बना आऊं! बिबेक के पापा शहर जाने वाले हैं!'....उन्हें कुछ ज़्यादा बोलने का मतलब गांव के न जाने किन-किन की नाराजगी मोल लेना!...उनका 'बिबेक-बिबेक' सुनकर एक दिन सलाह दी कि मैडम 'विवेक' बोला करो तो चार दिन बात ही नहीं की। बात-बात में तब से कहने लगी है- 'सहरिल्ला लोगन की बराबरी हम गंवार कहां से कर सकते हैं?...'
            देखा कालूराम  लहूलुहान हो सुबके जा रहा है। उसके नाक से खून बह रहा है। मुँह धुलाकर नाक से बहता खून साफ किया। उसके पापा छह महीने से गायब हैं। मां मज़दूरी कर तीन बच्चों का पेट भरती है। जब आती है कलुवा के पापा के गायब होने का रोना रोने लगती है। इस पर मैडम विनीता क्या कर सकती हैं?...पर सुनना तो पड़ता ही है! वह अपनी ही बात कहेगी और अपने मन का ही सुनना चाहेगी। और किससे कहे भी सिंदूरी, गांव वाले तो मज़ाक ही उड़ाते हैं -'तुझे छोड़ भाग गया कलुवा का पापा!'...
             जैसे कालूराम की मां सिंदूरी, वैसे उसका पापा। वह भी जब कालूराम का नाम लिखाने आया था तो लाख कहने के बावज़ूद कालूराम का नाम बदलने के लिए तैयार नहीं हुआ। वह तो ज़िद पर अड़ा था कि इसका नाम कलुवा ही रखो, बड़ी मुश्किल से कालूराम पर तैयार हुआ। कहता था कि कलुवा के पैदा होने के पहले ही कालीमाता से मन्नत मांगी थी कि बेटा हुआ तो कालीमाता के नाम पर उसका नाम कलुवा ही रखेगा। दो लड़कियों के बाद उसे लड़का ही चाहिए था न!...
              किसी तरह सबको चुप करा कालूराम से पूछा- 'तुझे किसने मारा?...' वह बोलता इससे पहले ही चार-पांच बच्चे एक साथ चिल्ला पड़े- 'दंपोली ने...'
      'क्या...?' -मैडम चौंकी! ये दंपोली क्या है?
     'इसे दंपोली ने मारा मैडम!...'
     'ये दंपोली कौन है?....क्या बकते हो तुम सब?...'
     'धरमपाली मैडम!...'- सुचित्रा जोर से बोली। विनीता मैडम बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक पाईं।
      ओह, धर्मपाल चौधरी को बच्चे दंपोली-धरमपाली कहते हैं!...बटन जैसी तीखी आंखों वाला धर्मपाल ऐसे तो ज़्यादा शैतान नहीं।
       'तूने कालूराम को क्यों मारा धर्मपाल?...'
       'ये ढेढ़ा है...मैं इसके पास नहीं बैठूँगो...इससे बात नहीं करूँगो...'
        'चुप!...ये क्या बकता है! अभी तक तो तू हमेशा उसी के पास बैठता था!...दोनों साथ-साथ नल पर जाते, एमडीएम खाते थे?...'
        'लेकिन अब न बैठूँगो!...अचारज जी ने कहा है! हम सबको अपने धरम की रच्छा करनी चाहिए! नीचे लोगों से दूर रहना चाहिए! हम सब मनू महराज की संतान हैं! कलियुग में नीचे लोगों के चलते धर्म भरस्ट हुआ जा रहा है!...'
        'ये अचारज जी कौन हैं?...'
        'मेरे घर सन्डे को आते हैं कुर्ता-धोती पहन के। उनके बड़ी सी चुटिया है!'
      
            मैडम विनीता को मामला समझ में आ गया था। जितना समझा-बुझा सकती थीं, समझाया। गलती से यह भी बोल गईं कि मैं भी तो आचार्यजी जैसी हूँ!...बाकी बच्चे हंस पड़े पर धर्मपाल गम्भीर बना कुछ सोचता रहा!...उसे बुलाकर सर पर हाथ रख बोलीं, 'धर्मपाल, तू अच्छा बच्चा है। ऐसी बातें नहीं सोचते-कहते! कालूराम तो अच्छा बच्चा है! जाती-पाँति अच्छे इंसान को नहीं मानना चाहिए! सभी तो एक जैसे होते हैं!...' फिर कालूराम को बुला उससे हाथ मिलवाया। बड़े अनमने से खिन्न हो उसने हाथ तो मिला लिया पर लगता था अभी माना नहीं!...
           दूसरे दिन जब कालूराम स्कूल नहीं आया तो विनीता ने बच्चों से पूछा!...बच्चे बोले-'दंपोली ने आज भी स्कूल के बाहर कलुवा को धक्का दे दिया!'
      
