Skip to main content

Posts

Showing posts with the label संयुक्त किसान मोर्चा

तेजी से बढ़ रहा उत्तरप्रदेश में किसान आंदोलन

किसान आंदोलन के नए आयाम                    और तेज हो रहा किसान आंदोलन                    भाजपा के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और           प्रशासन के कार्यालयों के सामने 3 कृषि अध्यादेशों की                  प्रतियां जलाकर जताया किसानों का रोष संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर जहाँ दिल्ली की सीमाओं सहित पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में किसानों ने सांसदों, विधायकों और सरकारी दफ्तरों के सामने किसान क़ानूनों की प्रतियाँ जलाकर विरोध प्रदर्शन किया गया; वहीं उत्तर प्रदेश के कई नए इलाकों में भी किसान आंदोलन विकसित होने के उत्साहबर्द्धक संकेत मिले। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद के गाँव सुखरावली में 26 मई के किसानों के काला दिवस मनाने पर किसानों के खिलाफ झूठे पुलिस मामलों को वापस लेने की मांग करते हुए किसान गांव में ही धरने पर बैठ गए। साथ ही सांसद आवास के समक्ष कानूनों की प्रतियां जलाकर सांसद को ज्ञापन देकर काले कानूनो को वापस लेने की मांग की। किसानों ने जिलाधिकारी से भी मिलकर अपना प्रकट किया। भाकियू-टिकैत, बेरोजगार मजदूर किसान यूनियन, अखिल भारतीय किसान सभा, भाकियू-अम्बावता, भाकियू-स्वराज, भाकियू-म

चेतावनी दिवस के मायने

                      किसान संघर्षों के                     नए आयाम   संयुक्त किसान मोर्चा ने 5 जून को सम्पूर्ण क्रांति दिवस के अवसर पर किसानों से आह्वान किया है कि वे देश भर में भाजपा सांसदों, विधायकों के आवासों एवं कार्यालयों के सामने किसान कानूनों की प्रतियाँ जलाकर यह जताएँगे कि किस तरह भाजपा किसान विरोधी है। ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष 5 जून को ही  किसान विरोधी कृषि कानून विधेयक के रुप में घोषित हुआ था। यही तिथि जयप्रकाश आन्दोलन के संपूर्ण क्रांति दिवस की भी है। इस संपूर्ण क्रांति दिवस को चेतावनी दिवस के रूप में भी मनाया जाएगा। चूँकि किसान इस दिन सीधे भाजपा के स्थानीय नेताओं को किसान विरोधी चिह्नित करने का प्रयास करेंगे, भाजपा नेताओं की कार्यशैली के जानकार यह मानते हैं कि वे इसे सहज-सामान्य रूप में संभवतः नहीं लेंगे। ऐसे में भाजपा के विशेष प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्थिति असामान्य हो सकती है। दूसरी तरफ हरियाणा के टोहाना में इकट्ठे हुए किसानों की बैठक में फैसला लिया गया कि आने वाली 7 जून को 11 बजे से 1 बजे तक हरियाणा के सभी पुलिस थानों का घेराव किया जाएगा। जजपा विधायक देवेंद्र बबली द्

किसान आंदोलन: परीक्षा का समय

किसान बेवकूफ नहीं!                                       किसान आंदोलन:            परीक्षा का समय                संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किस  आंदोलन इन दिनों दोहरी परीक्षा से गुजर रहा है। एक तरफ बारिश और तूफान के कारण सीमाओं पर भारी नुकसान हुआ है, सिंघू व टिकरी बॉर्डर पर मुख्य मंच सहित किसानों के बड़ी संख्या में टेंट क्षतिग्रस्त हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली से सटे हरियाणा में किसानों के बहिष्कार आंदोलन से चिढ़े भाजपा नेता किसानों को हिसा के लिए उकसाकर उनसे भिड़ने की नीति पर चल रहे हैं।   हरियाणा के टोहाना में विधायक देवेंद्र बबली के कार्यक्रम का किसान संगठनों द्वारा विरोध किया गया। किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को हिंसक रंग देने के उद्देश्य से विधायक ने किसानों के साथ गाली गलौच की व अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया। इसके बाद किसानों ने विरोध जारी रखा तो पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करवाया गया। जिसमें हरियाणा के जुझारू किसान ज्ञान सिंह बोडी, सर्वजीत सिद्धु और बूटा सिंह फतेहपुरी को गहरे चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा इस बेरहम कार्रवाई की निंदा करता है। किस

