Skip to main content

Posts

चुन रे धागा, बुन

                        चुन रे धागा, बुन!       
Recent posts

चुनाव से पहले खेला गया हरियाणा का असल खेला?

  हरियाणा-चुनाव :            चुनाव से पहले का चुनाव                                              हरियाणा चुनाव में बाज़ी कॉंग्रेस की जगह भाजपा ने मारी! क्यों?...सबके अपने कयास हैं। लेकिन असल-विजेता तो वह 'खेला' है जिसे समझे बिना कॉंग्रेस या विपक्षी गठबंधन भाजपा को कभी मात नहीं दे पाएगा।  22 राज्यों में फैले 90 विधानसभा क्षेत्रों के 1031 उम्मीदवारों का फैसला यहाँ के 2 करोड़ मतदाताओं ने तो कर दिया, लेकिन कैसे किया, इसका उत्तर विश्लेषकों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की समझ के अनुसार अलग-अलग है।  विशेषकर मतदान के दिन के चुनावी रुझानों और परिणाम के दिन के बैलेट-पेपर की गिनती के रुझानों ने आखिरी परिणाम के निष्कर्षों को पूरा मनोरंजक बना दिया। इससे यह बात तो सिद्ध हो ही रही है कि लोकतांत्रिक चुनाव मुख्यतः 'गणितीय खेला' है जिसमें 'चुनावी गणित' की समझ को जमीनी स्तर पर उतारने वाला दल या समूह ही बाजी मार सकता है। जैसे पूरे चुनाव-प्रचार के दौरान ऐसा लग रहा था कि इस बार कॉंग्रेस के पक्ष में 'आंधी' 'तूफ़ान' अगर न सही पर बयार तो जरूर है। किंतु परिणाम ने इस बयार को '

क्यों होते हैं यौन-हिंसा पर चुनिंदा विरोध-प्रदर्शन?..

                स्त्रियों के विरुद्ध बढ़ते अपराध                        हत्या-बलात्कार के मुख्य कारण                               ~ अशोक प्रकाश कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक ट्रेनी महिला डाक्टर से बलात्कार और हत्या के समाचारों ने पूरे देश को आंदोलित कर दिया। इस जघन्य अपराध के खिलाफ़ यह प्रतिक्रिया उचित भी थी और जरूरी भी। इसे निर्भया-2 भी कहा गया। हमारा पुरुषप्रधान समाज जिस तरह कुंठित जीवन जीता है, विशेषकर स्त्री और यौन-संबंधों के मामले में, वहाँ इस तरह के अपराध अब समाज की प्रकृति बन गए हैं। पश्चिमी देशों में अश्लीलता को लेकर स्यापा करने वाले तथाकथित 'सनातनी' अपने देश में ऐसे अपराधों के लिए भी 'पश्चिम की संस्कृति' को दोषी ठहराते देखे जा सकते हैं। लेकिन, दरअसल यह अपने समाज के अपराध को छुपाने की एक प्रवृत्ति है। यौन अपराध छिपाने की इस प्रवृत्ति से यह खत्म होने या कम होने के बजाय और बढ़ती है। लेकिन समाज में ऐसी हिंसा की शिकार औरतों को जिस नज़रिए से देखा जाता है, उससे प्रायः ऐसी घटनाओं का दोषी उन पीड़ित महिलाओं को ही मान लिया जाता है। उनके कपड़े पहनने, देखने, चल

जमीन ज़िंदगी है हमारी!..

                अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में              भूमि-अधिग्रहण                         ~ अशोक प्रकाश, अलीगढ़ शुरुआत: पत्रांक: 7313/भू-अर्जन/2023-24, दिनांक 19/05/2023 के आधार पर कार्यालय अलीगढ़ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अतुल वत्स के नाम से 'आवासीय/व्यावसायिक टाउनशिप विकसित' किए जाने के लिए एक 'सार्वजनिक सूचना' अलीगढ़ के स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुई। इसमें सम्बंधित भू-धारकों से शासनादेश संख्या- 385/8-3-16-309 विविध/ 15 आवास एवं शहरी नियोजन अनुभाग-3 दिनांक 21-03-2016 के अनुसार 'आपसी सहमति' के आधार पर रुस्तमपुर अखन, अहमदाबाद, जतनपुर चिकावटी, अटलपुर, मुसेपुर करीब जिरोली, जिरोली डोर, ल्हौसरा विसावन आदि 7 गाँवों की सम्बंधित काश्तकारों की निजी भूमि/गाटा संख्याओं की भूमि का क्रय/अर्जन किया जाना 'प्रस्तावित' किया गया।  सब्ज़बाग़: इस सार्वजनिक सूचना के पश्चात प्रभावित गाँवों के निवासियों, जिनकी आजीविका का एकमात्र साधन किसानी है, उनमें हड़कंप मच गया। एक तरफ प्राधिकरण, सरकार के अधिकारी और नेता अखबारों व अन्य संचार माध्यमों, सार्वजनिक मंचों से ग्रामीणों और शहर

कौन है विनाशलीला का असली जिम्मेदार?..

