Skip to main content

विद्यार्थी राजनीति बनाम शिक्षक राजनीति


                  जब कुएँ में 

       भाँग पड़ी हो तो...

सवाल शिक्षकों और विद्यार्थियों से है:

आप क्या करेंगे 
जब पूरे कुएँ में भाँग पड़ी हो?...

नया कुआँ खोदेंगे?

या

पूरे कुएँ का पानी निकालेंगे?...

और जब तो न तो दूसरा कुआँ खोदने का आपमें साहस बचा हो, ना ही कुएँ का पूरा पानी निकालने का! तब उसी कुएँ में डुबकी लगाएँगे और सोचेंगे यही पानी ठीक है। या इसी पानी को ठीक मान लिया जाए! आज मोटे तौर पर शिक्षक और विद्यार्थी राजनीति का यही हस्र बनता जा रहा है!...यद्यपि विकल्प भी दिख रहे हैं पर वे गिने-चुने विश्वविद्यालयों- महाविद्यालयों में गिने-चुने शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच!

यह एक विषम स्थिति है और कोई बनी-बनाई लीक या शास्त्रीय अवधारणा यहॉं काम नहीं आने वाली। तथाकथित नई शिक्षा नीति का बुलडोज़र विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों पर चल रहा है। पाठ्यक्रम से शिक्षा की बुनियादी सोच को ही गायब किया जा रहा है। कम्पनी-राज का सूत्र है-

 'पढ़ो-लिखो इसलिए कि 

मेरे नौकर बन सको...

नौकर बनो इसलिए कि 

मालिक को मुनाफ़ा दे सको!'... 

राजसत्ता पूरी बेशर्मी के साथ इस सूत्र को विद्यार्थियों के दिलो-दिमाग में घुसा रही है।

ज़्यादातर विश्वविद्यालय सत्ता-समर्थक विद्यार्थियों और शिक्षकों के गिरोह द्वारा संचालित हो रहे हैं। धर्म और जाति का नंगा नाच इस गिरोह की सक्रियता है। प्रतिस्पर्धा सिर्फ़ इस बात की है कि कौन व्यक्ति या समूह अपना काम कितनी आसानी से करा सकता है, दूसरे को लँगड़ी मार मुख्यपद पर कितना जल्दी कब्ज़ा जमा सकता है! टीवी चैनलों पर गलाफाड़ बहस का लक्ष्य टीवी पर आ जाना और धाक जमा जाना ही दिख रहा है।

ऐसे में इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बीएचयू या जेएनयू के छात्र-प्रतिरोध सत्ता और सत्ता-समर्थकों की आँख में मिर्ची झोंकने जैसे काम हैं। अध्यापक तो मान बैठा है कि उसके पास खोने को बहुत कुछ है, पाने को प्रोफेसरी से लेकर वाइस-चांसलरी तक! और फिर एक बार चयनित हो ही गए हैं तो कर्तव्यपरायणता शिक्षक का परम कर्तव्य है। लगे रहो!...

तो विधायक-सांसद न सही तो किसी विश्वविद्यालय के अध्यक्ष/महामंत्री बन सीढ़ी तैयार कीजिए गुरूजी! अब आगे की सोचिए मास्साब! सेवा का और बड़ा मौका तलाशिए! आप भी वही सब कीजिए जो कम्पनियाँ पूरे देश की जनता को मूर्ख बनाकर उससे चाह रही हैं।

काफी नकारात्मक बात है न?...निराशा ही निराशा! आप तो हैं न सकारात्मक सोच के लिए! 

जरा इस सकारात्मकता में विद्यार्थियों की चार गुनी बढ़ गई फीस पर भी कुछ कर्तव्यपालन की सोच रखिएगा!  ज़्यादा दिन नहीं लगेगा, उनकी फीस चालीस गुना भी बढ़ेगी। तब न विद्यार्थी रहेंगे, न शिक्षक! सिर्फ़ व्यवसायी रहेंगे! आप क्या करेंगे?

                                   ★★★★★★★

Comments

Popular posts from this blog

ये अमीर, वो गरीब!

          नागपुर जंक्शन!..  यह दृश्य नागपुर जंक्शन के बाहरी क्षेत्र का है! दो व्यक्ति खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। दोनों की स्थिति यहाँ एक जैसी दिख रही है- मनुष्य की आदिम स्थिति! यह स्थान यानी नागपुर आरएसएस- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर है!..यह डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि भी है। अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!..एक विचारधारा पूँजीपतियों का पक्षपोषण करती है तो दूसरी समतामूलक समाज का पक्षपोषण करती है। यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य कुछ विचित्र लगता है। दोनों का शरीर बहुत कुछ अलग लगता है। कपड़े-लत्ते अलग, रहन-सहन का ढंग अलग। इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है। कैसे एक अमीर बना और कैसे दूसरा गरीब, यह सोचना भी चाहिए आपको। यहाँ यह भी सोचने की बात है कि अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी अन्ततः उसे क्या हासिल होता है?.....

नाथ-सम्प्रदाय और गुरु गोरखनाथ का साहित्य

स्नातक हिंदी प्रथम वर्ष प्रथम सत्र परीक्षा की तैयारी नाथ सम्प्रदाय   गोरखनाथ         हिंदी साहित्य में नाथ सम्प्रदाय और             गोरखनाथ  का योगदान                                                     चित्र साभार: exoticindiaart.com 'ग्यान सरीखा गुरु न मिल्या...' (ज्ञान के समान कोई और गुरु नहीं मिलता...)                                  -- गोरखनाथ नाथ साहित्य को प्रायः आदिकालीन  हिन्दी साहित्य  की पूर्व-पीठिका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।  रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल को 'आदिकाल' की अपेक्षा 'वीरगाथा काल' कहना कदाचित इसीलिए उचित समझा क्योंकि वे सिद्धों-नाथों की रचनाओं को 'साम्प्रदायिक' रचनाएं समझत...

अवधी-कविता: पाती लिखा...

                                स्वस्ती सिरी जोग उपमा...                                         पाती लिखा...                                            - आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' श्री पत्री लिखा इहाँ से जेठू रामलाल ननघुट्टू कै, अब्दुल बेहना गंगा पासी, चनिका कहार झिरकुट्टू कै। सब जन कै पहुँचै राम राम, तोहरी माई कै असिरबाद, छोटकउना 'दादा' कहइ लाग, बड़कवा करै दिन भै इयाद। सब इहाँ कुसल मंगल बाटै, हम तोहरिन कुसल मनाई थै, तुलसी मइया के चउरा पै, सँझवाती रोज जराई थै। आगे कै मालूम होइ हाल, सब जने गाँव घर खुसी अहैं, घेर्राऊ छुट्टी आइ अहैं, तोहरिन खातिर सब दुखी अहैं। गइया धनाइ गै जगतू कै, बड़कई भैंसि तलियानि अहै। बछिया मरि गै खुरपका रहा, ओसर भुवरई बियानि अहै। कइसे पठई नाही तौ, नैनू से...