निबन्ध शब्द की व्याख्या और
प्रारम्भिक (भारतेंदु युगीन) हिंदी निबन्ध
'निबन्ध' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की मूल धातु 'बन्ध' में 'नि' उपसर्ग लगाकर दो प्रकार से मानी जाती है- 1. नि+बन्ध+ल्युट् - 'निबध्यते अस्मिन् इति अधिकरणे निबन्धम्' अर्थात् जिसमें विचार बांधा या गूंथा गया हो ऐसी रचना, 2. नि+बन्ध+घञ् - निश्चितार्थेन विषयम् अधिकृत बन्धनम् - अर्थात निश्चित तात्पर्य से विषय को विचारों की श्रृंखला में बांधना।
यद्यपि 'निबन्ध' शब्द का प्रयोग बहुत पहले से होता रहा है, किन्तु वर्तमान काल में यह मुख्यतः अंग्रेजी के 'Essay' के अर्थों में प्रयुक्त होता है। आज हिंदी निबन्ध शब्द से तात्पर्य है- 'वह विचारपूर्ण लेख जिसमें किसी विषय का सम्यक विवेचन किया गया हो'(- 'बृहत् हिन्दी कोश' )। 'शब्द कल्पद्रुम' के अनुसार 'बद्धनातीति निबन्धनम्' अर्थात जिससे बन्ध जाएं वही निबन्ध है।
★'कुतार्किका ज्ञाननिवृत्तिहेतुः करिष्यते तस्यमया निबन्धः..' अर्थात कुतर्कों से ज्ञान की मुक्ति जिससे की जाती है इस तरह बांधी गई रचना निबन्ध है। - 'न्यायवार्तिक'
★ हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-
" प्राचीन संस्कृत साहित्य में निबन्ध नाम का एक अलग साहित्यांग है। इन निबंधों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की विवेचना है। विवेचना का ढंग यह है कि पहले पूर्व-पक्ष में ऐसे बहुत से प्रमाण उपस्थित किए जाते हैं जो लेखक के अभीष्ट सिद्धांत के प्रतिकूल पड़ते हैं। इस पूर्व-पक्ष वाली शंकाओं का एक-एक करके उत्तर-पक्ष में जवाब दिया जाता है। सभी शंकाओं का समाधान हो जाने के बाद उत्तर-पक्ष के सिद्धान्त की पुष्टि में कुछ प्रमाण उपस्थित किए जाते हैं। चूंकि इन ग्रन्थों में प्रमाणों का निबन्धन होता है इसलिए इन्हें निबन्ध कहते हैं।..." - 'द्विवेदी, हजारी प्रसाद, आचार्य : साहित्य का साथी'
मराठी के लेखक निबन्ध को 'सुहृद गोष्ठी' (सहृदयों की संगोष्ठी) का विकसित रूप मानते हैं। विशेषकर 'ललित निबन्ध' इसी श्रेणी में आते हैं।
हिंदी निबंध: भारतेंदु-युग
प्रारंभिक युग- भारतेन्दु युग:(1870- 1904) के प्रमख निबन्धकार और उनके प्रसिद्ध निबंध:
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र: ( 1850 - 1885 ): 'कवि वचन सुधा', 'हरिश्चन्द्र मैगज़ीन' पत्रिकाओं में उनके निबंध। इतिहासप्रसिद्ध सेठ अमीचंद की वंश-पंरपरा में उत्पन्न। उनके पिता बाबू गोपालचंद्र ’गिरिधरदास’ भी अपने समय के प्रसिद्ध कवि थे। उस समय के पत्रकारों तथा साहित्यकारों ने 1880 ई. में उन्हे ’भारतेंदु’ की उपाधि से सम्मानित किया था।
प्रमुख निबंध:
कश्मीर कुसुम
उदयपुरोदय
कालचक्र
बादशाह दर्पण
वैद्यनाथ धाम
सरयू पर की यात्रा
कंकण स्तोत्र
लेवी प्राणलेवी
वैष्णवता और भारतवर्ष
अंग्रेज़ स्तोत्र
ग्रीष्म ऋतु,
हम मूर्तिपूजक हैं,
जातीय संगीत,
पाँचवे पैगम्बर,
सूर्योदय,
बीबी फ़ातिमा,
भूकम्प,
अपव्यय,
खुशी,
एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न,
