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हे प्रभु, हम सब रामभरोसे!..

                         रे मन, तू रह रामभरोसे !                                   साभार: अमर उजाला, 18 मई, 2021 सचमुच, मुझे कष्ट  है!..जब देखो तब रामभरोसे! कहने वालों को 'रामभरोस' पर कोई शंका है क्या? हमारे इलाक़े में तो लोग इस शब्द पर इतना भरोसा करते हैं कि कई तो अपने बाल-बच्चों का नाम ही रामभरोस या रामभरोसे रख देते हैं। फिर किसी असफलता के बाद 'सब कुछ रामभरोसे..' कहने का क्या मतलब? दरअसल, पूरा देश अपरंच पूरा विश्व किंवा अखिल ब्रह्माण्ड रामभरोसे है तो किसी असफलता पर रामभरोसे कहना भरोसा पर भरोसा न जताने जैसा है! लोग गरीब हैं तो रामभरोसे कह दिया, लोग बीमार हैं तो रामभरोसे कह दिया! लोगों की नौकरी नहीं लगी, तनख्वाह नहीं मिली, लोगों की पेंशन बंद हुई, कम्पनी ने छह महीने बाद छंटनी कर दी, नोटबन्दी हुई, नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद मजदूर ट्रेन-बस रोक दिए जाने के चलते  पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर सड़कों पर चले; लोगों ने कहना शुरू दिया- 'भइया, अब तो सब कुछ रामभरोसे ही है!' क्यों भाई, क्यों? तुमने पहले से ही रामभरोसे नहीं थे क्या? अब सरकार को कोस रहे हो! भरोसा तूने किया, तोह

An unforgettable Martyr of Peasants' Movement

          A great soldier of Country! Ongoing peasants' struggle in India has been proven not only a  historic struggle of Indian people against authoritarian approach of government on repeal of anti-farmer three recent Acts, but also a struggle of heroic personalities sacrificing their life for the Nation they loved. One of these personalities was Major Khan who served peasants' movement in the same way as he served Indian Army before retirement. Many of people going to Singh border of kisan dharna must have seen him with Dr Darshan Pal or at Singhu. Major Khan was active in farmers protest since August, 2020. He was at Singhu from last more than 5 months. He did not go to his home even once. He had informed his family that he will come home only after winning this sangharsh. He was doing hundreds of works behind the camera. From taking care of food to the logistics work of morcha. He used to sleep hardly 5 hours a day. He never shied from any kind of work. Whatever important

क्या जनता नहीं, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपराजेय हैं?

          किसान-मजदूर आंदोलन के सामने                                   उठते सवाल   देश की आम जनता, विशेषकर किसान आंदोलन के सामने कुछ ज्वलंत सवाल खड़े हैं!...क्या मजदूर किसान आंदोलन से जुड़ेंगे?...अगर जुड़ेंगे तो किसान आंदोलन का स्वरूप क्या होगा? हाल ही में प्रवासी मजदूरों को किसान आंदोलन से जुड़ने का जो आह्वान किया गया था, उसका निहितार्थ क्या है? उसका क्या प्रभाव पड़ा?...क्या हमारे देश में प्रवासी मजदूरों के संघर्ष का कोई इतिहास है? इस नए अर्थात उदारीकरण के दौर में क्या मजदूर परम्परागत मजदूर रह गया है? क्या प्रवासी मजदूरों ने पिछले साल की विभीषिका से कोई सबक लिया है? लिया है तो क्या? - मालिकों के सामने गिड़गिड़ाकर किसी भी तरह, किसी भी शर्त पर काम पाना या कुछ और?...क्या किसान आंदोलन से उन्हें कोई उम्मीद है? ... ऐसे बहुत से सवाल शासकवर्ग से अलग सोच रखने वाले मजदूरों, किसानों, बेरोज़गारों, बुद्धजीवियों के सामने आज खड़े हैं। कोरोना ने इन सवालों को अगर अप्रत्यक्ष रूप से तीखा किया है तो बहुत से अन्य सवाल भी खड़े किए हैं। मसलन, प्रत्यक्ष दिखने वाला संकट क्या शासकवर्गों अपरंच साम्राज्यवादी शक्तियों का

हरियाणा में किसानों पर हमले का क्या जवाब देंगे किसान?

                हिसार में किसानों पर पुलिस का                  क्रूर व अमानवीय हमला              हिसार घटना के विरोध में KMP हाईवे जाम करते किसान संयुक्त किसान मोर्चा:   प्रेस विज्ञप्ति (1) आज हिसार में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कोरोना हस्पताल के नाम पर एक कार्यक्रम रखा था। किसानों ने पहले ही चेतावनी दे रखी थी कि इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को आने नहीं दिया जाएगा। क्योंकि पिछले साल से ही, जब से किसान आंदोलन चल रहा है, किसान विरोधी भाजपा और जजपा का लगातार विरोध हो रहा है व किसानों ने सामाजिक बहिष्कार किया हुआ है, इन नेताओ का कोई भी कार्यक्रम नहीं होने दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने इसे अपने घमंड का विषय मानते हुए पूरी सरकारी मशीनरी के सहारे इस कार्यक्रम में आने की तैयारी की। यह किसानों की जीत है कि उस राज्य के मुख्यमंत्री को पुलिस व अन्य सरकारी बल के दम पर अपने राज्य में कार्यक्रम करना पड़ रहा है। आज मुख्यमंत्री खट्टर के हिसार आगमन पर कई जगह उनका विरोध किया जा रहा था। किसान भारी संख्या में इक्कठे होकर भाजपा जजपा के नेताओ का विरोध कर रहे थे। इसी बीच हरियाणा सरकार के आदेशो