मुक्केबाज स्वीटी ने क्यों किसानों को समर्पित किया चैंपियनशिप का पदक?

      काला कानून, कितना काला!                     किसान आंदोलन की                        परीक्षा  एवं सफलताएं                                      Boxer  Saweety Boora                                             Ph oto Courtesy: merisaheli.com  किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं सहित देश के कोने-कोने में तीन कृषि सम्बन्धी कानूनों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन और धरने जारी हैं, उसी तरह शासकों के साथ-साथ प्रकृति द्वारा भी उसकी परीक्षाएँ जारी हैं। मुसीबतों और अड़चनों के बावजूद धैर्य और दृढ़ता से किसान इनका सामना कर रहे हैं! संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के क्रम में शाहजहांपुर बॉर्डर को भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा। इस तूफान के कारण बड़े पैमाने पर किसानों के टेंट, मंच, लंगर एवं अन्य सामान का नुकसान हुआ। किसानों के टेंट पूरी तरह उखड़ गए। जब किसानों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की तो उन्हें गंभीर चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा ने समाज कल्याण के संगठनों और आम जन से निवेदन किया है कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर हर संभव मदद पहुंचाई जाए ताकि वहां पर धरना दे रहे किसानों को कोई भी दिक्

तो सांसद-विधायकों से होगा सीधा टकराव?..

     काला कानून, कितना काला!                                                    लंबी लड़ाई के लिए                तैयार हो रहे किसान ★ भाजपा सांसद, विधायक व जनप्रतिनिधियों के दफ्तरों के सामने किसान जलाएंगे कानूनों की प्रतियां ★ पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को उनकी पुण्यतिथि पर किसानों द्वारा श्रद्धांजलि ★ पंजाब के दोआबा से किसानों का बड़ा जत्था आया ★ पंजाब में किसान आंदोलन के 8 महीने पूरे : 100 से ज्यादा जगह पक्के मोर्चे ★ किसानों की लंबे संघर्ष की तैयारी : सभी तरह के इंतजाम कर रहे किसान तीन कृषि कानूनो के खिलाफ  देश के किसानों की लंबी लड़ाई चल रही है। पंजाब का इस लड़ाई का अहम योगदान है। पिछले साल सितम्बर से पंजाब में मोर्चे लगने लग गए थे। आज पंजाब में आंदोलन शुरू हुए 8 महीने हो गए है। पंजाब के किसानों के संघर्ष का परिणाम है कि राज्य में किसी भी टोल प्लाजा पर टैक्स नहीं लिया जा रहा है। पंजाब के किसान ना सिर्फ सरकारों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे है, बल्कि देश के बड़े कॉरपोरेट्स घरानों के खिलाफ भी बड़ी जंग छेड़े हुए है। किसानों ने हर मौसम में अपने आप को मजबूत रखते हुए सरकार व कॉर्पोरेट के खिल

क्या सचमुच तीनों कानून 'गैर-संवैधानिक' हैं?..

