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मुक्केबाज स्वीटी ने क्यों किसानों को समर्पित किया चैंपियनशिप का पदक?

      काला कानून, कितना काला!                     किसान आंदोलन की                        परीक्षा  एवं सफलताएं                                      Boxer  Saweety Boora                                             Ph oto Courtesy: merisaheli.com  किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं सहित देश के कोने-कोने में तीन कृषि सम्बन्धी कानूनों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन और धरने जारी हैं, उसी तरह शासकों के साथ-साथ प्रकृति द्वारा भी उसकी परीक्षाएँ जारी हैं। मुसीबतों और अड़चनों के बावजूद धैर्य और दृढ़ता से किसान इनका सामना कर रहे हैं! संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के क्रम में शाहजहांपुर बॉर्डर को भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा। इस तूफान के कारण बड़े पैमाने पर किसानों के टेंट, मंच, लंगर एवं अन्य सामान का नुकसान हुआ। किसानों के टेंट पूरी तरह उखड़ गए। जब किसानों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की तो उन्हें गंभीर चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा ने समाज कल्याण के संगठनों और आम जन से निवेदन किया है कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर हर संभव मदद पहुंचाई जाए ताकि वहां पर धरना दे रहे किसानों को कोई भी दिक्

कितना समर्थन मिला कालादिवस को?..

काला कानून, कितना काला!                             किसान आंदोलन में                             उत्साह                                 काला-दिवस' सुदूर दक्षिण तक 'काला-दिवस' को मिले देश भर के भारी समर्थन से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाए जा रहे किसान आंदोलन में अत्यधिक उत्साह का संचार हुआ है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इस विरोध प्रदर्शन को जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक और पूर्वोत्तर से लेकर महाराष्ट्र तक व्यापक समर्थन मिलने और आंदोलन को गाँवों-कस्बों तक पहुँचने की खबरें आईं। किसानों ने काले झंडे दिखाते, पुतले फूँकते अपने फोटो और वीडियो वायरल किए। इससे यह संदेश गया है कि किसानों के आंदोलन को तोड़ने की सरकार की सभी साजिशें नाकाम सिद्ध हो रही है। विविध कार्यक्रमों से यह स्पष्ट हुआ कि अपनी मांगों को पूरा करने में किसानों का पक्ष मजबूत हो रहा है। किसान मांगों को पूरा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। सयुंक्त किसान मोर्चो सभी देशवासियों को कल के सफल कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करता है। यह आंदोलन अब भारत भर में व्यापक स्थानों पर फैल रहा है। चाहे वह उत्तर पूर्व भारत में हो, या

क्या है किसान आंदोलन को मजबूत करने की नई योजना?..

              क्या और व्यापक, और मजबूत होगा                                         किसान आंदोलन  संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जारी किसान आंदोलन अब आम लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनने कोशिश कर रहा है। दिख रहा है कि अगर सरकार ऐसे ही आंदोलन की उपेक्षा करती रही तो किसान आंदोलन को जारी रखने के लिए न केवल उसे आम देशवासियों से जोड़ा जाएगा, बल्कि संघर्ष को भी और शक्तिशाली बनाया जाएगा। हरियाणा के किसानों पर हुए लाठीचार्ज के बाद इसकी जरूरत और ज़्यादा बढ़ गई है। किसान आंदोलन इसके लिए खुद को न केवल और व्यापक बनाने की कोशिश कर रहा है बल्कि इसे समाज के वंचित वर्गों तक भी इसे ले जाने के लिए भी प्रयासरत है। शायद बुद्ध पूर्णिमा को मनाने का आह्वान भी इसकी एक क़वायद है!... देखें, संयुक्त किसान मोर्चा की नई प्रेस विज्ञप्ति: हरियाणा के हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस ने हिंसक कार्रवाई की थी। इसमें अनेक किसानों को गहरी चोटें भी आई थी व कई किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसी दिन किसानों के भारी विरोध के बाद पुलिस ने किसानों पर कोई केस न दर्ज करने का फैसला लिया था

शहीद महावीर सिंह को आप जानते हैं क्या?

