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#यूपी में किसान आंदोलन की नई पहल

                उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड किसान आंदोलन की                                  एक नई शुरुआत                         ★ संयुक्त किसान मोर्चा ने किया मिशन  उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का ऐलान ★  5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में महारैली से धमाकेदार शुरुआत होगी ★ सभी मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत का आयोजन होगा ★ तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने और एमएसपी की गारंटी के साथ प्रदेश के मुद्दे भी उठेंगे ★ आंकड़े दिखाते हैं कि योगी सरकार का दाना-दाना खरीद का वादा महज एक जुमला था लखनऊ | तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने तथा एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर चल रहा ऐतिहासिक किसान आंदोलन आज आठ माह पूरे कर चुका है। इन आठ महीनों में किसानों के आत्मसम्मान और एकता का प्रतीक बना यह आंदोलन अब किसान ही नहीं देश के सभी संघर्षशील वर्गों का लोकतंत्र बचाने और देश बचाने का आंदोलन बन चुका है। इस अवसर पर आंदोलन को और तीव्र, सघन तथा असरदार बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने इस राष्ट्रीय आंदोलन के अगले पड़ाव के रूप में मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शुरू करने का फैसला किया है। इस मिशन के तहत संयुक्त

किसान संसद ने पारित किए ये प्रस्ताव

                              22 और 23 जुलाई को                             किसान संसद द्वारा              पारित संकल्प एवं प्रस्ताव हिन्दी: 1. यह स्पष्ट करने के बाद कि एपीएमसी बाईपास अधिनियम के प्रावधानों को किसानों के हितों की कीमत पर कृषि व्यवसाय कंपनियों और व्यापारियों के पक्ष में तैयार किया गया है, मौजूदा विनियमन (रेगुलेशन) और निगरानी तंत्र को खत्म करके, और बड़े कॉर्पोरेट द्वारा कृषि बाजारों के प्रभुत्व को बढ़ावा देगा; 2. जून 2020 से जनवरी 2021 तक एपीएमसी बाईपास अधिनियम के संचालन के प्रतिकूल अनुभव को संज्ञान में लेने के बाद, जहां अपंजीकृत व्यापारियों द्वारा भुगतान न करने और धोखाधड़ी के कारण किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ, जहां अधिकांश एपीएमसी मंडियों में व्यापारियों और कंपनियों द्वारा खरीद में आधी हो गई है, और जहां बड़ी संख्या में एपीएमसी मंडियों को भारी नुकसान हुआ है जिससे वे बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं; 3. यह निष्कर्ष पर आने के बाद कि एपीएमसी बाईपास अधिनियम के कारण, अधिकांश मंडियां धीरे धीरे समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि कॉरपोरेट और व्यापारी अधिनियम द्वारा बनाए गए अनियम

कौरव गदाधारियों से घिरा अभिमन्यु है किसान!

  22 जुलाई 2021 को किसान संसद में                          दुर्योधनी गदाधारियों के बीच घिरा                         अभिमन्यु है किसान सभापति जी,  मैं ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन की ओर से मण्डी कानून पर चर्चा को आगे बढ़ा रहा हूं। 1960 से पहले जो व्यापारी हम से फसल खरीदते थे, वे हमें भाव में भी लूटते थे और तौल में भी लूटते थे। इसलिए, हम किसानों की आवाज पर आंदोलन के चलते ये सरकारी अनाज मंडियां खोली गई थी, ये एपीएमसी मार्केट आई थी। इनसे हमें कुछ सुरक्षा मिली थी।  मैं यह बताना चाहता हूँ कि खेती का स्वरूप या प्रकृति ही ऐसी है कि इसमें बहुत सारे जोखिम हैं। इसलिये, सरकार की ओर से किसानों को सुरक्षा की दरकार है। आसमान से बारिश यदि ज्यादा हुई, बाढ़ आई तो फसल बर्बाद हो गई। सूखा पड़ गया तो फसल नहीं हुई। कीड़े लग गए या ओलावृष्टि हो गई, तो फसल बर्बाद हो जाती है। साहूकार व बैंक किसानों को लूटते हैं। फिर, जो फसल किसान मार्केट में ले जाते हैं, वहां मार्केट की ताकतों अर्थात व्यापारियों से पाला पड़ता है। मार्केट की ये ताकतें सबसे क्रूर ताकतें होती हैं। मार्केट को लेकर इन के बीच में दो दो बार विश्व युद्ध