काला कानून, कितना काला!           क्या हैैं कृषि संबंधित तीनों कानून?             क्या सचमुच ये संवैधानिक नहीं हैं?                                            आलेख :  एडवोकेट   आराधना  भार्गव                                                                       नए लाए गये तीनों कृषि संबंधित कानूनों का विवाद खत्म होने के बजाय बढ़ता जा रहा है। दिल्ली की सीमाओं के साथ-साथ देश के दूसरे कई स्थानों पर किसान इन कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ धरने पर बैठे हैं। प्रस्तुत है किसान संघर्ष समिति की मध्यप्रदेश उपाध्यक्ष एडवोकेट आराधना भार्गव के विचार:-   तीनों कृषि कानून इसलिए रद्द किये जाने चाहिये क्योंकि भारत के संविधान के भाग 4 अनुच्छेद 48 में कृषि राज्य का विषय है, और राज्य के विषय पर केन्द्र का कानून बनाना गैर संवैधानिक है। देश संविधान से चलना चाहिए, सरकार की मर्जी से नही। तीनों कानूनों को हमें एक दूसरे से जोड़कर देखना होगा। कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020 जिसे हम बोलचाल की भाषा में बंधुवा किसान कानून कहते हहैैं, इसमें पीड़ित पक्षकार न्याय पालिका का

कितना समर्थन मिला कालादिवस को?..

काला कानून, कितना काला!                             किसान आंदोलन में                             उत्साह                                 काला-दिवस' सुदूर दक्षिण तक 'काला-दिवस' को मिले देश भर के भारी समर्थन से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाए जा रहे किसान आंदोलन में अत्यधिक उत्साह का संचार हुआ है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इस विरोध प्रदर्शन को जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक और पूर्वोत्तर से लेकर महाराष्ट्र तक व्यापक समर्थन मिलने और आंदोलन को गाँवों-कस्बों तक पहुँचने की खबरें आईं। किसानों ने काले झंडे दिखाते, पुतले फूँकते अपने फोटो और वीडियो वायरल किए। इससे यह संदेश गया है कि किसानों के आंदोलन को तोड़ने की सरकार की सभी साजिशें नाकाम सिद्ध हो रही है। विविध कार्यक्रमों से यह स्पष्ट हुआ कि अपनी मांगों को पूरा करने में किसानों का पक्ष मजबूत हो रहा है। किसान मांगों को पूरा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। सयुंक्त किसान मोर्चो सभी देशवासियों को कल के सफल कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करता है। यह आंदोलन अब भारत भर में व्यापक स्थानों पर फैल रहा है। चाहे वह उत्तर पूर्व भारत में हो, या

बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और किसानों का 'काला दिवस'

              बुद्ध पूर्णिमा का अवसर और                           किसानों का 'काला दिवस' संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के छह महीने पूरे होने के बाद भी शासकों द्वारा उनकी माँगे न माने जाने पर 26 मई को एक तरफ 'काला दिवस' मनाने का फ़ैसला किया है, दूसरी तरफ इसी दिन बुद्ध पूर्णिमा पड़ने के कारण 'बुद्ध पूर्णिमा' भी मनाने का आह्वान किया है। क्या इसके पीछे कोई रणनीति है या यह सिर्फ़ एक औपचारिकता के तौर पर ही कहा गया है?... क्या आंदोलन का गौतम बुद्ध के विचारों से कोई तालमेल भी है। अपरंच, क्या बौद्ध धम्म का किसी आंदोलन से कोई रिश्ता हो सकता है या यह भी मात्र एक धर्म है, धार्मिक सम्प्रदाय है? इन सवालों का बेहतरीन जवाब महापण्डित कहे जाने वाले और सच्चे बुद्धानुयायी राहुल सांकृत्यायन का जीवन और किसान आंदोलन में उनकी भूमिका को जानने-समझने से मिलता है। राहुल न केवल तत्कालीन किसान आंदोलन का साथ देते हैं बल्कि अमवारी के किसान आंदोलन का नेतृत्व भी करते हैं।  'किसानों, सावधान!' शीर्षक एक लेख में राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं, "किसानों की कठिनाइयां और कष्ट काल्पनिक नहीं है

26 मई का 'काला दिवस' क्या सीख देगा जनता को?..

