Skip to main content

संघर्षरत देश की बेटी विनेश को एक खुली चिट्ठी

                               हार नहीं,

          संघर्ष का उनवान है यह!


विनेश, ओलम्पिक में कुश्ती के खिलाड़ी जानते होंगे कि तुम स्वर्ण पदक की हकदार थी! स्वर्ण नहीं जीती तो क्या, इतिहास में तुम 'लीजेंड' बन चुकी हो! इसलिए निराश होने, पीछे हटने का कोई भी निर्णय सही नहीं होगा। खेल होंगे, होते रहेंगे लेकिन विनेश का, एक महिला-पहलवान का ऐसा संघर्ष विरले ही कर सकते हैं। जो करते हैं, लीजेंड बन जाते हैं। भले ही खेल के सबसे ऊँचे पायदान पर पहुँचकर समय के हुक्मरानों द्वारा अपने दम्भ और हिकारत के चलते नकार दिए जाने का तुम्हारे जैसा अनुभव शायद किसी और को हो, लेकिन यही विशेषता तो तुम्हें आम जनता की नज़रों में महान बनाती है।

विनेश फोगाट, आज पूरे देश को तुम पर नाज़ है। तुमने दुनिया के सबसे महान महिला कुश्ती पहलवानों को हराकर यह मुक़ाम हासिल किया है। यह सब तुमने खेल-जगत से खिलवाड़ करने वाले उन शासकों के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करते हुए पाया है जो नापाक राजनीति और अपने स्वार्थों को सबसे ऊपर रखते हैं! समय ने अपने इतिहास में यह सब दर्ज़ कर लिया है। यह कोई छोटी बात नहीं है, विनेश!

       विनेश, तुम इस देश की करोड़ों उन संघर्षरत बेटियों का हौसला हो जो रोज व्यभिचारियों, औरतों को पाँव की जूती समझने वाले धन-बलपशुओं के ख़िलाफ़ देश के कोने-कोने में संघर्षरत हैं।

       दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपने साथ हुए अत्याचारों के ख़िलाफ़ इंसाफ़ माँगने का तुम्हारा और तुम्हारे साथियों का रक्तिम-आँसुओं से उजला संघर्ष शायद आगे शासकों को देश के खेल और खिलाड़ियों को उनका हक़ देने का अहसास कराए। लाखों ओलम्पिक खिलाड़ी देने की क्षमता रखने वाला हमारा देश शायद आगे गाँव-गाँव आर्थिक तंगी झेलने वाले खिलाड़ियों को इसका दंश न झेलने दे! हाँ विनेश, 'बदली परिस्थितियों में' यह सम्भव है।

       बहुत-बहुत बधाई विनेश तुम्हें, तुम्हारे संघर्षशील साथियों को, पूरे देश को जो लड़ना और जीतना दोनों जानता है, बस देश के भीतर की सच्ची देशप्रेमी ताकतें किसी भी शैतानी मंसूबों को कामयाब न होने दें!...जिन्होंने उस दिन तीन-तीन विश्व-विजेता की क्षमता वाले उन पहलवानों को हराने के तुम्हारे संघर्ष के पलों को देखा और अनुभव किया होगा, वे महसूस करते होंगे कि वह संघर्ष न्याय के लिए संघर्षरत देश की समूची जनता का प्रतीकात्मक संघर्ष था।

नहीं भूलेगा देश, यह संघर्ष भी!

      विनेश, देश के किसानों, मजदूरों के संघर्ष के प्रतीक 'एसकेएम ने परीक्षा की इस घड़ी में' तुम्हारे साथ साथ 'गहरी एकजुटता' व्यक्त की है। उसने अपने बयान में कहा है, 'स्वर्ण पदक विजेता के रूप में विनेश लोगों के दिलों में हमेशा रहेंगी!' साथ ही "एसकेएम ने इस पूरे प्रकरण के लिए भारतीय ओलंपिक संघ और भारत सरकार के रवैये की भी निंदा की है" तथा यह भी नोटिस किया है कि "भारतीय कुश्ती महासंघ और भारतीय ओलंपिक संघ के कई अधिकारी उन्हें ओलंपिक में जाने से रोकने की कोशिश कर रहे थे।  देश की जनता भी इस बात से भली-भांति परिचित है कि केंद्र सरकार के चहेते तत्कालीन भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने वाली विनेश फोगाट पहले से ही मोदी सरकार की आंखों की किरकिरी बनी हुई थीं।" इसलिए 'देश का नाम रोशन करने वाली' अपनी खिलाड़ी को 'देश की महान खिलाड़ी' मानते हुए तुम्हारे साथ गहरी एकजुटता प्रकट की है। कहा है कि "एसकेएम पूरी तरह से विनेश के साथ उनकी मुश्किल घड़ी में खड़ा है। भले ही ओलंपिक संघ ने विनेश को अयोग्य घोषित कर दिया हो, लेकिन भारत की जनता के दिलों में ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता के तौर पर उनकी जगह कोई नहीं ले सकता।"