खेती पर कम्पनियों के नियंत्रण के खिलाफ संसद मार्च

                                नये दौर में पहुँचा                     किसान आंदोलन संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन कॉर्पोरेट अधिग्रहण की चपेट में जाने की संभावनाएं दिख रही है - हम भारत में इसी के खिलाफ संघर्ष कर रहे है:                                -- संयुक्त किसान मोर्चा जैसा कि पहले ही घोषित किया जा चुका है, संयुक्त किसान मोर्चा मानसून सत्र के सभी कार्य दिवसों पर संसद के पास विरोध प्रदर्शन की अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है। हर दिन 200 प्रदर्शनकारियों द्वारा इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान जंतर-मंतर पर किसान संसद का आयोजन किया जाएगा और किसान यह प्रदर्शित करेंगे कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को किस तरह से चलाया जाना चाहिए। एसकेएम की 9 सदस्यीय समन्वय समिति ने दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की। योजनाओं को व्यवस्थित, अनुशासित और शांतिपूर्ण तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। 200 चयनित प्रदर्शनकारी सिंघू बॉर्डर से प्रतिदिन पहचान पत्र लेकर रवाना होंगे। एसकेएम ने यह भी कहा कि अनुशासन का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वर्तमान किसान आं

किसानों-बेरोजगारों का धरना-योग बनाम सरकारी-चमत्कारी योग-दिवस!!

Yog माने पेट भरने का जोग!                               किसान-बेरोजगार का हठयोग योग से किसी को न तो वैर है, न किसी को इस पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानना चाहिए। वह बाबा रामदेव हों या गली मोहल्ले में आजकल योग की दुकान खोले अन्य बाबा और उनके चेले-चपाटे! योग जीवन की एक सामान्य शारीरिक क्रिया है, कार्य करने के क्रम में होने या किया जाने वाला व्यायाम है। इसकी किसी मेहनतकश को नहीं, खाए-अघाए लोगों को ही विशेष जरूरत पड़ती है। तो क्या योग का अति प्रचार भी जनता के अन्य जरूरी मसलों से ध्यान हटाने का माध्यम है?...या स्वास्थ्य/लोक कल्याण कार्यक्रमों से पूरी तरह पल्ला झाड़कर वही तथाकथित 'आत्मनिर्भर बनो' योजना?...ताकि लोग व्यवस्था पर सवाल न उठा योग न कर सकने की अपनी नियति पर ही अफ़सोस कर चुप रह जाएं?... शायद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग का ढोल पीटने के पीछे भी उस 'नई विश्व व्यवस्था' का आदेश है जिसमें पूरी दुनिया को एक डंडे से हाँकने की व्यवस्था की जा रही है!..        योगदिवस पूरे धूमधाम से मनाया गया। कितना सरकारी (जनता का) पैसा इसके प्रचार-प्रसार पर लगा, इसका हिसाब शायद ही कभी कोई दे। किसानों

संशोधित बिजली कानून जन-विरोधी क्यों है?..

                        संशोधित बिजली कानून                    लागू करने की निंदा  संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा दिल्ली की सीमाओं पर चलाए जा रहे किसान आंदोलन के 200 पूरे होने पर मोर्चा ने किसानों को मिलने वाली बिजली सब्सिडी के संबंध में भारत सरकार के द्वारा किए गए नीतिगत बदलावों की कड़ी निंदा की है। मोर्चा का कहना है कि यह कदम न केवल किसान विरोधी है, बल्कि आम जन विरोधी भी है। जैसा कि हम जानते है हाल ही मे वित्त मंत्रालय ने उन राज्यों को हताश किया है जो कृषि और किसानों को बिजली सब्सिडी प्रदान करते हैं। मंत्रालय ने कृषि संबंधी कुछ शर्तों के आधार पर राज्य सरकारों को अतिरिक्त ऋण देने का फैसला किया है यह शर्तें कुछ इस प्रकार है: इसमें उन राज्यों को अधिक अंक देने का प्रावधान है, जिनके पास कृषि कनेक्शन के लिए बिजली सब्सिडी नहीं है या कृषि मीटर खपत पर सब्सिडी नहीं है या इससे संबंधित खाता ट्रांसफर प्रणाली नहीं है।  किसान आंदोलन की प्रमुख मांगों में से एक, केंद्र सरकार द्वारा विद्युत संशोधन विधेयक 2020 के कानूनी रास्तों के द्वारा प्रयास करने के संदर्भ में किया गया है जिसमें कृषि में बिजली सब्सिडी