                     किसान-मजदूर विरोधी निरंकुश                          शासकों के खिलाफ़ ' काला-दिवस '           बहुत से लोगों के मन में सवाल उठता है कि किसान आंदोलन से कोरोना बढ़ रहा है? यह भी कि अगर किसान आंदोलन से कोरोना बाधा है तो चुनावों की भीड़ों से क्या हुआ है?...आखिर ग्रामीणों के स्वास्थ्य की स्थिति क्या है इन हालातों में?...किसान संगठन के फेसबुक लाइव कार्यक्रम में किसान नेताओं ने सवालों के माक़ूल जवाब दिए!..पढ़ें, यह विशेष प्रेस विज्ञप्ति: ★ देश भर के सभी जिलों में 26 मई को काला दिवस मनाया जाएगा! ★ किसान आंदोलन से नहीं,  चुनाव और कुंभ मेला से देश में कोरोना बढ़ा है! ★ग्रामीण आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में सरकार पूरी तरह विफल!      26 मई को किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने और किसान विरोधी मोदी सरकार के निरंकुश कुशासन के 7 साल पूरे होने पर संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति  के फेस बुक पेज से किसान की बात का फेसबुक लाईव प्रसारित करते हुए 'काला दिवस' मनाने पर विचार प्रस्तुत किए गए।            उल्लेखनीय है कि तीन किसान विरोधी कान

क्या है किसान आंदोलन को मजबूत करने की नई योजना?..

              क्या और व्यापक, और मजबूत होगा                                         किसान आंदोलन  संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जारी किसान आंदोलन अब आम लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनने कोशिश कर रहा है। दिख रहा है कि अगर सरकार ऐसे ही आंदोलन की उपेक्षा करती रही तो किसान आंदोलन को जारी रखने के लिए न केवल उसे आम देशवासियों से जोड़ा जाएगा, बल्कि संघर्ष को भी और शक्तिशाली बनाया जाएगा। हरियाणा के किसानों पर हुए लाठीचार्ज के बाद इसकी जरूरत और ज़्यादा बढ़ गई है। किसान आंदोलन इसके लिए खुद को न केवल और व्यापक बनाने की कोशिश कर रहा है बल्कि इसे समाज के वंचित वर्गों तक भी इसे ले जाने के लिए भी प्रयासरत है। शायद बुद्ध पूर्णिमा को मनाने का आह्वान भी इसकी एक क़वायद है!... देखें, संयुक्त किसान मोर्चा की नई प्रेस विज्ञप्ति: हरियाणा के हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस ने हिंसक कार्रवाई की थी। इसमें अनेक किसानों को गहरी चोटें भी आई थी व कई किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसी दिन किसानों के भारी विरोध के बाद पुलिस ने किसानों पर कोई केस न दर्ज करने का फैसला लिया था

कौन दबाव में है- किसान या सरकार?..

                 संयुक्त किसान मोर्चा ने लिखा                             प्रधानमंत्री को पत्र लगता तो है कि हालात दबाव बना रहे हैं।... किसान आंदोलन पर एक दबाव है कोरोना का तो दूसरा दबाव  है मौसम का ! सरकार की बेरुखी और हठधर्मिता का दबाव किसानों पर नहीं है, यह भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन सरकार पर भी कम दबाव नहीं है। कोरोना की दुर्व्यवस्थाओं के चलते बिगड़े हालातों और किसान आंदोलन के प्रति जनता के सकारात्मक रुख से सरकार की छवि और धूमिल हो रही है। इन स्थितियों में जहाँ सरकार ने डीएपी के बढ़ाए दाम में किसानों को राहत दी है, वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। दूसरी तरफ 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा ने देशव्यापी विरोध का भी आह्वान कर रखा है। क्या है  इसका मतलब?.. पढ़ें, संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस विज्ञप्ति का सार: ★ संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा ; किसानों से बातचीत कर मांगे माने सरकार। ★ पर्यावरणविद सूंदर लाल बहुगुणा और किसान नेता बाबा गौड़ा पाटिल के निधन पर शोक।   संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिखते हुए किसानों से बातचीत करने क

क्या जनता नहीं, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपराजेय हैं?

