अरे चुन रे धागा, बुन रे-रे चुन-चुन रे धागा बुन!.. कान लगा ले पूरब-पच्छिम पूरब-पच्छिम रे उत्तर-दक्खिन चारों तरफ तो शोर ही शोर रे तू ध्यान लगा के सुन! चुन रे धागा, बुन रे-रे चुन-चुन रे धागा बुन!.. वे गीधे जो पच्छिम में थे उत्तर में थे दक्खिन में थे तेरे पुरब में मड़राएं रे निगलें सूरज दें अवगुन! चुन रे धागा, बुन रे-रे चुन-चुन रे धागा बुन!.. कहत कबीर तू सुन रे संता मत बन रे अंखियन का अंधा अंधियारे में आग लगा दे रे छेड़ दे भोर की धुन! चुन रे धागा, बुन रे-रे चुन-चुन रे धागा बुन!.. ★★★★★★
हरियाणा-चुनाव : चुनाव से पहले का चुनाव हरियाणा चुनाव में बाज़ी कॉंग्रेस की जगह भाजपा ने मारी! क्यों?...सबके अपने कयास हैं। लेकिन असल-विजेता तो वह 'खेला' है जिसे समझे बिना कॉंग्रेस या विपक्षी गठबंधन भाजपा को कभी मात नहीं दे पाएगा। 22 राज्यों में फैले 90 विधानसभा क्षेत्रों के 1031 उम्मीदवारों का फैसला यहाँ के 2 करोड़ मतदाताओं ने तो कर दिया, लेकिन कैसे किया, इसका उत्तर विश्लेषकों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की समझ के अनुसार अलग-अलग है। विशेषकर मतदान के दिन के चुनावी रुझानों और परिणाम के दिन के बैलेट-पेपर की गिनती के रुझानों ने आखिरी परिणाम के निष्कर्षों को पूरा मनोरंजक बना दिया। इससे यह बात तो सिद्ध हो ही रही है कि लोकतांत्रिक चुनाव मुख्यतः 'गणितीय खेला' है जिसमें 'चुनावी गणित' की समझ को जमीनी स्तर पर उतारने वाला दल या समूह ही बाजी मार सकता है। जैसे पूरे चुनाव-प्रचार के दौरान ऐसा लग रहा था कि इस बार कॉंग्रेस के पक्ष में 'आंधी' 'तूफ़ान' अगर न सही पर बयार तो जरूर है। किंतु परिणाम ने इस बयार को '