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See CUET answer key here

                            कैसे देखें           CUET Answer Key? सीयूइटी #cuet #answerkey अब वेबसाइट cuet.samarth.ac.in पर आ चुका है! जो विद्यार्थी बेसब्री से इसका इंतज़ार कर रहे हैं, उन्हें अब अपनी #उत्तरकुंजी देखकर पूरे #परीक्षापरिणाम के लिए तैयारी करें।   ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (National Testing Agency) ने गत 14 मई, 2023, सोमवार को विश्वविद्यालय/महाविद्यालय के प्रवेश हेतु  आवश्यक परीक्षा की प्रारम्भिक तिथियां  घोषित कर परीक्षा करवाई थी! इसके बाद से ही #students को इसके परिणाम का इंतज़ार था। Answer Key पाने के लिए निम्नलिखित तरीके से आप सही तरीके से अपना उत्तर देख सकते हैं। 1. सबसे पहले वेबसाइट cute.samarth.ac.in पर जाएं। शुरुआत में सर्वर डाउन होने की वज़ह से आपको 504 gateway time out दिखाई दे सकता है, लेकिन दो-तीन बार थोड़ी-थोड़ी में वेबसाइट पर जाने से वेबसाइट खुल जाएगी। 2. वेबसाइट खुलने के बाद दो तरीके से आप अपनी #answerkey देख सकते है! एक: answerkey tab खोलकर लॉगिन करें या दो: login option से इसे खोलें 3. लॉगिन करने के लिए application number और जन्मतिथि डालें। 4. अपना

एक विद्रोही सन्यासी

          स्वामी सहजानंद सरस्वती और                    किसान आंदोलन               बहुतों को सुनकर अच्छा नहीं लगेगा और उन्हें सही ही अच्छा नहीं लगेगा। आज निठल्ले लोगों का पहला समूह साधुओं-संतों के रूप में पहचाना जाता है। इसलिए नहीं कि वे साधु-संत होते हैं, बल्कि इसलिए कि बिना कोई काम-धाम किए वे दुनिया का हर सुख भोगते हैं। वैसे तो जमाना ऐसा ही है कि बिना काम-धाम किए सुख भोगने वाले ही आज राजकाज के सर्वेसर्वा होते हैं। ऊपर से 18-18 घंटे रोज काम करने वाले माने जाते हैं। ऐशोआराम की तो पूछिए मत! दुनिया का सबसे महंगा कपड़ा, सबसे कीमती जहाज, सबसे बड़ा बंगला ऐसे ही निठल्ले लोगों से सुशोभित होता है पर मजाल क्या कि ऐसे लोगों के असली चरित्र पर टीका-टिप्पणी कीजिए! वो तो 'महान संत' आसाराम बापू जैसे एकाध की पोलपट्टी खुल गई वरना हर पढ़ा-लिखा और अनपढ़ वैसी ही दाढ़ी और वैसी ही गाड़ी के साथ-साथ वैसी ही भक्तमंडली के लिए आहें भरता है। किंतु, आज इन सबसे अलग एक ऐसे शख़्स की बात की जा रही है जिसका जन्मदिन महाशिवरात्रि को पड़ता है। जी, महाशिवरात्रि के दिन (22 फरवरी सन् 1899 ई.) में हुआ था। वे हुए तो थे एक धर्मव

