भैया-दूज: अकाल-मृत्य भय से अ भय होने का दिन ~ आचार्य कृष्णानंद स्वामी हमारे देश के सभी त्यौहार सामाजिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के त्यौहार है। पारिवारिक नातों-रिश्तों के साथ सामाजिक एकजुटता और भाईचारे के भी ये त्यौहार प्रतीक हैं। सभी त्यौहारों के पीछे कोई न कोई एक मिथकीय पारम्परिक कथा जुड़ी है जिसके सहारे शिक्षित-अशिक्षित जन-सामान्य इन त्यौहारों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। इन कथाओं में सामाजिक प्रेरणाएँ निहित हैं जो जीवन में खुशियां लाने का संदेश देती हैं। भैया-दूज, भाई-दूज या भ्रातृ-द्वितीया भी इसी तरह का एक ऐसा त्यौहार है जिसमें भाई-बहन के रिश्ते को और प्रगाढ़ करने का संदेश है। भैया-दूज की पारम्परिक कथा: मान्यता है कि भैया-दूज का यह त्यौहार यमराज और उनकी बहन यमुना के बीच अटूट प्रेम-सम्बन्ध का प्रतीक है। यमराज जैसे मनुष्यों के अंतकाल (मृत्यु) के 'देवता' के भय को, विशेषकर अकाल मृत्यु भी को मनुष्यों के मन से निकालने के लिए यह त्यौहार महत्त्वपूर्ण है। मान्यता के अनुसार कार्तिक मास की शुक्लपक्ष द्वितीया के दिन यमर
राजसत्ता का इंद्रजाल सच यही है कि वे जो कुछ कर रहे हैं पूरे इत्मिनान और भरोसे के साथ कर रहे हैं! वे ऐसा ही सोचते हैं- राजा को राजा की तरह रहना चाहिए और प्रजा को प्रजा की तरह!...प्रजातंत्र का यह मतलब थोड़ी है कि प्रजा प्रजा न रहे, राजा होने की कोशिश करे। और भी कि परमात्मा ने जिसे जो करने के लिए भेजा है, वह वही करेगा- कर पाएगा! सब अम्बानी-अदानी थोड़ी हो जाएंगे?...देश संभालना कोई आसान काम है क्या?...जबकि लोग एक घर नहीं संभाल पाते तो जिसे देश सम्भालने का जिम्मा परमात्मा और परमात्मा के विश्वासियों द्वारा मिला है, वह जो कुछ कर रहा होगा- ठीक ही कर रहा होगा!... उसकी मर्ज़ी के बगैर जब एक पत्ता तक नहीं हिलता तो कोई बैंक या सार्वजनिक संस्थान अपने आप डूब सकता है?...भगवान की मर्ज़ी से ही व्यवस्था संभालने का जिम्मा मिलता है और उसकी इच्छा से ही राजकाज चलता है!... चीखने वालों को यह समझना चाहिए कि वे भगवान की मर्ज़ी पर सवाल उठा रहे हैं। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि परमात्मा किसी भी देश-दुनिया से ऊपर की चीज, इन सबसे बड़ा है। जो यह नहीं समझते वे केवल अज्ञानी नहीं, उसकी इच्छा के खिलाफ सोचन