                     शहीद भगतसिंह के साथी:                         अमर शहीद महावीर सिंह            देश की माटी अमर शहीदों की यादगार है। इस देश की खेती-बाड़ी, इस देश के किसानों-मजदूरों की खुशहाली के लिए अनगिनत शहीदों का कर्ज हम सब पर है। जैसे अंग्रेजों के समय रायबहादुर, रायसाहब, सर आदि उपाधियां लेने वालों और जनता से गद्दारी कर अंग्रेजी राज और उनकी कम्पनियों को लूट में सहयोग करने वालों की कमी नहीं  थी, वैसे ही आज भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की दलाली करने, उनसे सांठगांठ करने, तथाकथित 'समझौता' कर देश के प्राकृतिक संसाधनों-जल, जंगल, जमीन..बाज़ार और मानवश्रम का कारोबार करने और उनके बल पर सत्ता-सुख हासिल करने, अरबों-खरबों का वारा-न्यारा करने वालों की कमी नहीं है। जनता की बदहाली और इन जनद्रोहियों के ऐशो-आराम से आज की हालात को समझा जा सकता है।  लेकिन देखें, शहीद भगतसिंह के साथी अमर शहीद महावीर सिंह ने क्या किया था और इन देश के सच्चे नेताओं से आज जे नेताओं की तुलना करें!...  17 मई 1933 की शाम थी, जब अंडमान (कालापानी) की जेल के बैरक संख्या 66 में आधे घण्टे की कुश्ती के बाद दस -बारह व्यक्तियों

क्या जनता नहीं, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपराजेय हैं?

          किसान-मजदूर आंदोलन के सामने                                   उठते सवाल   देश की आम जनता, विशेषकर किसान आंदोलन के सामने कुछ ज्वलंत सवाल खड़े हैं!...क्या मजदूर किसान आंदोलन से जुड़ेंगे?...अगर जुड़ेंगे तो किसान आंदोलन का स्वरूप क्या होगा? हाल ही में प्रवासी मजदूरों को किसान आंदोलन से जुड़ने का जो आह्वान किया गया था, उसका निहितार्थ क्या है? उसका क्या प्रभाव पड़ा?...क्या हमारे देश में प्रवासी मजदूरों के संघर्ष का कोई इतिहास है? इस नए अर्थात उदारीकरण के दौर में क्या मजदूर परम्परागत मजदूर रह गया है? क्या प्रवासी मजदूरों ने पिछले साल की विभीषिका से कोई सबक लिया है? लिया है तो क्या? - मालिकों के सामने गिड़गिड़ाकर किसी भी तरह, किसी भी शर्त पर काम पाना या कुछ और?...क्या किसान आंदोलन से उन्हें कोई उम्मीद है? ... ऐसे बहुत से सवाल शासकवर्ग से अलग सोच रखने वाले मजदूरों, किसानों, बेरोज़गारों, बुद्धजीवियों के सामने आज खड़े हैं। कोरोना ने इन सवालों को अगर अप्रत्यक्ष रूप से तीखा किया है तो बहुत से अन्य सवाल भी खड़े किए हैं। मसलन, प्रत्यक्ष दिखने वाला संकट क्या शासकवर्गों अपरंच साम्राज्यवादी शक्तियों का

संयुक्त किसान मोर्चा: नये संघर्षों का ऐलान

                किसान आंदोलन का नया ऐलान 14 मई को हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में जहाँ भारतीय किसान यूनियन के महान नेता महेंद्र सिंह टिकैत को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई, वहीं अमर शहीद सुखदेव के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए उनके सपनों को मंजिल तक पहुँचाने का संकल्प लिया गया। इसके साथ शहीद भगतसिंह के भतीजे और किसान आंदोलन के समर्थक सामाजिक कार्यकर्ता अभय संधू   की मृत्यु पर दुःख प्रकट करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।  इस बैठक की अध्यक्षता किसान नेता श्री राकेश टिकैत ने की। बैठक में निम्नलिखित निर्णय सर्वसम्मति से लिए गए:   1. 26 मई को हम दिल्ली की सीमाओं पर अपने विरोध के 6 महीने पूरे कर रहे हैं।  यह केंद्र में आरएसएस-भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने का भी प्रतीक है।  इस दिन को देशवासियों द्वारा "काला दिवस" के रूप में मनाया जाएगा। पूरे भारत में गांव और मोहल्ला स्तर पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होंगे जहां दोपहर 12 बजे तक किसान मोदी सरकार के पुतले जलाएंगे।  किसान उस दिन अपने घरों और वाहनों पर काले झंडे भी फहराएंगे।  इस मौके पर एसकेएम ने सभी जन

क्यों चलता रहेगा किसान आंदोलन?..

           किसानों की तकलीफों से निकला है                        किसान आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने सिंघु बॉर्डर पर एक सभा में कहा कि किसानों के दर्द से निकला है यह किसान आंदोलन और जब तक किसानों की किसानों की माँगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक चलेगा! सिंघु बॉर्डर पर किसानों को संबोधित करते हुए नेताओ ने कहा कि इस आंदोलन में किसानों को किसान न कहकर उन्हें अन्य पहचान से जोड़ा गया व उनकी शिक्षा पर भी सवाल किया गया। किसान नेताओं ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि यहां आंदोलन कर रहे किसान को किसान की ही पहचान से जाना जाए और किसानों को यह कानून पूरी तरह समझ आ गए है, इसीलिए यह आंदोलन इतना मजबूत है। मोर्चा ने बताया कि 10 मई को सिंघु व टिकरी बॉर्डर पर किसानों के बड़े काफिले आये। कई जगह पर किसानों का स्वागत किया गया। ट्रेक्टर, कारों व अन्य वाहनों में आये इन किसानों ने मोर्चे को बड़ा करते हुए पहले की तरह टेंट और ट्रॉली में रहने का इंतज़ाम कर लिया है। किसानों का धरना लंबा होता जा रहा है। दिल्ली मोर्चो पर लंबी कतारों में किसानों के टेंट, ट्रॉली व अन्य वाहन पिछले 5 महीने से खड़े है। किसानों के क

किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश

                                     ध्वस्त होंगी              किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिशें संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने एक विशेष वक्तव्य में स्पष्ट कर दिया है कि वह किसान आंदोलन में आई शहीद महिला के लिए इंसाफ की लड़ाई के साथ खड़ा है। संयुक्त किसान मोर्चा प्रतिनिधियों ने साफ कहा है कि आंदोलन में किसी महिला के साथ कोई बदसलूकी कत्तई बर्दाश्त नहीं होगी।           मीडिया और सोशल मीडिया में पिछले महीने टिकरी बॉर्डर पर बंगाल से आई एक महिला साथी के साथ बदसलूकी की घटना की खबर के बारे में संयुक्त किसान मोर्चा यह साफ कर देना चाहता है की वह अपनी शहीद महिला साथी के लिए इंसाफ की लड़ाई के साथ खड़ा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने पहले ही इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही की है और हम इंसाफ की इस लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाएंगे।  यह साथी बंगाल से 12 अप्रैल को "किसान सोशल आर्मी" नामक एक संगठन के कुछ लोगों के साथ टिकरी बॉर्डर पहुंची थी। दिल्ली के रास्ते में और दिल्ली पहुंचने के बाद उसके साथ उन लोगों ने बदसलूकी की।  एक सप्ताह बाद उस महिला को बुखार हुआ, अस्पताल में दाखिल किया गया लेकिन 3

किसान आंदोलन के बदलते तेवर

                                       किसान आंदोलन की                     बढ़ती मुसीबतें                  पश्चिमी उत्तरप्रदेश और विशेषकर जाट-बेल्ट में लोकप्रिय राष्ट्रीय लोक दल- आर.एल.डी. का आधार परंपरागत रूप से किसान रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक नेता महेंद्र सिंह टिकैत इस क्षेत्र की ऐसी शख्सियत रहे हैं जिनके महत्त्व को नकारना न तो राजनीतिक दलों और न किसान आंदोलन के लिए ही संभव रहा है। इसका कारण यह भी है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसान आंदोलन इन्हें प्रतीक के तौर पर मानता रहा है। आज भले ही किसान आंदोलन ने घोषित तौर पर राजनीतिक दलों से दूरी बना रखी है किन्तु आर.एल.डी. जैसी पार्टियों का मिला समर्थन उसका मददगार भी सिद्ध हुआ है। ऐसे में आर.एल.डी. प्रमुख एवं पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री चौधरी अजीत सिंह का निधन किसान आंदोलन के लिए भी एक झटका माना जा रहा है, भले ही उनके उत्तराधिकारी चौधरी जयंत भी किसान आंदोलन को समर्थन देते रहे हैं। स्वाभाविक रूप में किसान आंदोलन ने चौधरी अजीत सिंह की मृत्यु पर हार्दिक श्रद्धांजलि दी है।           प्रस्तु

What is the biggest threat to peasants?..

        Farmers are facing multi-fold problems:                              Corona is just one! Indian people are facing many fold problems these days. Corona is one of them. Although it seems the biggest threat to people, yet they are facing other problems which threaten their life even more . One of these problems is anti-peasant new laws. Farmers are protesting against these three laws for more than four months on the borders of India's capital Delhi and are demanding to withdraw these farm bills. Under these circumstances five Indian States witnessed elections along with local body or Panchayat elections in its most populous state Uttar Pradesh. Ruling BJP at Centre had taken these elections very seriously, particularly West Bengal province was taken as its prestige. BJP lost WB, Tamilanadu and Kerala which is considered its big loss. Sanyukt Kisan Morcha or Joint Peasants' Front terms it defeat against anti-peasants policies of Central Government and demand immediate with

प्रवासी मजदूर और किसान आंदोलन:

