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केंद्रीय बज़ट में शिक्षा

                                केंद्रीय_बज़ट में शिक्षा                                              -  डॉ.रमेश बैरवा                                               प्रांतीय संयुक्तसचिव                                               (RUCTA), राजस्थान         *केंद्रीय बजट 2020-21 में शिक्षा की भी की गई है घोर उपेक्षा *शिक्षा के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देना जनविरोधी कदम  *इस बजट का विरोध करने की शिक्षक साथियों से है पुरजोर अपील मोदी सरकार का  बजट 2020-21 घोर जन विरोधी है। इस बजट में शिक्षा की भी घोर उपेक्षा की गई है,जिस पर शिक्षक समुदाय भी कड़ा विरोध प्रकट करता है। आज तक के सबसे लंबे बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 3042230 लाख करोड़ रुपये का केंद्रीय बजट पेश किया है। इसमें स्कूली शिक्षा के लिए 59845 करोड़ रुपये एवं उच्च शिक्षा हेतु 39466 करोड़ रुपये शिक्षा के लिए आवंटित किए हैं। शिक्षा पर कुल आवंटन 99300 करोड़ रुपये रखा गया है। बजट में नई शिक्षा नीति को लागू करने, शिक्षा में विदेशी निवेश लाने,गरीब तबके के लिए ऑनलाइन कोर्स शुरू करने एवं शिक्षा

सोई हुई जातियाँ पहले जागेंगी

                      https://youtu.be/kzwBYuHjR1Y                      सोयी हुई जातियां पहले जागेंगी !                                                   प्रस्तुति : गुरचरन सिंह मुंशी प्रेमचंद के नाम का जिक्र तो काफी होता है प्रगतिशील लेखक मंच से दलित समस्याओं को उठाने के लिए, लेकिन महाप्राण निराला जैसे 'कान्यकुब्ज ब्राह्मण' ने भी ऐसा कुछ कहा या लिखा होगा, यह तो मेरे लिए भी एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं था। यह दूसरी बात है कि लगभग एक सदी बाद भी कुछ अपवादों को छोड़ कर हालात न केवल जस के तस बने हुए हैं बल्कि और भी बिगड़े हैं ! लेकिन सिर्फ बाबा साहेब ही नहीं कुछ और भी संवेदनशील व जिम्मेदार लोग इस दिशा में सोच रहे थे, सक्रिय थे, सबूत है इस बात का कि कोई भी सामाजिक आंदोलन किसी एक खास तबके की बपौती नहीं हो सकता ! पांच अंगुलियां जब आपस में मिलती हैं, मुट्ठी तभी बनती है ! इसलिए #महाप्राण_सूर्यकांत_त्रिपाठी_निराला जैसा कद्दावर भविष्यद्रष्टा कवि जब 1930 में भी जब कुछ ऐसा कह जाता है जिसे कहने में हम आज भी डर जाते हैं संविधान की अनेक गारंटियों के बावजूद तो हैरानी तो होगी ही !  पेश

अय भाग जा दरिन्दे फ़ौरन (ग़ज़ल):

तमाम संघर्षों को समर्पित...                                                                           ग़ज़ल                                                 - कवि महेन्द्र मिहोनवी अय भाग जा दरिन्दे फ़ौरन मचान लेकर निकले हैं  अब परिन्दे गद्दी पे प्रान लेकर दरकी  हैं ये  ज़मीनें  कय्यक हज़ार मीलों फूटी  हैं  कुछ चटानें इतनी  उठान लेकर रस्ते  में  हर क़दम पर  खूँख़ार जानवर हैं चलना  हमें  पड़ेगा  तीरो   कमान लेकर बुलबुल को बर्तनी है अतिरिक्त सावधानी सैयाद   घूमते  हैं  टोही   विमान  लेकर जिसमें मगर के हक़ में सारे नियम बने हैं चाटेंगीं मछलियाँ क्या एसा विधान लेकर जंगल  में दूर   शायद  बरसात  हो रही है आने  लगीं हवायें  माफ़िक़ रुझान लेकर लाठी नहीं तो क्या ग़म बाजू तो हैं सलामत मिट्टी  को  रो  रहे हो  हीरों की खान लेकर जगमग  है  राजधानी  मेला  नया  लगा  है ठग  तो  वही  पुराने   बैठे  दुकान  लेकर इससे तो था ये अच्छा आते न मुझसे मिलने सीने  से लग  रहे हो  दिल में गठान लेकर माने  कोई न   माने  मंज़िल के जो दीवाने वो   बैठते  नहीं  हैं  पथ में थकान लेकर               

एक चुटकुला: प्राइवेट बनाम सरकारी काम...

