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अंग्रेज़ी बनाम हिंदी

                                 लड़ोगे तो जीतोगे!           अंग्रेज़ी वैश्विक-आर्थिक-आक्रमण या वैश्वीकरण की भाषा है, जबकि हिंदी सिर्फ़ भारत के एक(बड़े)क्षेत्र की भाषा! दोनों की तुलना ठीक नहीं!...     ....देश के बाहर ही नहीं, देश के अंदर भी हिंदी लिखने-बोलने-पढ़ने वालों की इज़्ज़त और पैसा यानी रोज़गार मिलता है। किंतु यह केवल भाषायी ग़ुलामी नहीं है। यह वास्तविक गुलामी का द्योतक है। .....देश की भाषाओं के अस्तित्व का संघर्ष अनिवार्यतः इस गुलामी (मुख्यतः आर्थिक) से मुक्ति का संघर्ष है! लड़ोगे तो जीतोगे वरना ऐसे ही सड़ोगे!         हिंदी भाषियों के सामने यह चुनौती सबसे बड़ी है...क्योंकि उन्हीं को सबसे कम अंग्रेज़ी आती है! और यह अच्छी और सकारात्मक बात है। बड़े क्षेत्र के लोगों को रोज़गार नहीं मिल रहा! मिलने की संभावनाएं और क्षीण होती जा रही हैं। उन्हें रोज़गार के लिए लड़ना पड़ रहा है। यह लड़ाई एक भाषायी और सांस्कृतिक लड़ाई भी है। दरअसल, यह गुलामी के खिलाफ़ लड़ाई है।           लड़ोगे तो जीतोगे, नहीं तो ऐसे ही सड़ोगे!  ★★★

कविता:

                          🔴    चलो,  लड़ा जाये!....🔴 ⚫चलो, लड़ा जाये कुछ आगे बढ़ा जाये! तुम मेरा सिर फोड़ो मैं तुम्हारा थाने चलें थानेदार का होगा वारा-न्यारा... कुछ नया इतिहास गढ़ा जाये! तुम वो हो मैं ये हूँ तुम खटिया के खटमल हो मैं सिर की जूं हूँ... खटमल और जूं पे चलो, और अड़ा जाए! इतिहास तुम्हारा भी है इतिहास हमारा भी गाय-गोबर और गोबरधन के साथ लाते हैं दोनों भैंस का चारा भी... बकरी को चलो, एक डंडा जड़ा जाये! तुम रोटी खाते हो में चावल खाता हूँ तुम्हें सब्ज़ी नहीं मिलती में दाल नहीं पाता हूँ.... रोटी और दाल का सब्ज़ी और चावल का चलो, उल्टा पहाड़ा पढ़ा जाये! तुमने चोटी कटवा ली है मैंने दाढ़ी मुड़वा ली है मालिक की मर्ज़ी थी हमने तो सिर्फ़ पूरी की है... थोड़ा-थोड़ा और चलो, घूरे में सड़ा जाये! हम बहादुर लोग हैं लड़ने में बहादुरी है नौकरी-चाकरी खेती-धंधा बात बहुत बुरी है.... चीन-पाकिस्तान से भ्रष्टाचार और बेईमान से बहुत लड़े.... आपस में अब चलो, फिर से भिड़ा जाए!⚫ 🔴🔴

JFME Call

        Joint Forum For Movements On Education                                                  (J F M E)       An Appeal on Onslaught of Public--funded                                 Education System READ, THINK and SUPPORT!   पढ़िए, समझिए, साथ दीजिये:

AMUTA:

             Aligarh Muslim University          Teachers Association (AMUTA)     Expresses Anguish over 'Autonomy' AMUTA passed  unanimous resolution on announcement of  granting so-called  'autonomy' to Aligarh Muslim University:        Not only AMU teachers, but teaching community all over India in general have expressed its dismay and resentment on the announcement of 'Autonomy' to 62 famous institutions of higher education. The announcement has been viewed as an step towards privatization of public-funded higher Institutions. ◆◆

शहादत के जख़्म

                      शहीद दिवस और उसके बाद.... आज 25 मार्च है!... हो सकता है शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहादत-दिवस हम 23 मार्च की जगह 24 मार्च को मनाये होते!... हो सकता है 1931 में कांग्रेस का वह अधिवेशन कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया होता!... हो सकता है इन शहीदों को भी 'कालापानी' की सजा हो जाती और वे 1947 के बाद भी सक्रिय होते!... हो सकता है जमीन के 'राष्ट्रीयकरण' ताकि उस पर सोवियत संघ की तरह सामूहिक-खेती हो सके...और कारखानों का राष्ट्रीयकरण ताकि मज़दूरों को कम से कम नियमित और निश्चित मज़दूरी मिल सके-सभी मज़दूरों को पेंशन,बोनस,फंड मिल सके...आदि शहीदों की देश की जनता के लिए की जाने वाली ये साधारण सी मांगें 1947 के बाद पूरी हो गई होतीं!... हो सकता है उनके सपनों का भारत भले न बन पाता, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईशाई-ब्राह्मण-दलित-सवर्ण-पिछड़े का भेद न कर सरकारें सबकी आजीविका-रोजगार...आवास...कपडे-लत्ते की सामान्य सी व्यवस्था कर दी होतीं!... हो सकता है जाति या धर्म के आधार पर भेद और उत्पीड़न को समाज में अपराध की तरह प्रचार-प्रसार करने के लिए सरकारों ने हर संभव प्रयास

AIFUCTO: Decision for Joint Protest

AIFUCTO (All India Federation of University & College Teachers' Organizations): Press Release       विश्विद्यालयों की 'स्वायत्तता' देश की जनता के साथ धोखा नई दिल्ली, 24 मार्च, 2018.  अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संगठन  (एआईफुक्टो )ने केन्द्रीय मानव संसाधन विभाग के दबाव में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा हाल ही में 62 संस्थानों को स्वायत्तता देने की कटु आलोचना करते हुए कहा है कि यह फैसला देश के साथ एक बड़ा धोखा है।इन विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को स्वायत्तता देना न केवल संवैधानिक एवं वित्तीय जिम्मेदारी से पीछे हटना है बल्कि चोर दरवाजे से देश के जानेमाने संस्थानों का निजीकरण कर काॅरपोरेट के हाथों सौंपने का जनविरोधी फैसला है।स्वायत्तता के नाम पर उन संस्थानों को बाजार के हवाले करने ,उनके प्रजातांत्रिक प्रतिरोध को कुचलने और शिक्षा को मॅहगा बनाकर आम आदमी की पहुँच से बाहर करने का खुला ऐलान है।डब्ल्यू टीओ और वर्ल्ड बैंक के ईशारे पर नीति आयोग और हेफा(HEFA) के रास्ते सार्वजनिक शिक्षा को सदा के लिए खत्म करने की यह एक बहुत बड़ी  सुनियोजित सरकारी

Academics for Action & Development (AAD)

  Press Release:                      Oppose Policy for Privatisation               of Existing Public-funded Institutions                   The announcement by the Minister of HRD granting of autonomy to 62 universities and colleges, which includes five central universities also, represents the government's unilateral policy for privatisation of existing public-funded institutions. AAD strongly opposes the announcement made by the Minister, which will deprive the SC, ST, OBC and poor students from these universities and colleges and contractualisation of the teachers therein. In the garb of this autonomy and freedom to open new departments/courses in self-financing mode, the present courses run by the  universities and the colleges are going to be decimated. The freedom is infact a trap for self-destruction. The UGC regulations under which this autonomy has been granted, provides: 1. All universities and colleges are to be graded in categories I/II/III. 2. The instit