          किसान-मजदूर आंदोलन के सामने                                   उठते सवाल   देश की आम जनता, विशेषकर किसान आंदोलन के सामने कुछ ज्वलंत सवाल खड़े हैं!...क्या मजदूर किसान आंदोलन से जुड़ेंगे?...अगर जुड़ेंगे तो किसान आंदोलन का स्वरूप क्या होगा? हाल ही में प्रवासी मजदूरों को किसान आंदोलन से जुड़ने का जो आह्वान किया गया था, उसका निहितार्थ क्या है? उसका क्या प्रभाव पड़ा?...क्या हमारे देश में प्रवासी मजदूरों के संघर्ष का कोई इतिहास है? इस नए अर्थात उदारीकरण के दौर में क्या मजदूर परम्परागत मजदूर रह गया है? क्या प्रवासी मजदूरों ने पिछले साल की विभीषिका से कोई सबक लिया है? लिया है तो क्या? - मालिकों के सामने गिड़गिड़ाकर किसी भी तरह, किसी भी शर्त पर काम पाना या कुछ और?...क्या किसान आंदोलन से उन्हें कोई उम्मीद है? ... ऐसे बहुत से सवाल शासकवर्ग से अलग सोच रखने वाले मजदूरों, किसानों, बेरोज़गारों, बुद्धजीवियों के सामने आज खड़े हैं। कोरोना ने इन सवालों को अगर अप्रत्यक्ष रूप से तीखा किया है तो बहुत से अन्य सवाल भी खड़े किए हैं। मसलन, प्रत्यक्ष दिखने वाला संकट क्या शासकवर्गों अपरंच साम्राज्यवादी शक्तियों का

संयुक्त किसान मोर्चा: नये संघर्षों का ऐलान

                किसान आंदोलन का नया ऐलान 14 मई को हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में जहाँ भारतीय किसान यूनियन के महान नेता महेंद्र सिंह टिकैत को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई, वहीं अमर शहीद सुखदेव के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए उनके सपनों को मंजिल तक पहुँचाने का संकल्प लिया गया। इसके साथ शहीद भगतसिंह के भतीजे और किसान आंदोलन के समर्थक सामाजिक कार्यकर्ता अभय संधू   की मृत्यु पर दुःख प्रकट करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।  इस बैठक की अध्यक्षता किसान नेता श्री राकेश टिकैत ने की। बैठक में निम्नलिखित निर्णय सर्वसम्मति से लिए गए:   1. 26 मई को हम दिल्ली की सीमाओं पर अपने विरोध के 6 महीने पूरे कर रहे हैं।  यह केंद्र में आरएसएस-भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने का भी प्रतीक है।  इस दिन को देशवासियों द्वारा "काला दिवस" के रूप में मनाया जाएगा। पूरे भारत में गांव और मोहल्ला स्तर पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होंगे जहां दोपहर 12 बजे तक किसान मोदी सरकार के पुतले जलाएंगे।  किसान उस दिन अपने घरों और वाहनों पर काले झंडे भी फहराएंगे।  इस मौके पर एसकेएम ने सभी जन

पुण्यतिथि पर: महेंद्र सिंह टिकैत और हरे रंग की टोपी

                          बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत:                     पुण्यतिथि पर एक श्रद्धांजलि ⭕ हरे रंग की टोपी पहने हर किसान में जिंदा हैं टिकैत ⭕    संयुक्त किसान मोर्चा के मंचों पर लगे बैनरों पर आन्दोलन के प्रेरणा स्रोतों में एक चेहरा ऐसा रहता है जो देहत्याग के बाद भी आज जिन्दा है। वह चेहरा है बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत। इन महापंचायतों में हजारों की संख्या में जुटे किसानों में हरे रंग की टोपी पहने हर किसान में जिंदा हैं टिकैत! आज वे अपने हर संघर्ष के साथी में प्रतिबिम्बित हो गए।सत्तर - अस्सी साल के उनके किसी भी किसान साथी से मिलिए, बात करिए, आपको बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत के दर्शन हो जाएंगे। आज ही के दिन यानी 15 मई 2011 को किसानों का मसीहा उन्हें छोड़ कर चला गया। लेकिन आज इस आन्दोलन में महेन्द्र सिंह टिकैत वापस लौट आए, उन हजारों चेहरों में, जो उनके सखा हैं, अनुयायी हैं, उनके अपने सगे हैं।     जनवरी 1987 में बिजली समस्याओं को लेकर करमूखेड़ी पावर हाउस के घेराव से किसान आन्दोलन में कदम रखा। वैसे तो आठ साल की छोटी सी उम्र में ही बाल्यान खाप के मुखिया की बड़ी जिम्मेदार उनके कंधों पर