  Whatsappचुटकुला:                                                                               प्राइवेट बनाम सरकारी प्राइवेट काम करने वालों को लगता है कि सरकारी कर्मचारी को तो फोकट की तन्ख्वाह मिलती है। एक वैल्डिन्ग मिस्त्री काफी दिनों से एक सरकारी कर्मचारी को तन्ख्वाह ज्यादा होने व काम कम होने के ताने दे रहा था | एक दिन सरकारी कर्मचारी का दिमाग खराब हो गया वह घर से एक टूटी बाल्टी की कड़ी डलवाने व पुराना टूटा हुआ हत्था लेकर उस मिस्त्री के पास जा पहुँचा! मिस्त्री ने 100 रू मरम्मत खर्च बताया ... कर्मचारी बोला - 150 ₹ दे दूँगा .. पर कुछ नियम ध्यान में रखना.. मिस्त्री राजी होकर बोला -बताओ बाबूजी जी..? कर्मचारी ने एक रजिस्टर निकाला और मिस्त्री से बोला - ये लो इस में रिकार्ड भरना है... 1.बाल्टी किस सन में बनी व कब टूटी (RTI) 2.बाल्टी किस कम्पनी की बनी है TATA/JSW/SAIL  3.बाल्टी की मरम्मत में खर्च वैल्डर,बिजली,पानी व समय का ब्यौरा दर्ज करना होगा।* 4.मरम्मत से पहले व बाद मे बाल्टी का वजन लिखना होगा। 5.हत्थे में कितनी जंग लग चुकी है ... उसका वजन और कारण दर्ज कर

हम #रोहिंग्या

                                हम देख्या जग सारा!..                                                  - अशोक प्रकाश हम सारी दुनिया देखते-देखते यहाँ पहुँचे हैं!..ईरान आर्यान है और क्राइस्ट कृष्णावतार!... हम सब जानते हैं। हमसे ज़्यादा जबान मत लड़ाना!...सो, जो बोलें सो सुनो! जब घुट्टी में पिलाए गए धार्मिक प्रपंचों को सौ फीसदी झूठ पाकर भी हम दिन-रात उन्हीं की पूजा-अर्चना में लगे रहते हैं, अपने सारे कष्टों का कारण अपने कर्मों में और निवारण ऊपर वाले में देखते हैं तो किसी तर्क-वितर्क का हम पर असर नहीं पड़ने वाला!..  हम भक्तप्राण लोग हैं और अपने आराध्य हनुमानजी की कृपा से ही हमने सारी पदप्रतिष्ठा पाई है, ऐसा मानते हैं। हम भाग्यशाली हैं और भाग्य ने ही हमें सब कुछ दिया है। तुम भी परमपिता परमेश्वर की शरण में जाओ और मुसलमान हो तो बेनागा पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ो, जिस लायक होओगे,  ऊपर वाला देगा!...            जब उसकी मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं हिल सकता तो संविधान, अम्बेडकर, नेहरू, मोदीशाह सब उसी के बनाए हैं और उसी के इशारे पर अपना काम करते हैं!...हमें न तो किसी रोजी-रोज़गार की जरूरत है, न

शिक्षा गुणवत्ता का ढिंढोरा: दाल में कुछ काला है!

दाल में कुछ काला है क्या?...                            शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक में                            उत्तर प्रदेश फिसड्डी घोषित!                                             साभार- 'अमर उजाला'                        उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा इन दिनों अक्सर मीडिया की सुर्खियों में रहती है!...ये सुर्खियां प्रायः शिक्षकों की कामचोरी, अक्षमता, अनुपस्थिति, लेट-लतीफी आदि की होती हैं! शिक्षकों को छोड़कर शिक्षा-व्यवस्था से जुड़े बाकी सभी नेता, नौकरशाह, अधिकारी, कर्मचारी, ग्राम प्रधान, गैर-सरकारी संगठन यानी एनजीओ आदि प्रायः सुयोग्य, चुस्त-दुरुस्त, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार बताए-दिखाए जाते हैं! या कम से कम शिक्षकों को छोड़कर अन्य किसी पर उंगलियां नहीं उठाई जातीं!..क्यों?         शिक्षकों से सम्बंधित इस 'क्यों?' -सवाल के उत्तर से पहले उसके परिणामों पर गौर करना जरूरी है। क्योंकि समाज और अधिकारियों के कठघरे में खड़े किए जाते शिक्षक सजा पाने के हक़दार तर्क और न्याय की किसी कसौटी पर कसे बिना ही पहले से ही अपराधी घोषित किए जा रहे हैं! सजा भी देना शुरू हो रहा है। उदाह

शिक्षक हैं तो...सिखाइए!

                                    शिक्षक हैं तो                            और सीखिए, और सिखाइए!                                                 - अशोक प्रकाश             जीवन एक संघर्ष है और इस संघर्ष को जितना ही मानव-सभ्यता के संघर्ष से जोड़कर हम देखते हैं, उतना ही यह मजेदार लगता है। हमारी तकलीफ़ भी सिर्फ़ हमारी नहीं होती। हमें यह भी पता चलता है कि इसे झेलने वाले हम कोई विरले इंसान नहीं हैं!...           तो फिर इस पर इतना हायतौबा करते हुए जीना कैसा?...          दरअसल, यह जीवन एक विराट और न ख़त्म होने वाली यात्रा की तरह है। यह यात्रा मानव-सभ्यता की विकास-यात्रा है। एक इंसान को  इस यात्रा को हमेशा ही बेहतर और सुखद बनाने की कोशिश करना चाहिए!         हम इस संसार को जितना बेहतर देख, जान, समझ सकेंगे उतना बेहतर जी सकेंगे, इसे और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकेंगे। तो इस संसार को ज़्यादा से ज़्यादा देखिए, जानिए, समझिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में साझा कीजिए!...ध्यान रखिए कि इसमें निरंतर कुछ नया, कुछ बेहतर, कुछ मनोरंजक, कुछ चिंतन-चेतना को बढ़ाने वाला हो!           और हाँ, विधि-विधान की