क्या मुख्यतः कम्पनीराज के खिलाफ़ है किसान आंदोलन?

                           किसान आंदोलन का                   कॉरपोरेट विरोध     संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जैसे तीन किसान विरोधी कानूनों की वापसी के लिए संघर्ष लम्बा खिंचता जा रहा है, उसके स्वरूप में भी बदलाव आता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से मजदूर संगठन भी उसके समर्थन में दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचने लगे हैं। साथ ही इसे कानून वापसी की माँग से अधिक व्यापक बनाये जाने की भी कोशिश हो रही है। किसान आंदोलन इसे कॉरपोरेट या कम्पनीराज विरोधी आंदोलन के रूप में विकसित करने की कोशिश कर रहा है!... ★ कॉर्पोरेटों के खिलाफ धरना जारी रहेगा: यह काले कानूनों के खिलाफ एकजुट लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लगातार चल रहा किसान आंदोलन भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर जाने वाले मुख्य राजमार्गों पर पिछले आठ महीनों से जमा हुआ है।।  26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सीमाओं पर लाखों आंदोलकारियों के पहुंचने से पहले कई राज्यों में महीनों तक कई विरोध प्रदर्शन हुए। इस लिहाज से यह आंदोलन और भी ज्यादा समय से चल रहा है।  हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार अपने जोखिम पर आंदोलनकारियों द्वारा उठाए जा रहे बुनियादी मुद्दो

मंदसौर की शहादतों ने कैसे लगाई किसानों के दिल में आग?

मंदसौर की शहादत      मंदसौर की शहादत के मायने   कर्ज में डूबे मध्यप्रदेश के किसान लंबे समय से किसानों की आत्म हत्याओं और  कर्जमाफी के लिए आन्दोलित थे। इस पर  किसानों का मजाक उड़ाते हुए मुख्यमंत्री द्वारा यह कहना कि आत्महत्याओं का कारण कर्ज नहीं, कुछ और है; जले पर नमक छिड़कने जैसा था। नोटबन्दी के कारण किसानों की हालत पहले से ही खराब थी।  चुनाव में भाजपा द्वारा स्वामीनाथन आयोग के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीद से यह कहकर पीछे हट गई कि यह संभव नहीं है। सरकार की ही प्रचारित-प्रसारित प्रेरणाओं पर विश्वास कर किसानों  द्वारा किए गए प्याज के भारी उत्पादन के बाद किसानों को लागत से भी काफी कम मूल्य पर ( चार रुपये किलो) प्याज बेचने के लिए विवश कर दिया गया। फलतः सड़क पर ही किसानों द्वारा प्याज फेंकने के लिए मजबूर होना पड़ा।  इन्हीं परिस्थितियों में आंदोलनरत किसानों पर 6 जून 2017 को गोलियाँ चलाकर छह किसानों की हत्या कर दी गई। ये ऐसे जख्म हैं जिन्हें मंदसौर, मालवा या मध्यप्रदेश के किसान ही नहीं, पूरे देश के किसान कभी न भूल पाएंगे। समाचारों के अनुसार गुस्साए किसानों ने कुछ स्थानों पर रेल पटरियो