                     वर्षा की तीव्रता, आवृत्ति और             बांध के कारण बाढ़-आपदा                                         ~ राज कुमार सिन्हा                           बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ औसत वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण लंबे समय तक बारिश न होने के और अचानक अत्यधिक बारिश की घटना के कारण बाढ़ में बढोतरी हुई है। आपदा आने से ठीक पहले वायनाड केरल में अभूतपूर्व बारिश हुई थी। जिले की सलाना औसत का 6 प्रतिशत बारिश महज़ एक दिन में हो गई। विगत कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन वर्षा की तीव्रता और आवृत्ति को प्रभावित कर रहा है। एकाएक कम समय में भारी बारिश के कारण बाढ़ वृद्धि के जोखिम बढ़ जाते हैं। भारी वर्षा का मतलब यह नहीं है कि किसी स्थान पर वर्षा की कुल मात्रा बढ़ गई है। बल्कि यह है कि वर्षा तीव्र घटनाओं के रूप में हो रही है। वर्षा की तीव्रता में परिवर्तन, जब वर्षा की घटनाओं के बीच अंतराल में परिवर्तन के साथ दोनों होता है, तो वर्षा योग में परिवर्तन हो सकता है।भारी वर्षा की घटनाओं में उनकी आवृत्ति पर नजर रखना और यह गणना करना कि किसी दिए गए वर्ष में किसी विशेष स्थान की कुल वर्षा

तबाह क्यों है किसान की ज़िंदगी?..

             छोटे किसानों की छीछालेदर                                           ~ राजकुमार सिन्हा  कृषि अर्थव्यवस्था के जानकार मानते हैं कि खेती को बरकरार रखने, विकसित करने और सबका पेट भरने की अधिकांश जिम्मेदारी छोटे और सीमांत किसान ही निभाते हैं। जहां 70% ग्रामीण परिवार अभी भी अपनी आय के प्राथमिक स्रोत के रूप में कृषि पर निर्भर हों तथा 82 % किसान छोटे एवं सीमांत हों, वहां यह बात वाजिब भी है, लेकिन हमारी सरकारें उनके प्रति कैसा व्यवहार कर रही हैं? प्रस्तुत है, इसी मुद्दे पर प्रकाश डालता राजकुमार सिन्हा का यह लेख!  हाल में हुए कृषि अर्थशास्त्रियों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत के छोटे किसान देश की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र भारत की आर्थिक नीति में केन्द्रीय महत्व रखता है, हमारे यहां 90 प्रतिशत कृषक परिवार ऐसे हैं जिनके पास बहुत कम जमीन है जिसके कारण इनकी उपज की मात्रा कम रहती है और ये न तो खेती का खर्च कम करने और न ही अपनी उपज के लिए बेहतर भाव हासिल कर पाने में बाजार से मोलभाव करने की स्थ

कोलकाता: हत्या-बलात्कार की रातों का अंत कब?

      असली गुनहगार का अंत                  कब होगा?  लोगों की जान बचाने के लिए वह रात में 'ऑन कॉल' ड्यूटी पर थी, लेकिन वह खुद को दरिंदो से बचाने में नाकाम रही! उसके पिता ने उसे नग्न अवस्था में फर्श पर पड़ा हुआ पाया, उसकी Pelvic Bone (कूल्हे की हड्डी) टूटी हुई थी, हाथ-पैर विकृत थे और उसकी आंखों में चश्मे के टुकड़े टूटे हुए थे और लगातार खून बह रहा था। उन अंतिम क्षणों में उसकी दुर्दशा अकल्पनीय है। उसके माता-पिता को अपराध स्थल पर पहुंचने के 3 घंटे बाद तक उसके शव से संपर्क करने से मना कर दिया गया। उसके शरीर में 100 ग्राम semen पाया गया। एक बलि का बकरा हिरासत में है। मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने कहा कि वह मानसिक रोगी थी और सुसाइड कर ली है।उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अगले दिन उन्हें एक बड़े मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया गया। सीबीआई को ट्रांसफर होने के बाद अस्पताल में रेनोवेशन का काम शुरू हुआ। इस बिंदु पर अब यह केवल डॉक्टर का मामला नहीं रह गया है, यह सिर्फ अमानवीय है। हम साल-दर-साल अमानवीयता के निचले स्तरों पर  गिरते जा रहे है।  मूर्ख वे थे, जिन्हें यह भी