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केंद्रीय बज़ट में शिक्षा


                               केंद्रीय_बज़ट में शिक्षा

                                             - डॉ.रमेश बैरवा
                                              प्रांतीय संयुक्तसचिव
                                              (RUCTA), राजस्थान
       
*केंद्रीय बजट 2020-21 में शिक्षा की भी की गई है घोर उपेक्षा

*शिक्षा के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देना जनविरोधी कदम 

*इस बजट का विरोध करने की शिक्षक साथियों से है पुरजोर अपील

मोदी सरकार का  बजट 2020-21 घोर जन विरोधी है। इस बजट में शिक्षा की भी घोर उपेक्षा की गई है,जिस पर शिक्षक समुदाय भी कड़ा विरोध प्रकट करता है। आज तक के सबसे लंबे बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 3042230 लाख करोड़ रुपये का केंद्रीय बजट पेश किया है। इसमें स्कूली शिक्षा के लिए 59845 करोड़ रुपये एवं उच्च शिक्षा हेतु 39466 करोड़ रुपये शिक्षा के लिए आवंटित किए हैं। शिक्षा पर कुल आवंटन 99300 करोड़ रुपये रखा गया है। बजट में नई शिक्षा नीति को लागू करने, शिक्षा में विदेशी निवेश लाने,गरीब तबके के लिए ऑनलाइन कोर्स शुरू करने एवं शिक्षा में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी मॉड) को तेजी से लागू किये जाने पर जोर दिया गया है। असल में शिक्षा पर सकल बजट के आवंटन का सिर्फ तीन प्रतिशत के करीब है जो कि हमारे देश की इतनी विशाल युवा आबादी को सस्ती सरकारी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया करवा कर  कुशल बनाने के लिए बहुत ही कम है। आल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटीज़ एंड कॉलेज टीचर्स ऑर्गेनाइज़ेशन्स-(एआईफुक्टो) एवं इससे जुड़े रूक्टा सहित देश के शिक्षक एवं विद्यार्थी संगठनों की राष्ट्रीय स्तर पर लम्बे अरसे से पुरजोर मांग रही है कि विकसित भारत के निर्माण के लिए शिक्षा मद में बजट का कम से कम दस प्रतिशत आवंटन किया जाए। साथ ही बजट खर्च भी पर्याप्त होना चाहिए। राजकोषीय घाटा कम करने के नाम पर बजट व्यय कम नहीं किया जाना चाहिए। शिक्षा का व्यावसायीकरण नहीं होना चाहिए। पीपीपी मॉडल आमजन को अंततः शिक्षा से बंचित ही करेगा। 
  उल्लेख है कि चीन भारत के कुल बजट करीब तीस लाख करोड़ रुपये के बराबर अकेले शिक्षा पर खर्च करता है। चीन का बजट व्यय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 35 प्रतिशत है जबकि इंडिया का बजट व्यय जीडीपी का 20 प्रतिशत से भी कम है जो कि इंडिया के समतामूलक विकास के लिए बहुत ही कम है। आर्थिक मंदी,विषमता एवं बेरोजगारी बढ़ाने वाली जनविरोधी बाजारवादी अर्थनीति की विचारधारा के कारण राजकोषीय घाटा कम करने के नाम पर भारत के सकल बजट व्यय में लगातार कटौती की जा रही है।         
शिक्षक समुदाय शिक्षा पर बजट में किये गए बेहद कम आवंटन एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने की नीतिगत दिशा पर कड़ा एतराज करता है,साथ ही पुरजोर मांग करता है कि मोदी सरकार बजट सत्र में वित्त विधेयक पर चर्चा के दौरान शिक्षा मद में बजट आवंटन बढ़ाने का संशोधन पेश करे। शिक्षा के व्यावसायीकरण पर रोक लगाए,अन्यथा शिक्षक समुदाय अपनी मांग के लिए आंदोलन का रास्ता अपनाएगा।                         
                                     ★★★★★★

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