सर्वखाप पंचायत हरियाणा  द्वारा तुम्हें 'गोल्ड मैडल और आयरन लेडी खिताब' से नवाज़ना आम जनता की भावना का प्रतीक है। विनेश, अब तुम सचमुच पूरे "भारत की बेटी" हो! इसलिए इस मान का ख़्याल रखना कि तुम अकेली नहीं हो। तुम्हारे संघर्षों ने तुम्हें वह मुक़ाम हासिल कराया है विनेश कि तुम्हारा भविष्य का हर फ़ैसला देश की करोड़ों संघर्षरत महिलाओं और उन नौजवानों का फ़ैसला होना चाहिए जिन्हें भारत की तक़दीर बदलना है!

                                            ~ प्रो.अशोक प्रकाश, 

                        एक अध्यापक और एसकेएम कार्यकर्ता


                       ★★★★★★★

Comments

  1. यूं ही कोई इतिहास नहीं गढ़ता
    कुछ करने के लिए सब कुछ चला जाता है
    मैं आपके जज्बे को तहे दिल से सलाम करता हूं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया, बन्धुवर!..यही हम सबके जज़्बात हैं!

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

मुर्गों ने जब बाँग देना छोड़ दिया..

                मत बनिए मुर्गा-मुर्गी! एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया।.. एक दिन वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का बहाना सोचा और मुर्गे से कहा, "तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा।"  मुर्गे ने कहा, "ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !" सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है।  मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि कल से तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे, नहीं तो मैं वध कर दूँगा।  अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया।  मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए। अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया।  मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था। मालिक ने कहा कि कल से तुम्हें अंडे देने होंगे नहीं तो मै तेरा

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?..  आख़िर, प्रकृति तो एक दिन दोनों को

मुझसे जीत के दिखाओ!..

कविता:                     मैं भी चुनाव लड़ूँगा..                                  - अशोक प्रकाश      आज मैंने तय किया है दिमाग खोलकर आँख मूँदकर फैसला लिया है 5 लाख खर्चकर अगली बार मैं भी चुनाव लड़ूँगा, आप लोग 5 करोड़ वाले को वोट देकर मुझे हरा दीजिएगा! मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु-परन्तु भूल जाऊँगा आपका मौनमन्त्र स्वीकार 5 लाख की जगह 5 करोड़ के इंतजाम में जुट जाऊँगा आप बेईमान-वेईमान कहते रहिएगा बाद में वोट मुझे ही दीजिएगा वोट के बदले टॉफी लीजिएगा उसे मेरे द्वारा दी गई ट्रॉफी समझिएगा! क्या?..आप मूर्ख नहीं हैं? 5 करोड़ वाले के स्थान पर 50 करोड़ वाले को जिताएँगे? समझदार बन दिखाएँगे?... धन्यवाद... धन्यवाद! आपने मेरी औक़ात याद दिला दी 5 करोड़ की जगह 50 करोड़ की सुध दिला दी!... एवमस्तु, आप मुझे हरा ही तो सकते हैं 5 लाख को 50 करोड़ बनाने पर बंदिश तो नहीं लगा सकते हैं!... शपथ ऊपर वाले की लेता हूँ, आप सबको 5 साल में 5 लाख को 50 करोड़ बनाने का भरोसा देता हूँ!.. ताली बजाइए, हो सके तो आप भी मेरी तरह बनकर दिखाइए! ☺️☺️