Skip to main content

Posts

शिक्षा गुणवत्ता का ढिंढोरा: दाल में कुछ काला है!

दाल में कुछ काला है क्या?...                            शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक में                            उत्तर प्रदेश फिसड्डी घोषित!                                             साभार- 'अमर उजाला'                        उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा इन दिनों अक्सर मीडिया की सुर्खियों में रहती है!...ये सुर्खियां प्रायः शिक्षकों की कामचोरी, अक्षमता, अनुपस्थिति, लेट-लतीफी आदि की होती हैं! शिक्षकों को छोड़कर शिक्षा-व्यवस्था से जुड़े बाकी सभी नेता, नौकरशाह, अधिकारी, कर्मचारी, ग्राम प्रधान, गैर-सरकारी संगठन यानी एनजीओ आदि प्रायः सुयोग्य, चुस्त-दुरुस्त, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार बताए-दिखाए जाते हैं! या कम से कम शिक्षकों को छोड़कर अन्य किसी पर उंगलियां नहीं उठाई जातीं!..क्यों?         शिक्षकों से सम्बंधित इस 'क्यों?' -सवाल के उत्तर से पहले उसके परिणामों पर गौर करना जरूरी है। क्योंकि समाज और अधिकारियों के कठघरे में खड़े किए जाते शिक्षक सजा पाने के हक़दार तर्क और न्याय की किसी कसौटी पर कसे बिना ही पहले से ही अपराधी घोषित किए जा रहे हैं! सजा भी देना शुरू हो रहा है। उदाह

शिक्षक हैं तो...सिखाइए!

                                    शिक्षक हैं तो                            और सीखिए, और सिखाइए!                                                 - अशोक प्रकाश             जीवन एक संघर्ष है और इस संघर्ष को जितना ही मानव-सभ्यता के संघर्ष से जोड़कर हम देखते हैं, उतना ही यह मजेदार लगता है। हमारी तकलीफ़ भी सिर्फ़ हमारी नहीं होती। हमें यह भी पता चलता है कि इसे झेलने वाले हम कोई विरले इंसान नहीं हैं!...           तो फिर इस पर इतना हायतौबा करते हुए जीना कैसा?...          दरअसल, यह जीवन एक विराट और न ख़त्म होने वाली यात्रा की तरह है। यह यात्रा मानव-सभ्यता की विकास-यात्रा है। एक इंसान को  इस यात्रा को हमेशा ही बेहतर और सुखद बनाने की कोशिश करना चाहिए!         हम इस संसार को जितना बेहतर देख, जान, समझ सकेंगे उतना बेहतर जी सकेंगे, इसे और बेहतर बनाने की कोशिश कर सकेंगे। तो इस संसार को ज़्यादा से ज़्यादा देखिए, जानिए, समझिए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में साझा कीजिए!...ध्यान रखिए कि इसमें निरंतर कुछ नया, कुछ बेहतर, कुछ मनोरंजक, कुछ चिंतन-चेतना को बढ़ाने वाला हो!           और हाँ, विधि-विधान की

नोटबन्दी की तरह 'भाषा की बंदी'

                                      भाषा की बंदी                                                             - रहीम पोन्नाड नोटबंदी की तर्ज पर केरल के एक कवि #रहीम_पोन्नाड ने मलयालम में एक कविता लिखी थी #भाषा_निरोधनम जिसका अनुवाद ए आर सिन्धुऔर वीना गुप्ता ने किया और हमने थोड़ा सा संपादन ! एक नए किस्म का प्रयोग है, भाषा के जरिए नोटबंदी की स्थितियों को फिर से जिया गया है ! #बादल_सरोज की वाॅल से यह कविता हिंदी दर्शन के जरिए प्राप्त हुई है ! आप भी आंनद लें :                                      प्रस्तुति: गुरचरन सिंह (फेसबुक- साभार)                                     भाषा की बंदी           एक दिन आधी रात को  उन्होंने भाषा पर पाबंदी लगा दी घोषणा हुई आज से सब की एक ही भाषा होगी पुरानी भाषा को डाकघर से बदल कर ले जा सकते हैं । नींद से उठ कर लोग इधर-उधर भागने लगे हर जगह चुप्पी थी माँओ ने बच्चों के मुंह को हाथ से दबाकर बंद किया, ठूंसा गया बुजुर्गों के मुंह में कपड़ा, रुक गया मंदिर में भजन और मस्जिद से अज़ान भी, रेडियो पर सिर्फ वीणा वादन हो रहा था टीवी पर इशारों क

'शिक्षक की जासूसी' का डिज़िटल संस्करण- 'प्रेरणा-ऐप'

                           वे हमें चोर समझते हैं!..                                                        - अशोक प्रकाश   वे हमें चोर समझते हैं!... वे, जिनकी चोरी की समानान्तर व्यवस्था पूरे समाज में बदबू की तरह फैली है... वे, जो अंग्रेजों के दलालों के रूप में हमारे देश और उसकी  भोली-भाली जनता को  गुलाम बनाए रखे रहे उसका खून चूसा... वे, जो खुद बंगलों में रहते रहे और झोपड़ियों को खाक में मिलाते रहे... वे, जो रोब-दाब मतलब  शोषण और अत्याचार के पर्याय हैं वे, 'आखर का उजियारा फैलाने वाले' देश के भविष्य की उम्मीद शिक्षक को चोर समझते हैं!... पूंजी के संचार माध्यमों से शिक्षकों को  बदनाम करने  वालों असली चोरों के असली सरदारों, समाज की चेतना के वाहक शिक्षक भी तुम्हें   अच्छी तरह समझते हैं!...                          'प्रेरणा-ऐप' की प्रेरणादायी परिस्थितियाँ                महान जासूस 008 जेम्स बांड के डिजिटल-अवतार                                         प्रेरणा ऐप                        के इंजीनियरों से शिक्षकों के कुछ सवाल          