स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन,
विशेष:
भारतेंदु के निबंधों में विषय के अनुकूल उर्दू-फ़ारसी प्रधान (खुशी), संस्कृतनिष्ठ और बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. बालकृष्ण भट्ट: (1844 - 1914) - 'हिंदी प्रदीप' (सम्पादक)
'भट्ट- निबंधावली', हिंदी का 'मोन्टेन' कहा जा सकता है।
प्रमुख निबंध:
आँसू,
मुछन्दर
'इंग्लिश पढ़े तो बाबू होय',
मेला ठेला,
वकील,
आत्मनिर्भरता,
आशा माधुर्य
खटका,
आत्मनिर्भरता
कल्पना शक्ति
तर्क
विश्वास
सहानुभूति
अनोखा स्वप्न
विशेष:
साधारण विषयों -आंख, नाक, कान, बातचीत, आँसू, चंद्रोदय आदि पर भी 'सर्वसाधारण में प्रचलित भाषा' पर श्रेष्ठ निबंध! अरबी-फारसी-संस्कृत-अंग्रेज़ी आदि के शब्दों का विषयानुसार प्रयोग।
3. प्रताप नारायण मिश्र: (1856 - 1964 )- 'ब्राह्मण' नामक मासिक पत्र निकाला। भारतेंदु के पदचिह्नों पर चलने वाले।
प्रमुख निबंध:
बात,
धोखा,
आप,
पुच्छ,
रिश्वत,
बेगार,
होली,
वृद्ध,
भौं,
दांत,
समझदार की मौत है,
टेढ़ जानि शंका सब काहू
‘आत्मीयता’,
‘चिन्ता’,
‘मनोयोग’
विशेष:
हास्य-व्यंग्य प्रियता के साथ गम्भीर चिंतन। मुहावरों-कहावतों का प्रचुर प्रयोग। वार्तालाप स्वच्छंद शैली। जन साहित्य को जनभाषा में।
4. बदरी नारायण चौधरी 'प्रेमघन' : (1855 - 1923)- 'आनंद कादम्बिनी' पत्रिका के सम्पादक।
प्रमुख निबंध:
सम्पादकीय,
सम्पत्ति सीर,
हास्य,
हरितांकुर,
विज्ञापन
वीर बधूटियां
‘हमारी मसहरी’
‘हमारी दिनचर्या’
‘फागुन’,
‘मित्र’,
ऋतु-वर्णन
विशेष:
मनोरंजक लेख
1.प्रेमघन जी अपने निरालेपन के लिए याद किए जाते हैं। उनका उद्देश्य यह नहीं था कि उनकी बात साधारण समाज तक पहुंचे, उसका मनोरंजन हो या उसके विचारों में परिवर्तन हो। कलम की करामात दिखाना ही उनका उद्देश्य था। वह स्वाभाविक, प्रवाहमय, सुबोध भाषा नहीं लिखते। बल्कि शब्दों की जड़ाई करते थे। (विकीबुक्स)
2. वाणभट्ट की 'कादम्बरी' को गद्य का आदर्श मानते थे।
3. 'अनुप्रासमयी, आलंकारिक एवं गुम्फित शैली में दीर्घ वाक्यावली इनकी विशेषता थी..' - डॉ. विजयेंद्र स्नातक
5. अम्बिकादत्त व्यास: (1858 - 1900)- मूलतः संस्कृत भाषा के पण्डित। काशी से 'वैष्णव-पत्रिका' (1884 ई.) का आरम्भ इन्होंने किया था, जो बाद में 'पियूष-प्रवाह' नाम से साहित्यिक पत्रिका में रूपांतरित हो गयी। ‘काशी कविता वर्धिनी सभा’ द्वारा 'सुकवि' की उपाधि से सम्मानित। 'गद्य और पद्य में 50 से अधिक पुस्तकें' ( - 'काशी कथा, साहित्यकार' )। इनके निबंधों का संग्रह 'साहित्य नवनीत' नाम से प्रकाशित हुआ है।
प्रमुख निबंधः
धैर्य,
क्षमा
ग्रामवास,
नगर वास
6.बालमुकुंद गुप्त: ( 1863 - 1907)-
इन्हें भारतेंदु युग के अलावा कुछ समीक्षक द्विवेदी युगीन भी मानते हैं। इन्होंने कई उपनामों से निबंध लिखे। इनमें आत्माराम, शिवशम्भु शर्मा उपनाम विशेष प्रसिद्ध हैं।
'गुप्त-निबंधावली' में इनके निबंध संग्रहीत हैं। 'शिवशम्भु का चिट्ठा' नाम से लिखे गए चिट्ठों के रूप में इनके निबंध विशेष प्रसिद्ध हैं। 'भारत मित्र' पत्र में उनके अधिकांश निबन्ध प्रकाशित हुए थे!