एक गाँव: अंधकार के देवताओं से संघर्ष की कहानी

                 लोकतंत्र के लिए तंत्र से लोक के                          एक संघर्ष की कथा                    सचमुच निराशा तो होती है!..जब शहीद भगत सिंह, महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया आदि की 'लोकतंत्र' की विचारधाराओं को धता बताते हुए एक ऐसी 'विचारधारा' सत्ता पर काबिज़ हो जाए जो न केवल इन सबकी विरोधी हो बल्कि जिसका लोकतंत्र पर ही भरोसा न हो! मानव-सभ्यता के विकास के तमाम सारे मानदंडों को जो न केवल अस्वीकार करती हो बल्कि जिसका आदर्श 'दासयुग' हो! जो राजा-प्रजा व्यवस्था को विद्यमान सभी व्यवस्थाओं से बेहतर मानती हो और 'रामराज्य' के नाम पर ऐसी व्यवस्था को स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील हो! वर्तमान सत्ताधारी दल की विचारधारा इसे 'हिन्दूराष्ट्र' के रूप में चिह्नित और प्रचारित करती है! क्या यह प्रतिक्रांति की कोई भूमिका है या क्रांतिकारी परिवर्तन की बाट जोह रहे संगठनों और लोगों की विचारधाराओं पर कुठाराघात है, उन पर एक सवाल है?  या फिर यह इस दुर्व्यवस्था के ताबूत की आखिरी कील सिद्ध होने जा रही प्रतिक्रियावादियों की अंतिम कोशिश और किसी आसन्न

क्या आपको झूठ से प्यार हो गया है?

                     खाईं में गिरिएगा?.. आप सिनेमा देखते हैं, कहानियाँ पढ़ते हैं, क्यों?..क्या वे सत्य होती हैं, इसलिए? क्या आप यथार्थ को पसंद करते हैं?...सत्य को सचमुच पसन्द करते हैं? या आपको झूठ प्यारा लगता है? क्यों लगता है प्यारा यह झूठ?  एक उदाहरण देखिए!.. ‘देश नहीं बिकने दूंगा’ कहकर सत्ता में आने वाले मोदीजी के राज में ऐसा कोई सेक्टर नहीं बचा जिसे नीलाम नहीं किया जा रहा!.. क्या आप सार्वजनिक क्षेत्रों की नीलामी पसंद करते हैं?  मोदी सरकार की हालत ये है कि अगर आप महज इसके झूठ गिनाने लगें ​तो आपको महसूस होगा कि आप एक अमर्यादित बहस का हिस्सा बन रहे हैं। ऐसा इसलिए है ​क्योंकि लोकतंत्र की संसदीय मर्यादा को सस्पेंड कर दिया गया है। जैसे कि मोदी सरकार कह रही है कि वह किसानों के हित में कानून लाई है, लेकिन मूलत: ये कानून किसानों के खिलाफ पूंजीपतियों के फायदे का कानून है। मोदी सरकार कह रही है कि वह कामगारों के हित में श्रम कानूनों में बदलाव करेगी लेकिन जो प्रस्ताव हैं वे मालिकों के हित में हैं। मजदूरों से उनकी सामाजिक सुरक्षा, प्रदर्शन और हड़ताल का अधिकार वगैरह छीना जा रहा है उन्हें फैक्ट्रिय

अब गाँधीवादी भी नहीं सुरक्षित

                      गाँधीवादी संस्थानों को               हड़पने के खिलाफ सम्मेलन गांधी संस्थानों एवं लोकतांत्रिक अधिकारों पर हो रहे हमलों के खिलाफ प्रतिरोध सम्मेलन सम्पन्न वाराणसी, 05 जून 2023। संपूर्ण क्रांति दिवस के अवसर पर 4-5 जून 2023 को राजघाट परिसर में आयोजित प्रतिरोध सम्मेलन सम्पन्न हो गया। सम्मेलन में विभिन्न प्रस्तावों को पारित करते हुए यह घोषणा की गयी कि जब तक सर्व सेवा संघ की जमीन एवं गांधी विद्या संस्थान के भवनों को कब्जा मुक्त नहीं करा लिया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। सम्मेलन ने तय किया है कि संपूर्ण क्रांति दिवस से अगस्त क्रांति दिवस तक जेपी प्रतिमा के सामने लगातार धरना दिया जायेगा। इस धरने में क्रमवार पूर्वांचल के जिलों एवं सामाजिक संगठनों की भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी। इसी के साथ आगामी 9-10 अगस्त 2023 को पुन: एक बार जन प्रतिवाद सम्मेलन राजघाट परिसर में किया जायेगा। सम्मेलन में यह भी तय हुआ कि इसी बीच जेपी निवास, पटना से एक यात्रा निकलेगी, जो जेपी जन्म स्थान सिताबदियारा होते हुए 8 अगस्त को राजघाट, वाराणसी पहुंचेगी। इसी माह 17 जून 2023 को दिल्ली में तथा जुलाई 2023 म