तेजी से बढ़ रहा उत्तरप्रदेश में किसान आंदोलन

किसान आंदोलन के नए आयाम                    और तेज हो रहा किसान आंदोलन                    भाजपा के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और           प्रशासन के कार्यालयों के सामने 3 कृषि अध्यादेशों की                  प्रतियां जलाकर जताया किसानों का रोष संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर जहाँ दिल्ली की सीमाओं सहित पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में किसानों ने सांसदों, विधायकों और सरकारी दफ्तरों के सामने किसान क़ानूनों की प्रतियाँ जलाकर विरोध प्रदर्शन किया गया; वहीं उत्तर प्रदेश के कई नए इलाकों में भी किसान आंदोलन विकसित होने के उत्साहबर्द्धक संकेत मिले। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद के गाँव सुखरावली में 26 मई के किसानों के काला दिवस मनाने पर किसानों के खिलाफ झूठे पुलिस मामलों को वापस लेने की मांग करते हुए किसान गांव में ही धरने पर बैठ गए। साथ ही सांसद आवास के समक्ष कानूनों की प्रतियां जलाकर सांसद को ज्ञापन देकर काले कानूनो को वापस लेने की मांग की। किसानों ने जिलाधिकारी से भी मिलकर अपना प्रकट किया। भाकियू-टिकैत, बेरोजगार मजदूर किसान यूनियन, अखिल भारतीय किसान सभा, भाकियू-अम्बावता, भाकियू-स्वराज, भाकियू-म

चेतावनी दिवस के मायने

                      किसान संघर्षों के                     नए आयाम   संयुक्त किसान मोर्चा ने 5 जून को सम्पूर्ण क्रांति दिवस के अवसर पर किसानों से आह्वान किया है कि वे देश भर में भाजपा सांसदों, विधायकों के आवासों एवं कार्यालयों के सामने किसान कानूनों की प्रतियाँ जलाकर यह जताएँगे कि किस तरह भाजपा किसान विरोधी है। ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष 5 जून को ही  किसान विरोधी कृषि कानून विधेयक के रुप में घोषित हुआ था। यही तिथि जयप्रकाश आन्दोलन के संपूर्ण क्रांति दिवस की भी है। इस संपूर्ण क्रांति दिवस को चेतावनी दिवस के रूप में भी मनाया जाएगा। चूँकि किसान इस दिन सीधे भाजपा के स्थानीय नेताओं को किसान विरोधी चिह्नित करने का प्रयास करेंगे, भाजपा नेताओं की कार्यशैली के जानकार यह मानते हैं कि वे इसे सहज-सामान्य रूप में संभवतः नहीं लेंगे। ऐसे में भाजपा के विशेष प्रभाव वाले क्षेत्रों में स्थिति असामान्य हो सकती है। दूसरी तरफ हरियाणा के टोहाना में इकट्ठे हुए किसानों की बैठक में फैसला लिया गया कि आने वाली 7 जून को 11 बजे से 1 बजे तक हरियाणा के सभी पुलिस थानों का घेराव किया जाएगा। जजपा विधायक देवेंद्र बबली द्

किसान आंदोलन: परीक्षा का समय

किसान बेवकूफ नहीं!                                       किसान आंदोलन:            परीक्षा का समय                संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किस  आंदोलन इन दिनों दोहरी परीक्षा से गुजर रहा है। एक तरफ बारिश और तूफान के कारण सीमाओं पर भारी नुकसान हुआ है, सिंघू व टिकरी बॉर्डर पर मुख्य मंच सहित किसानों के बड़ी संख्या में टेंट क्षतिग्रस्त हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली से सटे हरियाणा में किसानों के बहिष्कार आंदोलन से चिढ़े भाजपा नेता किसानों को हिसा के लिए उकसाकर उनसे भिड़ने की नीति पर चल रहे हैं।   हरियाणा के टोहाना में विधायक देवेंद्र बबली के कार्यक्रम का किसान संगठनों द्वारा विरोध किया गया। किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को हिंसक रंग देने के उद्देश्य से विधायक ने किसानों के साथ गाली गलौच की व अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया। इसके बाद किसानों ने विरोध जारी रखा तो पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करवाया गया। जिसमें हरियाणा के जुझारू किसान ज्ञान सिंह बोडी, सर्वजीत सिद्धु और बूटा सिंह फतेहपुरी को गहरे चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा इस बेरहम कार्रवाई की निंदा करता है। किस