Skip to main content

Posts

कहीं आपमें कोई पालतू तो नहीं है?..

नौकर                          एक सामयिक बोध-कथा ● बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था... उसके पास एक बडी जालीदार टोकरी में बहुत सारे तीतर थे!.. लेकिन एक छोटी जालीदार टोकरी में सिर्फ एक ही तीतर था!.. एक ग्राहक ने पूछा-  "एक तीतर कितने का है?.." "40 रुपये का!.." ग्राहक ने छोटी टोकरी के तीतर की कीमत पूछी  तो वह बोला,  "मैं इसे बेचना ही नहीं चाहता!.."  "लेकिन आप इसे ही लेने की जिद करोगे,  तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी!.." ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा,  "इसकी कीमत इतनी ज़्यादा क्यों है?.." चिड़ीमार ने जवाब दिया- "दरअसल यह मेरा अपना पालतू तीतर है और  यह दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है!.. जब ये चीख पुकार कर दूसरे तीतरों को बुलाता है  और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे ही एक जगह जमा हो जाते हैं... तो मैं आसानी से सभी का शिकार कर लेता हूँ!   बाद में,  मैं इस तीतर को उसकी मनपसंद की 'खुराक" दे देता हूँ जिससे ये खुश हो जाता है!..   बस, इसीलिए इसकी कीमत भी ज्यादा है !.." उस समझदार आदमी ने तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर की स

क्या शिक्षक अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं?..

शिक्षक और शिक्षा की दुर्दशा                                     शिक्षक हौ सगरे जग कौ?..                तो लँगोटी पहिरि जग में विचरौ! सरकार, टीवी, समाचार पत्र, सोशल मीडिया यानी लगभग सभी संचार माध्यम कोरोना-बीमारी, महामारी और उसके स्ट्रेन-ब्लैक फंगस आदि अननुमन्य वैरियंटों से आक्रांत हैं। कब कितने लोग संक्रमित होकर मर जाएँगे या नहीं मरेंगे, स्वस्थ होकर लौट आएँगे या बिना जाँच के 'बिना बीमार' हुए ठीक रहेंगे, इसका कोई निश्चित आँकड़ा और अनुमान नहीं है। जो है, उस पर भी न जाने कितने सवाल! हर दवा, हर उपचार, हर संक्रमण और संक्रमण से मृत्यु यहाँ तक कि मरे हुए लोगों के आंकड़ों पर भी सवाल हैं।--- हम सबके दिलों-दिमाग में हाय-कोरोना, हाय-कोरोना चल रहा है।  कोरोना का संकट बहुत बड़ा है, यह तो सबने मान लिया है,  सबसे मनवा लिया गया है!         लेकिन कोरोना के अलावा कहीं कुछ और भी है क्या जिस पर हमारा दिमाग जाता है?  मसलन किसान-आंदोलन, मजदूर कानूनों में मजदूर-विरोधी बदलाव, बदली जाती शिक्षा नीति के दुष्प्रभाव और ख़त्म की जाती नौकरियाँ!... सब कुछ कोरोना ही है या कुछ और भी है जो हमें परेशान कर रहा है? क्य

मुक्केबाज स्वीटी ने क्यों किसानों को समर्पित किया चैंपियनशिप का पदक?

      काला कानून, कितना काला!                     किसान आंदोलन की                        परीक्षा  एवं सफलताएं                                      Boxer  Saweety Boora                                             Ph oto Courtesy: merisaheli.com  किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली की सीमाओं सहित देश के कोने-कोने में तीन कृषि सम्बन्धी कानूनों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन और धरने जारी हैं, उसी तरह शासकों के साथ-साथ प्रकृति द्वारा भी उसकी परीक्षाएँ जारी हैं। मुसीबतों और अड़चनों के बावजूद धैर्य और दृढ़ता से किसान इनका सामना कर रहे हैं! संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के क्रम में शाहजहांपुर बॉर्डर को भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा। इस तूफान के कारण बड़े पैमाने पर किसानों के टेंट, मंच, लंगर एवं अन्य सामान का नुकसान हुआ। किसानों के टेंट पूरी तरह उखड़ गए। जब किसानों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की तो उन्हें गंभीर चोटें भी आई। संयुक्त किसान मोर्चा ने समाज कल्याण के संगठनों और आम जन से निवेदन किया है कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर हर संभव मदद पहुंचाई जाए ताकि वहां पर धरना दे रहे किसानों को कोई भी दिक्

तो सांसद-विधायकों से होगा सीधा टकराव?..

