Skip to main content

विद्यार्थी राजनीति बनाम शिक्षक राजनीति


                  जब कुएँ में 

       भाँग पड़ी हो तो...


आप क्या करेंगे जब पूरे कुएँ में भाँग पड़ी हो?...

नया कुआँ खोदेंगे?

या

पूरे कुएँ का पानी निकालेंगे?...

https://www.rmpualigarh.com/

और जब तो न तो दूसरा कुआँ खोदने का आपमें साहस बचा हो, ना ही कुएँ का पूरा पानी निकालने का! तब उसी कुएँ में डुबकी लगाएँगे और सोचेंगे यही पानी ठीक है। या इसी पानी को ठीक मान लिया जाए! आज मोटे तौर पर शिक्षक और विद्यार्थी राजनीति का यही हस्र बनता जा रहा है!...यद्यपि विकल्प भी दिख रहे हैं पर वे गिने-चुने विश्वविद्यालयों- महाविद्यालयों में गिने-चुने शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच!

यह एक विषम स्थिति है और कोई बनी-बनाई लीक या शास्त्रीय अवधारणा यहॉं काम नहीं आने वाली। तथाकथित नई शिक्षा नीति का बुलडोज़र विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों पर चल रहा है। पाठ्यक्रम से शिक्षा की बुनियादी सोच को ही गायब किया जा रहा है। कम्पनी-राज का सूत्र है-

 'पढ़ो-लिखो इसलिए कि 

मेरे नौकर बन सको...

नौकर बनो इसलिए कि 

मुझको मुनाफ़ा दे सको!'... 

राजसत्ता पूरी बेशर्मी के साथ इस सूत्र को विद्यार्थियों के दिलो-दिमाग में घुसा रही है।

ज़्यादातर विश्वविद्यालय सत्ता-समर्थक विद्यार्थियों और शिक्षकों के गिरोह द्वारा संचालित हो रहे हैं। धर्म और जाति का नंगा नाच इस गिरोह की सक्रियता है। प्रतिस्पर्धा सिर्फ़ इस बात की है कि कौन व्यक्ति या समूह अपना काम कितनी आसानी से करा सकता है, दूसरे को लँगड़ी मार मुख्यपद पर कितना जल्दी कब्ज़ा जमा सकता है! टीवी चैनलों पर गलाफाड़ बहस का लक्ष्य टीवी पर आ जाना और धाक जमा जाना ही दिख रहा है।

ऐसे में इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बीएचयू या जेएनयू के छात्र-प्रतिरोध सत्ता और सत्ता-समर्थकों की आँख में मिर्ची झोंकने जैसे काम हैं। अध्यापक तो मान बैठा है कि उसके पास खोने को बहुत कुछ है, पाने को प्रोफेसरी से लेकर वाइस-चांसलरी तक! और फिर एक बार चयनित हो ही गए हैं तो कर्तव्यपरायणता शिक्षक का परम कर्तव्य है। लगे रहो!...

तो विधायक-सांसद न सही तो किसी विश्वविद्यालय के अध्यक्ष/महामंत्री बन सीढ़ी तैयार कीजिए गुरूजी! अब आगे की सोचिए मास्साब! सेवा का और बड़ा मौका तलाशिए! आप भी वही सब कीजिए जो कम्पनियाँ पूरे देश की जनता को मूर्ख बनाकर उससे चाह रही हैं।

काफी नकारात्मक बात है न?...निराशा ही निराशा! आप तो हैं न सकारात्मक सोच के लिए! जरा इस सकारात्मकता में विद्यार्थियों की चार गुनी बढ़ गई फीस पर भी कुछ कर्तव्यपालन की सोच रखिएगा!  ज़्यादा दिन नहीं लगेगा, उनकी फीस चालीस गुना भी बढ़ेगी। तब न विद्यार्थी रहेंगे, न शिक्षक! सिर्फ़ व्यवसायी रहेंगे! 