         धर्मपाल की आँखों के हाव-भाव से लग रहा था कि उसे बड़ी बुरी तरह घुट्टी पिलाई जा रही है!...

        क्या-क्या संभाल सकती हैं विनीता मैडम!...संकुल आ चुके हैं - 'मैडम, अभी तुम्हारे कागज़ पूरे नहीं हुए?... छात्र-वृद्धि तालिका में एससी-एसटी का कालम तो छूटा पड़ा है!...'
                                ★★★★★

Comments

Popular posts from this blog

नागपुर जंक्शन-दो दुनिया के लोग

          नागपुर जंक्शन!..  आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर!..डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि! अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!.. यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य है। दोनों बहुत कुछ अलग।  इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है।  अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी उसे क्या मिल जाता है?..  आख़िर, प्रकृति तो एक दिन दोनों को एक ही जगह पहुँचा देती है!... आप क्या सोचते हैं? ..  

मुझसे जीत के दिखाओ!..

कविता:                     मैं भी चुनाव लड़ूँगा..                                  - अशोक प्रकाश      आज मैंने तय किया है दिमाग खोलकर आँख मूँदकर फैसला लिया है 5 लाख खर्चकर अगली बार मैं भी चुनाव लड़ूँगा, आप लोग 5 करोड़ वाले को वोट देकर मुझे हरा दीजिएगा! मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु-परन्तु भूल जाऊँगा आपका मौनमन्त्र स्वीकार 5 लाख की जगह 5 करोड़ के इंतजाम में जुट जाऊँगा आप बेईमान-वेईमान कहते रहिएगा बाद में वोट मुझे ही दीजिएगा वोट के बदले टॉफी लीजिएगा उसे मेरे द्वारा दी गई ट्रॉफी समझिएगा! क्या?..आप मूर्ख नहीं हैं? 5 करोड़ वाले के स्थान पर 50 करोड़ वाले को जिताएँगे? समझदार बन दिखाएँगे?... धन्यवाद... धन्यवाद! आपने मेरी औक़ात याद दिला दी 5 करोड़ की जगह 50 करोड़ की सुध दिला दी!... एवमस्तु, आप मुझे हरा ही तो सकते हैं 5 लाख को 50 करोड़ बनाने पर बंदिश तो नहीं लगा सकते हैं!... शपथ ऊपर वाले की लेता हूँ, आप सबको 5 साल में 5 लाख को 50 करोड़ बनाने का भरोसा देता हूँ!.. ताली बजाइए, हो सके तो आप भी मेरी तरह बनकर दिखाइए! ☺️☺️

आपके पास विकल्प ही क्या है?..

                          अगर चुनाव              बेमतलब सिद्ध हो जाएं तो? सवाल पहले भी उठते रहते थे!... सवाल आज भी उठ रहे हैं!... क्या अंतर है?...या चुनाव पर पहले से उठते सवाल आज सही सिद्ध हो रहै हैं? शासकवर्ग ही अगर चुनाव को महज़  सर्टिफिकेट बनाने में अपनी भलाई समझे तो?... ईवीएम चुनाव पर पढ़िए यह विचार~ चुनाव ईवीएम से ही क्यों? बैलट पेपर से क्यों नहीं? अभी सम्पन्न विधानसभा चुनाव में अनेक अभ्यर्थियों, नुमाइंदों, मतदाताओं ने ईवीएम में धांधली गड़बड़ी की शिकायत की है, वक्तव्य दिए हैं। शिकायत एवं वक्तव्य के अनुसार जनहित में वैधानिक कारवाई किया जाना नितांत आवश्यक है।।अतः चुनाव आयोग एवं जनता के हितार्थ नियुक्त उच्च संस्थाओं ने सभी शिकायतों को संज्ञान में लेकर बारीकी से जांच कर,निराकरण करना चाहिए। कई अभ्यर्थियों ने बैटरी की चार्जिंग का तकनीकी मुद्दा उठाया हैं जो एकदम सही प्रतीत होता है। स्पष्ट है चुनाव के बाद या मतगणना की लंबी अवधि तक बैटरी का 99% चार्जिंग  यथावत रहना असंभव~ नामुमकिन है।  हमारी जानकारी के अनुसार विश्व के प्रायः सभी विकसित देशों में ईवीम से चुनाव प्रतिबंधित है,बैलेट पेपर से चुनाव