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क्या आप मुर्गा नहीं हैं?

                मत बनिए मुर्गा-मुर्गी! एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया।.. एक दिन वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का बहाना सोचा और मुर्गे से कहा, "तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा।"  मुर्गे ने कहा, "ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !" सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है।  मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि कल से तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे, नहीं तो मैं वध कर दूँगा।  अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया।  मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए। अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया।  मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था। मालिक ने कहा कि कल से तुम्हें अंडे देने होंगे नहीं तो मै तेरा

मुझसे जीत के दिखाओ!..

कविता:                     मैं भी चुनाव लड़ूँगा..                                  - अशोक प्रकाश      आज मैंने तय किया है दिमाग खोलकर आँख मूँदकर फैसला लिया है 5 लाख खर्चकर अगली बार मैं भी चुनाव लड़ूँगा, आप लोग 5 करोड़ वाले को वोट देकर मुझे हरा दीजिएगा! मैं खुश हो जाऊँगा, किंतु-परन्तु भूल जाऊँगा आपका मौनमन्त्र स्वीकार 5 लाख की जगह 5 करोड़ के इंतजाम में जुट जाऊँगा आप बेईमान-वेईमान कहते रहिएगा बाद में वोट मुझे ही दीजिएगा वोट के बदले टॉफी लीजिएगा उसे मेरे द्वारा दी गई ट्रॉफी समझिएगा! क्या?..आप मूर्ख नहीं हैं? 5 करोड़ वाले के स्थान पर 50 करोड़ वाले को जिताएँगे? समझदार बन दिखाएँगे?... धन्यवाद... धन्यवाद! आपने मेरी औक़ात याद दिला दी 5 करोड़ की जगह 50 करोड़ की सुध दिला दी!... एवमस्तु, आप मुझे हरा ही तो सकते हैं 5 लाख को 50 करोड़ बनाने पर बंदिश तो नहीं लगा सकते हैं!... शपथ ऊपर वाले की लेता हूँ, आप सबको 5 साल में 5 लाख को 50 करोड़ बनाने का भरोसा देता हूँ!.. ताली बजाइए, हो सके तो आप भी मेरी तरह बनकर दिखाइए! ☺️☺️

नागपुर जंक्शन-दो दुनिया के लोग

          नागपुर जंक्शन!..  आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी या कहिए हेड क्वार्टर!..डॉ भीमराव आंबेडकर की दीक्षाभूमि! अम्बेडकरवादियों की प्रेरणा-भूमि!  दो विचारधाराओं, दो तरह के संघर्षों की प्रयोग-दीक्षा का चर्चित स्थान!.. यहाँ दो व्यक्तियों को एक स्थान पर एक जैसा बन जाने का दृश्य है। दोनों बहुत कुछ अलग।  इन दोनों को आज़ादी के बाद से किसने कितना अलग बनाया, आपके विचारने के लिए है।  अमीर वर्ग, एक पूँजीवादी विचारधारा दूसरे गरीबवर्ग, शोषित की मेहनत को अपने मुनाफ़े के लिए इस्तेमाल करती है तो भी उसे क्या मिल जाता है?..  आख़िर, प्रकृति तो एक दिन दोनों को एक ही जगह पहुँचा देती है!... आप क्या सोचते हैं? ..  

युद्ध, जनसंहार और तमाशबाज मीडिया

                   खून के प्यासे तमाशबाज                                 और तमाशबीन जन पिछले डेढ़ साल से हमारे देश के टीवी चैनलों पर, खासकर हिन्दी समाचार चैनलों पर युद्ध की खबरें छाई हुई हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले से लेकर अब फिलीस्तीन पर इजरायली हमले तक टीवी के परदे पर युद्ध ही युद्ध है। पर टीवी पर युद्ध की खबरों की यह भरमार न तो युद्धों के बारे में किसी गंभीर जानकारी-समझदारी की ओर ले जाती है और न ही युद्धों के प्रति नफरत की ओर। इसके ठीक विपरीत वे युद्ध को एक उत्तेजनापूर्ण मनोरंजन की तरह पेश करती हैं तथा दर्शकों में युद्ध की विभीषिका के प्रति एक तरह की संवेदनहीनता को जन्म देती हैं। टीवी के परदे पर दिखने वाली तबाही एक कुत्सित आनंद का स्रोत बन जाती है। टीवी चैनलों के मालिकों और कर्ता-धर्ता का इस मामले में उद्देश्य साफ होता है। वे युद्ध को एक उत्तेजक मनोरंजन के तौर पर पेश कर दर्शकों को अपनी तरफ खींचना चाहते हैं जिससे उनका व्यवसाय बढ़े। लगे हाथों सरकार के पक्ष में प्रचार भी हो जाता है। टीवी चैनलों के मालिकों का युद्ध के प्रति यह रुख बेहद घृणित है क्योंकि वे अपने मुनाफे के लिए युद्ध की विभीषिक