                                   ★★★★★★★

Comments

Popular posts from this blog

नागपुर जंक्शन-दो दुनिया के लोग

          नागपुर जंक्शन!..  आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर!..डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि! अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!.. यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य है। दोनों बहुत कुछ अलग।  इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है।  अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी उसे क्या मिल जाता है?..  आख़िर, प्रकृति तो एक दिन दोनों को एक ही जगह पहुँचा देती है!... आप क्या सोचते हैं? ..  

मुझसे जीत के दिखाओ!..

कविता:                     मैं भी चुनाव लड़ूँगा..                                  - अशोक प्रकाश      आज मैंने तय किया है दिमाग खोलकर आँख मूँदकर फैसला लिया है 5 लाख खर्चकर अगली बार मैं भी चुनाव लड़ूँगा, आप लोग 5 करोड़ वाले को वोट देकर मुझे हरा दीजिएगा! मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु-परन्तु भूल जाऊँगा आपका मौनमन्त्र स्वीकार 5 लाख की जगह 5 करोड़ के इंतजाम में जुट जाऊँगा आप बेईमान-वेईमान कहते रहिएगा बाद में वोट मुझे ही दीजिएगा वोट के बदले टॉफी लीजिएगा उसे मेरे द्वारा दी गई ट्रॉफी समझिएगा! क्या?..आप मूर्ख नहीं हैं? 5 करोड़ वाले के स्थान पर 50 करोड़ वाले को जिताएँगे? समझदार बन दिखाएँगे?... धन्यवाद... धन्यवाद! आपने मेरी औक़ात याद दिला दी 5 करोड़ की जगह 50 करोड़ की सुध दिला दी!... एवमस्तु, आप मुझे हरा ही तो सकते हैं 5 लाख को 50 करोड़ बनाने पर बंदिश तो नहीं लगा सकते हैं!... शपथ ऊपर वाले की लेता हूँ, आप सबको 5 साल में 5 लाख को 50 करोड़ बनाने का भरोसा देता हूँ!.. ताली बजाइए, हो सके तो आप भी मेरी तरह बनकर दिखाइए! ☺️☺️

आपके पास विकल्प ही क्या है?..

                          अगर चुनाव              बेमतलब सिद्ध हो जाएं तो? सवाल पहले भी उठते रहते थे!... सवाल आज भी उठ रहे हैं!... क्या अंतर है?...या चुनाव पर पहले से उठते सवाल आज सही सिद्ध हो रहै हैं? शासकवर्ग ही अगर चुनाव को महज़  सर्टिफिकेट बनाने में अपनी भलाई समझे तो?... ईवीएम चुनाव पर पढ़िए यह विचार~ चुनाव ईवीएम से ही क्यों? बैलट पेपर से क्यों नहीं? अभी सम्पन्न विधानसभा चुनाव में अनेक अभ्यर्थियों, नुमाइंदों, मतदाताओं ने ईवीएम में धांधली गड़बड़ी की शिकायत की है, वक्तव्य दिए हैं। शिकायत एवं वक्तव्य के अनुसार जनहित में वैधानिक कारवाई किया जाना नितांत आवश्यक है।।अतः चुनाव आयोग एवं जनता के हितार्थ नियुक्त उच्च संस्थाओं ने सभी शिकायतों को संज्ञान में लेकर बारीकी से जांच कर,निराकरण करना चाहिए। कई अभ्यर्थियों ने बैटरी की चार्जिंग का तकनीकी मुद्दा उठाया हैं जो एकदम सही प्रतीत होता है। स्पष्ट है चुनाव के बाद या मतगणना की लंबी अवधि तक बैटरी का 99% चार्जिंग  यथावत रहना असंभव~ नामुमकिन है।  हमारी जानकारी के अनुसार विश्व के प्रायः सभी विकसित देशों में ईवीम से चुनाव प्रतिबंधित है,बैलेट पेपर से चुनाव