यह 'काला दिन' इतना काला क्यूँ?

                        28 मई, 2023                     भारतीय लोकतंत्र का                काला दिन क्यों है? सोचिए, समझिए, कुछ कीजिए: 1-नई संसद भवन के उद्घाटन के लिए आंबेडकर-नेहरू-भगत सिंह के जन्म दिन को चुनने की जगह सावरकर के जन्म दिन ( 28 मई) को चुना गया। इस तरह राष्ट्रीय नायकों को अपमानित किया गया। हिंदू राष्ट्र के पैरोकार सावरकर को भारत का राष्ट्रीय नायक घोषित किया गया। 2- आज भारतीय लोकतंत्र की विरासत को चोल राजवंश और सावरकर से जोड़कर इसका हिंदूकरण  (ब्राह्मणीकरण) किया गया। 3- आज आंबेडकर-नेहरू और संविधान की भावनाओं-विचारों को रौंदते हुए पोंगा-पंथी पंडा-पुरोहितों को संसद भवन में प्रवेश दिया गया। 4-आज राजाओं-महराजाओं के सामंती राजदंड ( सेंगोल ) को भारतीय जन संप्रुता के केंद्र संसद में स्थापित किया गया। 5- वर्णाश्रम धर्मी-ब्राह्मणवादी चोल वंश के राजदंड के नाम पर सेंगोल को स्थापित करके भारतीय लोकतंत्र को कलंकित किया गया। 6-- आज भारतीय गणतंत्र की प्रमुख राष्ट्रपति को नज़रन्दाज़ कर प्रधानमंत्री को प्राचीन काल के  राजा की तरह  पेश किया गया। 7- आज देश की गौरव-हमारी बेटियों के साथ पुलिस ने बर

सेंगोली-राजा मुर्दाबाद, लोकतंत्र ज़िंदाबाद!

                         राजतन्त्र नहीं,                 लोकतंत्र है यह! तो यह भूमिका बनाई जा रही है?...राजतन्त्र स्थापित किया जाएगा? जवाहलाल नेहरू की आत्मा को भी अपने दुष्चक्र में घसीट लाया गया?..कहा गया कि उन्होंने भी 'सेंगोल' या 'राजदण्ड' ग्रहण किया था?        हुज़ूरे-आला! राजतन्त्र नहीं, लोकतंत्र है यह! इतिहास को छिपाने और मनगढ़ंत रचने की आपकी कोशिशें कामयाब नहीं होने दी जाएंगी! और राजतन्त्र के साथ जिस 'साम्राज्य' को पुनर्स्थापित करने का सपना कीर्तन-मंडली देख रही है, उसे इस देश की जनता चकनाचूर कर देगी!        बहाना 'सेंगोल' का है। किसी जमाने में, 'चोल-साम्राज्य' के काल में चोल राजा के उत्तराधिकारी की घोषणा होने पर नए राजा को सत्ता-हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 'सेंगोल' अर्थात 'राजदण्ड' दिया जाता था। दरअसल किसी को भी राजदण्ड देने का मतलब राजा को राज का डंडा दिया जाना ही हो सकता है। शायद तमाम सिपहसालारों के बीच भी अंतिम शस्त्र के रूप में राजा द्वारा इसे इस्तेमाल करने की जरूरत महसूस की जाती रही होगा। मिथकों में एक 'देवता'