हारे हुए लोग

एक कविता~अकविता :                                                 ये हारे हुए लोग कभी अपनी हार नहीं मानते..   'निश्चित विजय' के लिए ये फिर-फिर अपनी कमर कसते हैं दुनिया के ये अजूबे लोग घटनाओं पर नहीं सिद्धांत पर भरोसा करते हैं किसी व्यक्ति की जगह सभ्यता के विकास के लिए जीते-मरते हैं... रक्तबीज हैं ये आधा पेट खा और कुछ भी पहनकर देश और दुनिया नापते हैं चिंगारी की तरह यहाँ-वहाँ बिखरे इन अग्निदूतों से दुनिया के सारे शासक काँपते हैं! अज़ीब हैं ये लोग कभी अपनी हार  नहीं मानते हैं पूरी दुनिया के जंगल पहाड़ खेत मैदान इन्हें पहचानते हैं प्राकृतिक रूप से खिलते फूल तितलियां भौंरे कीट हवाओं में तैरते दूर देश के  गीत संगीत इनके साथ  अमर-राग के सुर तानते हैं! अज़ीब हैं ये लोग! - अशोक प्रकाश                     ★★★★★★

क्या 'सरकार' का लोकतंत्र पर भरोसा है?

                       एक आपबीती!... यह कुछ समय पहले की घटना है! लेकिन कहीं न कहीं की यह क्या रोज़-रोज़ की घटना नहीं है?...ऐसा क्यों है? क्या 'सरकार' का लोकतंत्र पर भरोसा है? 'जब से डबल इंजन की सरकार देश और प्रदेश में आया है तब से मेरे ऊपर लगातार फर्जी मुकदमों का अंबार लगाया जा रहा है। आज 5:10 पर रावटसगंज चौकी से फोन आया कि आप तत्काल चौकी पर चले आओ कुछ बात करना है! मैंने जाने से इनकार किया! 2 घंटे बाद शाम 7:00 बजे मैं घर पर नहीं था तभी रावटसगंज कोतवाली के कोतवाल साहब अपने लाव लश्कर के साथ मेरे घर पर पहुंच गया! उस समय मैं घर पर नहीं था! मैं अपने इलाज के लिए गया था!  मेरे बच्चे और मेरे घर के दूसरे सदस्य मुहर्रम के त्यौहार के अवसर पर मोहल्ले में खिचड़ा का दावत था जहां मेरे घर के बच्चे गए हुए थे सिर्फ मेरे घर पर मेरी पत्नी नजमा खातून अकेले ही मौजूद थे लेकिन पुलिस वाले ने बिना आवाज दिए चुपचाप दरवाजा खोल कर घर में घुस गया मेरी पत्नी नजमा खातून बिस्तर पर सोई थी पुलिस वाले जब घर में पहुंचा पत्नी घबरा गई। पुलिस वाले से पूछने लगीं कि 'कोई महिला पुलिस आपके साथ नहीं है और आप बिना आवा

ऐसे ही होती है शुरुआत

                        एक नई शुरुआत:               मजदूरों, बेरोजगारों और किसानों ने                            दिखाई एकजुटता प्रेस विज्ञप्ति | 24 अगस्त 2023 ऐतिहासिक अखिल भारतीय मजदूर किसान संयुक्त सम्मेलन दिल्ली में आयोजित नई दिल्ली, 24 अगस्त 2023 - एकता और संकल्प के ऐतिहासिक प्रदर्शन में, आज नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय मजदूर किसान संयुक्त सम्मेलन आयोजित किया गया। यह सम्मेलन संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच, जो देश भर के किसानों और मजदूरों का प्रतिनिधित्व करता है, द्वारा बुलाया गया था। सम्मेलन की शुरुआत 2014 के बाद से केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई आक्रामक कॉर्पोरेट-समर्थक नीतियों द्वारा उत्पन्न खतरनाक स्थिति को संबोधित करते हुए हुई। इन मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के परिणामस्वरूप राष्ट्र की अर्थव्यवस्था, एकता और अखंडता के लिए विनाशकारी परिणाम सामने आए हैं। सम्मेलन ने केंद्र सरकार की कॉर्पोरेट-समर्थक और किसान-विरोधी नीतियों के कारण भारत में कृषि संकट पर प्रकाश डाला, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में