संयुक्त किसान मोर्चा: नये संघर्षों का ऐलान

                किसान आंदोलन का नया ऐलान 14 मई को हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में जहाँ भारतीय किसान यूनियन के महान नेता महेंद्र सिंह टिकैत को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई, वहीं अमर शहीद सुखदेव के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए उनके सपनों को मंजिल तक पहुँचाने का संकल्प लिया गया। इसके साथ शहीद भगतसिंह के भतीजे और किसान आंदोलन के समर्थक सामाजिक कार्यकर्ता अभय संधू   की मृत्यु पर दुःख प्रकट करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।  इस बैठक की अध्यक्षता किसान नेता श्री राकेश टिकैत ने की। बैठक में निम्नलिखित निर्णय सर्वसम्मति से लिए गए:   1. 26 मई को हम दिल्ली की सीमाओं पर अपने विरोध के 6 महीने पूरे कर रहे हैं।  यह केंद्र में आरएसएस-भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने का भी प्रतीक है।  इस दिन को देशवासियों द्वारा "काला दिवस" के रूप में मनाया जाएगा। पूरे भारत में गांव और मोहल्ला स्तर पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होंगे जहां दोपहर 12 बजे तक किसान मोदी सरकार के पुतले जलाएंगे।  किसान उस दिन अपने घरों और वाहनों पर काले झंडे भी फहराएंगे।  इस मौके पर एसकेएम ने सभी जन

पुण्यतिथि पर: महेंद्र सिंह टिकैत और हरे रंग की टोपी

                          बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत:                     पुण्यतिथि पर एक श्रद्धांजलि ⭕ हरे रंग की टोपी पहने हर किसान में जिंदा हैं टिकैत ⭕    संयुक्त किसान मोर्चा के मंचों पर लगे बैनरों पर आन्दोलन के प्रेरणा स्रोतों में एक चेहरा ऐसा रहता है जो देहत्याग के बाद भी आज जिन्दा है। वह चेहरा है बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत। इन महापंचायतों में हजारों की संख्या में जुटे किसानों में हरे रंग की टोपी पहने हर किसान में जिंदा हैं टिकैत! आज वे अपने हर संघर्ष के साथी में प्रतिबिम्बित हो गए।सत्तर - अस्सी साल के उनके किसी भी किसान साथी से मिलिए, बात करिए, आपको बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत के दर्शन हो जाएंगे। आज ही के दिन यानी 15 मई 2011 को किसानों का मसीहा उन्हें छोड़ कर चला गया। लेकिन आज इस आन्दोलन में महेन्द्र सिंह टिकैत वापस लौट आए, उन हजारों चेहरों में, जो उनके सखा हैं, अनुयायी हैं, उनके अपने सगे हैं।     जनवरी 1987 में बिजली समस्याओं को लेकर करमूखेड़ी पावर हाउस के घेराव से किसान आन्दोलन में कदम रखा। वैसे तो आठ साल की छोटी सी उम्र में ही बाल्यान खाप के मुखिया की बड़ी जिम्मेदार उनके कंधों पर

नीमूचाना-राजस्थान का ऐतिहासिक किसान आंदोलन

                    14 मई नीमूचाना हत्याकांड के                शहीद किसानों की याद में                                                             - शशिकांत                         नीमूचाना सेठों की वीरान हवेली   ★ एक ऐसा किसान आन्दोलन जो इतिहास के पन्नों में खो गया!..           14 मई का राजस्थान का इतिहास खोजें तो गूगल में पहला जबाव होगा - नीमूचाना किसान आन्दोलन! लेकिन आज यह आन्दोलन केवल राजस्थान की प्रतियोगी परीक्षाओं का महज एक महत्वपूर्ण परीक्षोपयोगी प्रश्न बन कर रह गया है। न नीमूचाना गांव में कोई स्मारक, न कोई कार्यक्रम-मेला!..      रोजी-रोटी के सिलसिले में बानसूर ( अलवर की तहसील मुख्यालय) में मैं आठ साल रहा। इसीलिए इस आन्दोलन के बारे में ऐसा लिख रहा हूँ। नीमूचाना इसी तहसील का एक छोटा गांव है। 2012 में राजस्थान के किसान नेताओं के एक प्रतिनिधि मंडल के साथ नीमूचाना जाने का मौका मिला। रेत के टीलों, कीकर-बबूल की जंगलात के बीच बसा यह गांव आज वीरान होने को है। अपने निजी साधनों के अलावा इस गांव तक पहुँचने का कोई साधन नहीं। बानसूर से 14 किमी दूर यह गांव सारी सुविधाओं से आज भी कटा हुआ है।