     काला कानून, कितना काला!                                                    लंबी लड़ाई के लिए                तैयार हो रहे किसान ★ भाजपा सांसद, विधायक व जनप्रतिनिधियों के दफ्तरों के सामने किसान जलाएंगे कानूनों की प्रतियां ★ पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को उनकी पुण्यतिथि पर किसानों द्वारा श्रद्धांजलि ★ पंजाब के दोआबा से किसानों का बड़ा जत्था आया ★ पंजाब में किसान आंदोलन के 8 महीने पूरे : 100 से ज्यादा जगह पक्के मोर्चे ★ किसानों की लंबे संघर्ष की तैयारी : सभी तरह के इंतजाम कर रहे किसान तीन कृषि कानूनो के खिलाफ  देश के किसानों की लंबी लड़ाई चल रही है। पंजाब का इस लड़ाई का अहम योगदान है। पिछले साल सितम्बर से पंजाब में मोर्चे लगने लग गए थे। आज पंजाब में आंदोलन शुरू हुए 8 महीने हो गए है। पंजाब के किसानों के संघर्ष का परिणाम है कि राज्य में किसी भी टोल प्लाजा पर टैक्स नहीं लिया जा रहा है। पंजाब के किसान ना सिर्फ सरकारों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे है, बल्कि देश के बड़े कॉरपोरेट्स घरानों के खिलाफ भी बड़ी जंग छेड़े हुए है। किसानों ने हर मौसम में अपने आप को मजबूत रखते हुए सरकार व कॉर्पोरेट के खिल

क्या सचमुच तीनों कानून 'गैर-संवैधानिक' हैं?..

काला कानून, कितना काला!           क्या हैैं कृषि संबंधित तीनों कानून?             क्या सचमुच ये संवैधानिक नहीं हैं?                                            आलेख :  एडवोकेट   आराधना  भार्गव                                                                       नए लाए गये तीनों कृषि संबंधित कानूनों का विवाद खत्म होने के बजाय बढ़ता जा रहा है। दिल्ली की सीमाओं के साथ-साथ देश के दूसरे कई स्थानों पर किसान इन कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ धरने पर बैठे हैं। प्रस्तुत है किसान संघर्ष समिति की मध्यप्रदेश उपाध्यक्ष एडवोकेट आराधना भार्गव के विचार:-   तीनों कृषि कानून इसलिए रद्द किये जाने चाहिये क्योंकि भारत के संविधान के भाग 4 अनुच्छेद 48 में कृषि राज्य का विषय है, और राज्य के विषय पर केन्द्र का कानून बनाना गैर संवैधानिक है। देश संविधान से चलना चाहिए, सरकार की मर्जी से नही। तीनों कानूनों को हमें एक दूसरे से जोड़कर देखना होगा। कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020 जिसे हम बोलचाल की भाषा में बंधुवा किसान कानून कहते हहैैं, इसमें पीड़ित पक्षकार न्याय पालिका का

कितना समर्थन मिला कालादिवस को?..

काला कानून, कितना काला!                             किसान आंदोलन में                             उत्साह                                 काला-दिवस' सुदूर दक्षिण तक 'काला-दिवस' को मिले देश भर के भारी समर्थन से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चलाए जा रहे किसान आंदोलन में अत्यधिक उत्साह का संचार हुआ है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इस विरोध प्रदर्शन को जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक और पूर्वोत्तर से लेकर महाराष्ट्र तक व्यापक समर्थन मिलने और आंदोलन को गाँवों-कस्बों तक पहुँचने की खबरें आईं। किसानों ने काले झंडे दिखाते, पुतले फूँकते अपने फोटो और वीडियो वायरल किए। इससे यह संदेश गया है कि किसानों के आंदोलन को तोड़ने की सरकार की सभी साजिशें नाकाम सिद्ध हो रही है। विविध कार्यक्रमों से यह स्पष्ट हुआ कि अपनी मांगों को पूरा करने में किसानों का पक्ष मजबूत हो रहा है। किसान मांगों को पूरा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। सयुंक्त किसान मोर्चो सभी देशवासियों को कल के सफल कार्यक्रम के लिए धन्यवाद करता है। यह आंदोलन अब भारत भर में व्यापक स्थानों पर फैल रहा है। चाहे वह उत्तर पूर्व भारत में हो, या

कड़वी बात: हम सच कब स्वीकार करेंगे?

         क्या गौतम बुद्ध भगवान हैं?                   https://youtu.be/qKJpbmtDCDA गौतम बुद्ध को आज प्रायः भगवान बुद्ध कहा और माना जाता है! यद्यपि बौद्ध स्वयं को नास्तिक कहते हैं और ईश्वर के अस्तित्व को इंकार करते हैं फिर भी वे गौतम बुद्ध को भगवान बुद्ध कहते हैं! क्यों?...इसके उत्तर में कुछ बौद्धों का कहना है कि ईश्वर शब्द का अलग अर्थ होता है और भगवान का अलग। देश-दुनिया में तो दोनों का मतलब एक ही समझा जाता है। या फिर बाबा रामदेव तथा मध्यकालीन संतों की तरह जगत के कण-कण में भगवान या परमेश्वर की अवधारणा को स्वीकार करते हुए राम-कृष्ण-महात्म्य गांधी-डॉ आंबेडकर सबको जो चाहें सो भगवान/ईश्वर की उपाधि देते हुए उन्हें पूजें। लेकिन दोनों विचार तो एक साथ नहीं हो सकते-है भी, नहीं भी है! अन्यथा 'अस्ति-नास्ति' की अवधारणा बना जो चाहो सो मानो।            अपनी प्रसिद्ध पुस्तिका 'तुम्हारी क्षय' में प्रसिद्ध बुद्धानुयायी राहुल सांकृत्यायन का एक लेख है- 'तुम्हारे भगवान की क्षय'! वे इस लेख में लिखते हैं- "अज्ञान का दूसरा नाम ही ईश्वर है। हम अपने अज्ञान को साफ स्वीकार करने में शर