प्रमुख निबंध:
बनाम लार्ड कर्जन ( भारत मित्र, 11 अप्रैल, 1903)
श्रीमान का स्वागत ( भारत मित्र, 26 नवम्बर, 1904)
वाइसराय का कर्तव्य (भारतमित्र', 17 सितम्बर, 1904)
पीछे मत फेंकिए ( भारतमित्र', 17 दिसम्बर,1904 )
आशा का अंत ( भारतमित्र', 25 फरवरी, 1905)
एक दुराशा ( भारतमित्र',18 मार्च, 1905)
विदाई संभाषण (भारतमित्र', 2 सितम्बर, 1905)
बंग विच्छेद ( भारतमित्र', 21 अक्तूबर, 1905 )
लॉर्ड मिंटो का स्वागत ( भारतमित्र', 23 सितम्बर, 1905 )
मार्ली साहब के नाम ( भारतमित्र', 16 फरवरी, 1907)
आशीर्वाद ( भारतमित्र', 30 मार्च, 1907)
शाइस्ताखाँ का खत-1(भारतमित्र', 25 नवम्बर, 1905 ), अज जन्नत
शाइस्ताखाँ का खत-2 ( भारतमित्र', 18 अगस्त, 1906 ), अज जन्नत
सैयद अहमद का खत ( भारतमित्र', 9 मार्च, 1907 ), अज जन्नत
विशेष:
1. बालमुकुन्द गुप्त के निबंधों में जैसा व्यंग्य, कटाक्ष, हास्य और विनोद मिलता है, वैसा उनके पूर्व दृष्टिगोचर नहीं होता।
2. आत्माराम नाम से लिखे गए इनके निबन्ध विवेचना की कोटि में आते हैं। गुण-दोष विवेचन इन निबंधों की प्रमुख प्रवृत्ति है।
3. शिवशम्भु शर्मा नाम से लिखे गए निबंध प्रमुख रूप से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ राजनीतिक व्यंग्य हैं। इनका हिन्दी गद्य और निबन्ध विधा के विकास में विशेष योगदान है।
इन्हें भारतेंदु युग के अलावा कुछ समीक्षक द्विवेदी युगीन भी मानते हैं। इन्होंने कई उपनामों से निबंध लिखे। इनमें आत्माराम, शिवशम्भु शर्मा उपनाम विशेष प्रसिद्ध हैं।
'गुप्त-निबंधावली' में इनके निबंध संग्रहीत हैं। 'शिवशम्भु का चिट्ठा' नाम से लिखे गए चिट्ठों के रूप में इनके निबंध विशेष प्रसिद्ध हैं। 'भारत मित्र' पत्र में उनके अधिकांश निबन्ध प्रकाशित हुए थे!
प्रमुख निबंध:
बनाम लार्ड कर्जन ( भारत मित्र, 11 अप्रैल, 1903)
श्रीमान का स्वागत ( भारत मित्र, 26 नवम्बर, 1904)
वाइसराय का कर्तव्य (भारतमित्र', 17 सितम्बर, 1904)
पीछे मत फेंकिए ( भारतमित्र', 17 दिसम्बर,1904 )
आशा का अंत ( भारतमित्र', 25 फरवरी, 1905)
एक दुराशा ( भारतमित्र',18 मार्च, 1905)
विदाई संभाषण (भारतमित्र', 2 सितम्बर, 1905)
बंग विच्छेद ( भारतमित्र', 21 अक्तूबर, 1905 )
लॉर्ड मिंटो का स्वागत ( भारतमित्र', 23 सितम्बर, 1905 )
मार्ली साहब के नाम ( भारतमित्र', 16 फरवरी, 1907)
आशीर्वाद ( भारतमित्र', 30 मार्च, 1907)
शाइस्ताखाँ का खत-1(भारतमित्र', 25 नवम्बर, 1905 ), अज जन्नत
शाइस्ताखाँ का खत-2 ( भारतमित्र', 18 अगस्त, 1906 ), अज जन्नत
सैयद अहमद का खत ( भारतमित्र', 9 मार्च, 1907 ), अज जन्नत
विशेष:
1. बालमुकुन्द गुप्त के निबंधों में जैसा व्यंग्य, कटाक्ष, हास्य और विनोद मिलता है, वैसा उनके पूर्व दृष्टिगोचर नहीं होता।
2. आत्माराम नाम से लिखे गए इनके निबन्ध विवेचना की कोटि में आते हैं। गुण-दोष विवेचन इन निबंधों की प्रमुख प्रवृत्ति है।
3. शिवशम्भु शर्मा नाम से लिखे गए निबंध प्रमुख रूप से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ राजनीतिक व्यंग्य हैं। इनका हिन्दी गद्य और निबन्ध विधा के विकास में विशेष योगदान है।
भारतेंदु युगीन निबंध- टिप्पणी:
1.राजा शिव प्रसाद 'सितारेहिंद' -'राजा भोज का सपना' (1889 ई.) - हिंदी का प्रथम मौलिक निबंध भी कहा जाता है। यद्यपि इस पर मतैक्य नहीं है।
2. भारतेंदु युग के अन्य निबंध लेखकों में राधाचरण गोस्वामी, ठाकुर जगमोहन सिंह, काशीनाथ खत्री, गोविंद नारायण मिश्र, भीमसेन शर्मा, किशोरीलाल गोस्वामी तथा तोताराम भी उल्लेखनीय हैं।
2. भारतेंदु युग के अन्य निबंध लेखकों में राधाचरण गोस्वामी, ठाकुर जगमोहन सिंह, काशीनाथ खत्री, गोविंद नारायण मिश्र, भीमसेन शर्मा, किशोरीलाल गोस्वामी तथा तोताराम भी उल्लेखनीय हैं।
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क्या आपको कोई योजना बद्ध तरीके से इनको किसी भी साइट पर डालना आएगा।
ReplyDeleteकिसी की मदद से आप अगर कर पाएं तो उपकार