किसान आंदोलन             क्या प्रवासी मजदूरों के साथ आने से        और तेज होगा  किसान आंदोलन?           हालांकि पिछले साल की अभूतपूर्व और निर्मम प्रवासी मजदूर पलायन की घटना की पुनरावृत्ति शायद ही इस साल हो!...क्योंकि शासकवर्ग भी यह जानता है और प्रवासी मजदूर भी कि ऐसा होना किसी भी प्रकार की अनहोनी घटना को आमंत्रण दे सकता है। यद्यपि पूंजीवाद अपने मुनाफे के लिए किसी भी हद तक क्रूर हो सकता है, पिछली सदी के दो विश्वयुद्ध इसीलिए लड़े गए थे, किन्तु इनके संचालक यह भी समझते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि सिक्के का पहलू हमेशा उनकी तरफ ही बना रहे। दो विश्वयुद्धों का परिणाम भी उन्हें अच्छी तरह पता होगा। इन युध्दों के बाद एक समय ऐसा लगने लगा था कि जैसे दुनिया से पूंजीवाद का हमेशा के लिए खात्मा हो जाएगा। इन युध्दों के खिलाफ उठ खड़ी हुई जनता की वैश्विक गोलबंदी का ही परिणाम था लंबे समय से बनाए रखे गए उपनिवेश आज़ाद होने लगे। भले ही औपनिवेशिक शासकों ने स्थानीय शासकों से मिलकर मुनाफे को बनाए रखने के समझौते किए और इसी का परिणाम है कि वैश्विक पूँजीवाद या साम्राज्यवाद आज भी जिंदा है। दुनिया भर की जनता को इन समझौतों

क्या शुरू होने वाला है तीसरा स्वतंत्रता संग्राम?..

काले कानून किसान आंदोलन                          किसान-मजदूर संगठनों के लिए                                     आह्वान यद्यपि संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. दर्शन पल ने सीधे तौर पर किसी स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की घोषणा नहीं की है, किन्तु सरकार ने जिस तरह का रवैया अपनाया है और  किसान   संगठन जिस तरह अपने आंदोलन के नित नए तरीके अपना रहे हैं; उससे ऐसा ही लगता है कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत के दिन (10 मई, 1857) को एक महत्वपूर्ण दिन बनाया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से आह्वान किया गया है कि उस दिन देश के सभी किसान-मजदूर संगठनों के प्रतिनिधि सिंघु बॉर्डर पहुँचे। संयुक्त किसान मोर्चा के प्रवक्ता के अनुसार लाखों  किसान   तीन किसान विरोधी व कॉरपोरेट पक्षीय कानूनों का विरोध शुरू से स्थानीय स्तर पर कर रहे है और पिछले साल नवंबर के अंत से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए है।  संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में, वे सभी किसानों के लिए पारिश्रमिक एमएसपी की कानूनी गारंटी की भी मांग कर रहे हैं। 143 दिनों के विरोध के बावजूद, भीषण ठंड, बारिश और गर्मी के मौसमो में, किसानों की जा

Call to 'Reach Delhi Again'

     काले कानून                   Operation Power (शक्ति) against                         'Opration Clean'                          On the 144th day of 'Joint Farmers' Front' (Sanyukt Kisan Morcha- SKM), (farmers agitating against the new anti-farm laws,), responded with 'Operation Shakti with Operation Clean in SKM's announcement. Its spokesperson and peasants' leader Dr.Darshan Pal announced: * SKM has evolved its strategy to counter the conspiracy to clean out the farmers' protest sites in the name of addressing corona pandemic * From 20th to 26th April, in a week being called as "Resistance Week", all protest sites will make strong arrangements to protect from corona * Farmers being invited to come back to protest sites with a slogan of "Phir Dilli Chalo" * A National Convention of farmer leaders and representatives on 10th May                     Dr.Darshan Pal, SKM leader The ongoing farmers' movement under the leadersh

व्यापक हो रहा है किसान आंदोलन

काले कानून                       रोज़-रोज़ और तेज... और व्यापक हो रहा है  किसान आंदोलन                     दिल्ली बॉर्डर से शुरू हुआ किसान आंदोलन रोज़-रोज़ और तेज, और व्यापक होता जा रहा है। एक तरफ़ जहाँ केंद्र सरकार किसान आंदोलन के प्रति ऐसा व्यवहार प्रकट कर रही है जैसे इस आंदोलन से उस पर कोई फर्क़ नहीं पड़ने वाला, वहीं दूसरी तरफ़ किसान आंदोलन के चार महीने पूरे होने पर 26 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति से यह पता चलता है कि किसान आंदोलन अब और व्यापक होते हुए कस्बों-गाँवों तक फैलने तथा और सुदृढ़ होने लगा है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता/प्रवक्ता डॉ. दर्शनपाल द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति पूरी पढ़ने पर इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है: बढ़ता जा रहा किसान आंदोलन     "सयुंक्त किसान मोर्चा सभी किसानों-मजदूरों व आम जनता को आज के भारत बंद की सफलता की बधाई देता है। गुजरात के किसानों के साथ संघर्ष में पहुंचे किसान नेता युद्धवीर सिंह को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया जिसकी हम कड़ी निंदा व विरोध करते है। आज देश के अनेक भागों में भारत बंद का प्रभाव रहा। बिहार में 20 से ज्यादा जि