प्रेरणा ऐप के खिलाफ शिक्षकों की व्यथा-कथा

'प्रेरणा' ऐप के खिलाफ़ उभरता क्षोभ: https://youtu.be/PXtlaq8_9Ug              शिक्षकों का बढ़ता क्षोभ और उभरते कई सवाल क्या बेसिक शिक्षा परिषद बन रहा है  प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी  ?... प्रेरणा एक मामूली अप्लीकेशन है, अगर यह सोचकर आप भूल कर रहे हैं तो आप स्वयं अपने, अपने परिवार, समाज और देश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इस अप्लीकेशन पर बहुत सारे रिसर्च किये गये हैं। और इसको केन्द्र बिन्दु बना कर बेसिक शिक्षा परिषद को एक प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बनाने की पूरी योजना तैयार कर ली गयी है। पिछले वर्ष *मानव सम्पदा* का जिन्न आपके सामने मात्र सूचना भर के नाम पर लाया गया। जिसको आप सब भांप नही पाये, फिर *ग्रेडेड लर्निंग* का पांच दिवसीय प्रशिक्षण देकर *प्रेरणा एप* लांच किया गया जिसे भी आप सब पुन: नही भांप पाये।  अब यहीं से शुरू होता है....बेसिक शिक्षा को प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी बनाने का असली खेल। जिस परिषद के बच्चों को परीक्षा के लिए एक अदद गुणवत्ता युक्त प्रश्न पत्र नही मिलते थे, उसे ग्रेडेड लर्निंग के माध्यम से *ओएमआर और हाई ब्रान्ड का प्रश्न पत्र* दिया गया और परिणाम को प्रेरणा

जल बचाएं, पर किससे और कैसे?...

                         'जल-बचाओ, जीवन-बचाओ'                                          पर                                कैसे और किससे?...                दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर के बाद हमारे देश के खूबसूरत समुद्र के किनारे बसे चेन्नई शहर को भूमिगत जल-शुष्क शहर प्रचारित किया जा रहा है। और ऊपर से लेकर नीचे के स्तर तक इसका दोष आम जनता पर मढ़ा जा रहा है। ध्यान देंगे तो पाएंगे कि हमेशा हर समस्या की जड़ जनता और उसके प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को बताया जाता है। जबकि सर्वविदित तथ्य यह है कि जनता अपने प्राकृतिक संसाधनों-जलजंगलजमीन को बचाने के लिए पूरी दुनिया में प्राणों की आहुति देकर संघर्ष कर रही है।             हकीकत यह है कि दुनिया का छोटा सा ऊपरी धनाढ्य तबका न केवल प्राकृतिक संसाधनों पर अन्याय और अत्याचार के बल पर कब्ज़ा जमाए है और इनका सर्वाधिक दुरुपयोग करता है बल्कि अपने मुनाफ़े को बढ़ाते रहने के लिए लगातार ऐसे तिकड़म रचता रहता है जिससे बचे-खुचे थो ड़े बहुत संसाधनों पर भी वह कब्जा कर सके!                 https://youtu.be/Hq0XQa57FkA पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ने के कार

कैसा शिक्षक-दिवस?...

शिक्षक-दिवस?...क्या शिक्षक-दिवस?            प्राथमिक शिक्षा और उसके शिक्षकों की व्यथा-कथा !            पांच सितम्बर, 2019 को पूरे उत्तर प्रदेश के शिक्षक 'प्रेरणा ऐप' को दुष्प्रेरणा ऐब यानी बुरी नीयत से जबरन सेल्फी-प्रशासन लागू करने की कोशिश मानते हुए विरोध-प्रदर्शन एवं धरने पर रहे!  शिक्षकों का मानना है कि तथाकथित 'प्रेरणा' ऐप अमेरिकी सर्वर द्वारा संचालित एक ऐसा असुरक्षित ऐप है जिसका परिणाम शिक्षकों को गैर-ज़िम्मेदार, कामचोर, लापरवाह, अनुशासनहीन आदि सिद्ध करके उनका वेतन काटना, अनुपस्थित दिखाकर दंडित करना, नौकरी से बर्खास्त करना आदि होना है।  पिछले कुछ समय से शिक्षकों को फंसाने के इस तरह के हथकण्डे अपनाए जा रहे हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है शासन-प्रशासन की नज़र में समाज का जैसे सबसे बड़ा दोषी और नाकारा वर्ग शिक्षकों का ही है! लेकिन अर्थव्यवस्था की खामियों से जूझ रही सरकारों का असल मकसद शिक्षा-व्यय  में  कटौती ही प्रतीत होता है! शायद इसीलिए शिक्षकों की नौकरी मांग रहे न केवल लाखों बेरोजगार नौजवान बल्कि किसी तरह नौकरी पा गए शिक्षक भी उसे बोझ की तरह लग रहे हैं!...