नीमूचाना-राजस्थान का ऐतिहासिक किसान आंदोलन

                    14 मई नीमूचाना हत्याकांड के                शहीद किसानों की याद में                                                             - शशिकांत                         नीमूचाना सेठों की वीरान हवेली   ★ एक ऐसा किसान आन्दोलन जो इतिहास के पन्नों में खो गया!..           14 मई का राजस्थान का इतिहास खोजें तो गूगल में पहला जबाव होगा - नीमूचाना किसान आन्दोलन! लेकिन आज यह आन्दोलन केवल राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं का महज एक महत्वपूर्ण परीक्षोपयोगी प्रश्न बन कर रह गया है। न नीमूचाना गांव में कोई स्मारक, न कोई कार्यक्रम-मेला!..      रोजी-रोटी के सिलसिले में बानसूर ( अलवर की तहसील मुख्यालय) में मैं आठ साल रहा। इसीलिए इस आन्दोलन के बारे में ऐसा लिख रहा हूँ। नीमूचाना इसी तहसील का एक छोटा गांव है। 2012 में राजस्थान के किसान नेताओं के एक प्रतिनिधि मंडल के साथ नीमूचाना जाने का मौका मिला। रेत के टीलों, कीकर-बबूल की जंगलात के बीच बसा यह गांव आज वीरान होने को है। अपने निजी साधनों के अलावा इस गांव तक पहुँचने का कोई साधन नहीं। बानसूर से 14 किमी दूर यह गांव सारी सुविधाओं से आज भी कटा हुआ है।

कौन हैं किसान नेता करणीराम-रामदेव?

 पुरखों को जानिए:                        संघर्ष की प्रेरणा देती            शहीदों की   एक अमर जोड़ी            बढ़ते बिजली बिलों के खिलाफ सन 1986 का किसान आन्दोलन हो, भूमि अधिग्रहण के खिलाफ नवलगढ़ का जीवंत किसान आन्दोलन या आज किसान विरोधी तीनों काले कानूनों की वापसी का संघर्ष हो, शेखावाटी (राजस्थान) के किसानों के लिए सदैव एक महान प्रेरणा का स्रोत रही है अमर शहीदों की जोड़ी - करणीराम - रामदेव!         1952 के चुनाव के बाद आदेश आया कि जागीरदार किसानों से लगान के रूप में फसल के छठें भाग से ज्यादा नहीं ले सकते। जबकि इससे पहले जागीरदार फसल का आधा हिस्सा लगान के रूप में वसूलते थे। बचे हुए आधे हिस्से में से भी बोहरे की तुलाई, धुँआबाज, खूंटा बंधी आदि के नाम पर लूट होती थी। जमीनों का कोई रिकार्ड नहीं था। कौन सी जमीन का कौन काश्तकार रहेगा, यह भी उस जमाने में निश्चित नहीं था। पूरे इलाके में किसानों के घर कच्चे छप्परों के ही थे। जागीरदार का आदेश ही उनके लिए सब कुछ होता था। आदेश की अवहेलना करने पर जमीन और प्राणों तक से हाथ धोना पड़ता था। खिरोड़, देवगांव, हुकुमपुरा, चनाना के हत्याकांड इस बर्बरता के